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गीता दर्शन भाग-1 -AAR
नाटक चलता और कोई दुख, ट्रेजेडी होती, तो वह ऐसी धुआंधार पूछते हैं! मैं तो पिता हूं, मैं तो पति हूं, मैं तो क्लर्क है, मैं तो मालिक रोती थी कि नौकर रूमाल लिए खड़े रहते-शाही घर की लड़की हूं। लेकिन ये सब फंक्शंस हैं। यह सब दूसरों से जुड़े होना है। थी-तत्काल रूमाल बदलने पड़ते थे। चार-चार, छह-छह, | __ अयुक्त व्यक्ति दूसरों से जुड़ा होता है। जो दूसरों से जुड़ा होता आठ-आठ रूमाल एक नाटक, एक थिएटर में भीग जाते। तो है, उसमें भावना कभी पैदा नहीं होती। क्योंकि भावना तभी पैदा टाल्सटाय ने लिखा है कि मैं उसके बगल में बैठकर देखा करता | होती है, जब कोई अपने से जुड़ता है। जब अपने भीतर के झरनों था, मेरी मां कितनी भावनाशील!
से कोई जुड़ता है, तब भावना का स्फुरण होता है। जो दूसरों से लेकिन जब मैं बड़ा हुआ तब मुझे पता चला कि उसकी बग्घी | | जुड़ता है, उसमें भावना नहीं होती–एक। जो दूसरों से जुड़ा होता बाहर छह घोड़ों में जुती खड़ी रहती थी और आज्ञा थी कि कोचवान | है, वह सदा अशांत होता है-दो। क्योंकि शांति का अर्थ ही अपने बग्घी पर ही बैठा रहे। क्योंकि कब उसका मन हो जाए थिएटर से भीतर जो संगीत की अनंत धारा बह रही है, उससे संयुक्त हो जाने जाने का, तो ऐसा न हो कि एक क्षण को भी कोचवान ढूंढ़ना पड़े। के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। बाहर बर्फ पड़ती रहती और अक्सर ऐसा होता कि वह थिएटर में | शांति का अर्थ है, इनर हार्मनी; शांति का अर्थ है, मैं अपने भीतर नाटक देखती, तब तक एक-दो कोचवान मर जाते। उनको फेंक तृप्त हूं, संतुष्ट हूं। अगर सब भी चला जाए, चांद-तारे मिट जाएं, दिया जाता, दूसरा कोचवान तत्काल बिठाकर बग्घी चला दी जाती। आकाश गिर जाए, पृथ्वी चली जाए, शरीर गिर जाए, मन न रहे, वह औरत बाहर आकर देखती कि मुरदे कोचवान को हटाया जा | फिर भी मैं जो हूं, काफी हूं-मोर दैन इनफ–जरूरत से ज्यादा, रहा है और जिंदा आदमी को बिठाया जा रहा है। और वह थिएटर काफी हूं। के लिए रोती रहती, वह थिएटर में जो ट्रेजेडी हो गई! पाम्पेई नगर में, पाम्पेई का जब विस्फोट हुआ, ज्वालामुखी
तो टाल्सटाय ने लिखा है कि एक अर्थ में यह कहानी मेरी फूटा, तो सारा गांव भागा। आधी रात थी। गांव में एक फकीर भी आटोबायोग्राफिकल भी है, आत्म-कथ्यात्मक भी है। ऐसा मैंने | | था। कोई अपनी सोने की तिजोरी, कोई अपनी अशर्फियों का अपनी आंख से देखा है। तब मझे पता चला कि भावना कोई और बंडल, कोई फर्नीचर, कोई कुछ, कोई कुछ, जो जो बचा सकता चीज होगी। फिर यह चीज भावना नहीं है।
है, लोग लेकर भागे। फकीर भी चला भीड़ में; चला, भागा नहीं। जिसको हम भावना कहते हैं, कृष्ण उसको भावना नहीं कह रहे। भागने के लिए या तो पीछे कुछ होना चाहिए या आगे कुछ होना भावना उठती ही उस व्यक्ति में है, जो अपने से संयुक्त है, जो चाहिए। भागने के लिए या तो पीछे कुछ होना चाहिए, जिससे अपने में युक्त है। युक्त यानी योग को उपलब्ध, युक्त यानी जुड़ भागो; या आगे कुछ होना चाहिए, जिसके लिए भागो। गया जो, संयुक्त। अयुक्त अर्थात वियुक्त–जो अपने से जुड़ा सारा गांव भाग रहा है, फकीर चल रहा है। लोगों ने उसे धक्के हुआ नहीं है। वियुक्त सदा दूसरों से जुड़ा रहता है। युक्त सदा अपने | भी दिए और कहा कि यह कोई चलने का वक्त है! भागो। पर उसने से जुड़ा रहता है।
कहा, किससे भागू और किसके लिए भागू? लोगों ने कहा, पागल वियुक्त सदा दूसरों से जुड़ा रहता है। उसके सब लिंक दूसरों से | हो गए हो! यह कोई वक्त चलने का है। कोई टहल रहे हो तुम! होते हैं। वह किसी का पिता है, किसी का पति है, किसी का मित्र | यह कोई तफरीह हो रही है! है. किसी का शत्र है. किसी का बेटा है. किसी का भाई है. किसी उस आदमी ने कहा. लेकिन मैं किससे भागे। मेरे पीछे कछ की बहन है, किसी की पत्नी है। लेकिन खुद कौन है, इसका उसे | नहीं, मेरे आगे कुछ नहीं। लोगों ने उसे नीचे से ऊपर तक देखा और कोई पता नहीं होता। उसकी अपने बाबत सब जानकारी दूसरों के | उससे कहा कि कुछ बचाकर नहीं लाए! उसने कहा, मेरे सिवाय बाबत जानकारी होता है। पिता है, अर्थात बेटे से कुछ संबंध है। | मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैंने कभी कोई चीज बचाई नहीं, इसलिए पति है, यानी पत्नी से कोई संबंध है। उसकी अपने संबंध में सारी | खोने का उपाय नहीं है। मैं अकेला काफी हूं। खबर दूसरों से जुड़े होने की होती है।
कोई रो रहा है कि मेरी तिजोरी छूट गई। कोई रो रहा है कि मेरा __ अगर हम उससे पूछे कि नहीं, तू पिता नहीं, भाई नहीं, मित्र यह छूट गया। कोई रो रहा है कि मेरा वह छूट गया। सिर्फ एक नहीं-तू कौन है ? हू आर यू? तो वह कहेगा, कैसा फिजूल सवाल | आदमी उस भीड़ में हंस रहा है। लोग उससे पूछते हैं, तुम हंस क्यों
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