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Om विषाद की खाई से ब्राह्मी-स्थिति के शिखर तक AM
नाशवान, क्षणभंगुर सांसारिक सुख में सब भूत प्राणी जागते | मिलाने ले आऊं, तो मिलना पड़ेगा, इनकार न कर सकोगे। तो ये है, तत्व को जानने वाले मुनि के लिए वह रात्रि है। तीन आज्ञाएं देता हूं बड़े भाई की हैसियत से। फिर दीक्षा के बाद तो
मैं कुछ कह न सकूँगा। तुम्हारी आज्ञा मेरे सिर पर होगी।
बद्ध ने ये वचन दे दिए। फिर आनंद बद्ध के कमरे में ही सोता। जो सबके लिए अंधेरी रात है, वह भी ज्ञानी के लिए, | दो-चार-दस दिन में ही बहुत हैरान हुआ। क्योंकि बुद्ध जिस 1 संयमी के लिए जागरण का क्षण है। जो निद्रा है सबके | | करवट सोते हैं-जहां हाथ रखते हैं, जहां पैर रखते हैं-रात में
लिए, वह भी ज्ञानी के लिए जागृति है। यह महावाक्य | इंचभर भी हिलाते नहीं। कभी करवट भी नहीं बदलते। हाथ जहां है। यह साधारण वक्तव्य नहीं है। यह महावक्तव्य है। इसके रखा है, वहीं रखा रहता है पूरी रात। पैर जहां रखा है, वहीं रखा बहुआयामी अर्थ हैं। दो-तीन आयाम समझ लेना जरूरी है। रहता है पूरी रात। तो आनंद ने कहा कि यह क्या मामला है! यह
एक तो बिलकुल सीधा, जिसको कहना चाहिए लिटरल जो कैसी नींद है! अर्थ है, वह भी इसका अर्थ है। आमतौर से गीता पर किए गए | दो-चार-दस दिन, रात में कई बार उठकर उसने देखा। देखा कि वार्त्तिक उसके तथ्यगत अर्थ को कभी भी नहीं लेते हैं। जो कि बड़ी वही—वही मुद्रा है, वही आसन है, वही व्यवस्था है-सब वही ही गलत बात है। वे सदा ही उसको मेटाफर बना लेते हैं। वह सिर्फ | | है। दसवें दिन उसने पूछा कि एक सवाल उठ गया है। रात में सोते मेटाफर नहीं है। जब यह बात कही जा रही है कि जो सबके लिए | हो या क्या करते हो? बुद्ध ने कहा, जब से अज्ञान टूटा, तब से निद्रा है, वह भी संयमी और ज्ञानी के लिए जागरण है, तो इसका सिर्फ शरीर सोता है, मैं नहीं सोता हूं। तो अगर करवट, तो मुझे पहला अर्थ बिलकुल शाब्दिक है। जब आप रात सोते हैं, तब भी बदलनी पड़े, मेरे बिना सहयोग के शरीर नहीं बदल सकता। कोई संयमी नहीं सोता है।
जरूरत नहीं बदलने की। एक ही करवट से काम चल जाता है। तो .. इसे पहले समझ लेना जरूरी है, क्योंकि इसे कहने की हिम्मत फकीर आदमी को जितने से काम चल जाए, उससे ज्यादा के उपद्रव नहीं जटाई जा सकी है आज तक। सदा उसका अर्थ मोहरूपी निशा में नहीं पडना चाहिए। ऐसे ही चल जाता है काम। हाथ जहां रखता
और और सब रूपी बातें कही गई हैं। इसका पहला अर्थ बिलकुल हूं, वहीं रखे रहता हूं। हाथ सो जाता है, मैं नहीं सोता हूं। ही तथ्यगत है।
कृष्ण कहते हैं, जो सबके लिए अंधेरी निद्रा है, वह भी ज्ञानी के जब आप-रात सोते हैं, तब भी ज्ञानी नहीं सोता है। इसका क्या लिए जागरण है। मतलब है? बिस्तर पर नहीं लेटता है! इसका क्या मतलब है? आप भी पूरे नहीं सोते हैं। क्योंकि ज्ञान का कोई न कोई कोना तो आंख बंद नहीं करता है। इसका क्या मतलब है? रात विश्राम को | आप में भी जागा रहता है। यहां हम इतने लोग बैठे हैं, सब सो जाएं, उपलब्ध नहीं होता है। नहीं, यह सब करता है, फिर भी नहीं सोता। | रात कोई आदमी आकर चिल्लाए, राम! सबको सुनाई पड़ेगा, है। दो-तीन उदाहरण से इस बात को समझें।।
| लेकिन सबको सुनाई नहीं पड़ेगा। जिसका नाम राम है, वह कहेगा, बुद्ध ने आनंद को दीक्षा दी। वह उनका चचेरा भाई था और बड़ा | कौन बुला रहा है? कान सबके हैं, सब सोए हैं। राम शब्द गूंजा है, भाई था। तो दीक्षा लेते वक्त आनंद ने कहा कि दीक्षा के बाद तो | तो सबको सुनाई पड़ा है। लेकिन जो राम है, वह कहता है, कौन तुम गुरु और मैं शिष्य हो जाऊंगा, तो मैं तुमसे फिर कुछ कह न | बुला रहा है? रात में कौन गड़बड़ करता है? सोने नहीं देता! सकूँगा। अभी मैं तुम्हें आज्ञा दे सकता हूं, मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूं। ___ क्या हुआ! जरूर इसके भीतर चेतना का एक कोना इस रात में दीक्षा लेने के पहले मैं तुम्हें दो-तीन आज्ञाएं देता हूं, जो तुम्हें छोटे | भी जागा है; पहरा दे रहा है। पहचानता है कि राम नाम है अपना। भाई की तरह माननी पड़ेंगी। बुद्ध ने कहा, कहो।
__मां सोई है रात, तूफान आ जाए बाहर, आंधी आ जाए, बादल आनंद ने कहा, एक तो यह कि मैं चौबीस घंटे तुम्हारे साथ | गरजें, बिजली चमके, उसकी नींद नहीं टूटती। उसका बच्चा रहंगा। रात तम सोओगे जहां, वहीं मैं भी सोऊंगा। दसरा यह कि |
| जरा-सा कुनकुन करे, वह फौरन हाथ रख लेती। भीतर कोई हिस्सा जब भी मैं कोई सवाल पूछं, तुम्हें उसी वक्त उत्तर देना पड़ेगा, टाल | जागा हुआ है मां का, वह देख रहा है कि बच्चे को कोई गड़बड़ न न सकोगे। तीसरा यह कि मैं अंधेरी आधी रात में भी किसी को | हो जाए। और बच्चे की गड़बड़ इतनी धीमी है कि मां के एक हिस्से
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