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________________ im विषाद की खाई से ब्राह्मी-स्थिति के शिखर तक AM असल में ज्ञान सदा ही अभिशाप को वरदान बना लेता है। अभिशाप को वरदान न बनाया जा सके, तो वह ज्ञान नहीं। अर्जुन के लिए जो अभिशाप जैसा फलित हुआ था, कृष्ण ने उसे वरदान बनाने की पूरी चेष्टा की है। उसके दुख का भी सृजनात्मक उपयोग किया है। । इसलिए मैं यह कहता हैं कि भविष्य का जो मनोविज्ञान होगा. वह सिर्फ मरीज को किसी तरह मरीजों के समाज में रहने योग्य नहीं बनाएगा, बल्कि मरीज की यह जो बेचैन स्थिति है, इस बेचैन स्थिति को मरीज की पूरी आत्मा के रूपांतरण के लिए उपयोग करेगा। वह क्रिएटिव साइकोलाजी होगी। इसलिए कृष्ण का मनोविज्ञान साधारण मनोविज्ञान नहीं, सृजनात्मक मनोविज्ञान है। यहां हम कोयले को हीरा बनाने की कोशिश करते हैं; यह अल्केमी है। जैसा अल्केमिस्ट कहते रहे हैं कि हम लोअर बेस मेटल को-सस्ती और साधारण धातुओं को-सोना बनाते हैं। पता नहीं उन्होंने कभी बनाया या नहीं बनाया। लेकिन यहां अर्जुन बड़े बेस मेटल की तरह कृष्ण के हाथ में आया था, कोयले की तरह, उस कोयले को हीरा बनाने की उन्होंने बड़ी कोशिश की। धन्य हैं वे, जो अर्जुन के विषाद को उपलब्ध होते हैं। क्योंकि उनकी ही धन्यता ब्राह्मी-स्थिति तक पहुंचने की भी हो सकती है। मेरी बातों को इतने प्रेम और आनंद से सुना, इससे बहुत अनुगृहीत हूं और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें। 297
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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