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________________ SIY मन के अधोगमन और ऊर्ध्वगमन की सीढ़ियां मिल ही मत जाना, क्योंकि मिल ही गए कि मोह नष्ट हो जाता है। कि अब कल्पना करने को भी कुछ नहीं बचा है। स्त्री पूरी दिखाई वेश्याएं भी जानती हैं कृष्ण के राज को; उनको भी पता है। | पड़ जाती है और चित्त में कोई बिजली नहीं कौंधती। अब यह बड़े मजे की बात है। खयाल में आती है, आपसे कहता नग्न स्त्री उतनी आकर्षक नहीं है, नग्न पुरुष उतना आकर्षक नहीं हूं। स्त्रियां थीं पृथ्वी की बूंघट में दबी, अंधेरे में छिपी। पति भी नहीं | है। और स्त्रियां पुरुषों से ज्यादा होशियार हैं, इसलिए कोई स्त्री नग्न देख पाता था सूरज की रोशनी में। कभी खुले में बात भी नहीं कर | | पुरुष में कभी उत्सुकता नहीं लेती। गहरे से गहरे प्रेम के क्षण में पाता था। अपनी पत्नी से भी बात चोरी से ही होती थी, रात के अंधेरे | स्त्रियां आंख बंद कर लेती हैं कि पुरुष दिखाई ही न पड़े। स्त्रियां में, वह भी खुसुर-फुसुर। क्योंकि सारा बड़ा परिवार होता था, कोई | ज्यादा होशियार हैं, शायद इसटिंक्टिवली वे प्रकृति के ज्यादा करीब सुन न ले! आकर्षण गहरा था, मोह जिंदगीभर चलता था। हैं और राजों से परिचित हैं। स्त्री उघड़ी, परदा गया—अच्छा हुआ, स्त्री के लिए बहुत कृष्ण कहते हैं, क्रोध से मोह पैदा होता है। क्योंकि क्रोध से बाधा अच्छा हुआ-सूरज की रोशनी आई। लेकिन साथ ही मोह क्षीण | पैदा होती है। जहां भी बाधा है, वहां आकर्षण खड़ा हो जाता है। हुआ। स्त्री और पुरुष आज कम मोहग्रस्त हैं। आज स्त्री उतनी । अब यह बड़े मजे की बात है कि जिन लोगों ने बाधाएं खड़ी की आकर्षक नहीं है, जितनी सदा थी। और यूरोप और अमेरिका में | हैं, वे ही आकर्षण के लिए जिम्मेदार हैं। ईसाइयत ने पाप को इतना और भी अनाकर्षक हो गई है। क्योंकि चेहरा ही नहीं उघड़ा, पूरा | आकर्षक बना दिया, क्योंकि पाप के लिए इतनी बाधाएं खड़ी की। शरीर भी उघड़ा। आज यूरोप और अमेरिका के समुद्र-तट पर स्त्री | | धर्मों ने सेक्स को बहुत आकर्षक बना दिया, क्योंकि उसके लिए करीब-करीब नग्न है, पास से चलने वाला रुककर भी तो नहीं | बहुत बाधाएं खड़ी की। देखता; पास से गुजरने वाला ठहरकर भी तो नहीं देखता कि नग्न ___ आमतौर से लोग समझते हैं कि फिल्में हैं, नग्न-चित्र हैं, स्त्री है। नग्न-अश्लील तस्वीरें हैं—ये लोगों को कामुक बना रही हैं। कृष्ण कभी आपने देखा, बुरके में ढकी औरत जाती हो, तो पूरी सड़क यह नहीं कह सकते कि कामुक बना रही हैं। कृष्ण कहेंगे कि यह उत्सुक हो जाती है। ढके का आकर्षण है, क्योंकि ढके में बाधा है। लोगों का तो सारा मोह खराब कर देंगी। क्योंकि लोगों के लिए जहां बाधा है, वहां मोह है। जहां बाधा नहीं है, वहां मोह नहीं है। | अनाकर्षक हो जाएगी, जो चीज परिचित हो जाती है। जिसमें बाधा स्त्री और पुरुष का आकर्षण जितना सेक्सुअल है, जितना नहीं है, वह अनाकर्षक हो जाती है। कामुक है, उससे ज्यादा सोशल है, कल्चरल है। जितना ज्यादा ___ अगर कृष्ण से हम पूछे मनोविज्ञान का सत्य, तो वह यह है कि काम से पैदा हुआ है, उतना काम में डाली गई सामाजिक बाधाओं अगर दुनिया में स्त्री-पुरुष के आकर्षण को बढ़ाना हो, तो नग्न से पैदा हुआ है। तस्वीरें बंद करो, अश्लील तस्वीरें बंद करो, स्त्री को नग्न मत करो। अब मैं मानता हूं कि आज नहीं कल, पचास साल के भीतर, ढांको; बाधाएं खड़ी करो; स्त्री-पुरुष को एकदम मिल जाने की सारी दुनिया में बूंघट वापस लौट सकता है। आज कहना बहुत सुविधा मत बनाओ; असुविधाएं खड़ी करो-अगर मोह पैदा मुश्किल मालूम पड़ता है, यह भविष्यवाणी करता हूं, पचास साल करना है। में धूंघट वापस लौट आएगा। क्योंकि स्त्री-पुरुष इतनी अनाकर्षक । अगर कृष्ण से हम पूछे, तो कृष्ण वह जवाब नहीं देंगे, जो हालत में जी न सकेंगे। वे आकर्षण फिर पैदा करना चाहेंगे। आने | हिंदुस्तान के सब साधु दे रहे हैं। वे कह रहे हैं कि फिल्मों में चुंबन वाले पचास वर्षों में स्त्रियों के वस्त्र फिर बड़े होंगे, फिर उनका | न हो। चुंबन हुआ, तो लोग कामुक हो जाएंगे। गलत हैं। उन्हें शरीर ढकेगा। | बिलकुल मनोविज्ञान का कोई भी पता नहीं। कृष्ण को ज्यादा पता बटैंड रसेल ने लिखा है कि जब वह बच्चा था, तो विक्टोरियन | | है। वह कृष्ण कह रहे हैं कि अगर बाधा बिलकुल नहीं है, तो मोह युग समाप्त हो रहा था। और स्त्रियों के पैर का अंगूठा भी देखना | बिलकुल गिर जाएगा। अगर चीजें बिलकुल साफ हैं, तो आकर्षण मुश्किल था। घाघरा ऐसा होता था, जो जमीन छूता था। तो बर्दैड | खो देती हैं। निषेध में निमंत्रण है। जहां ढका है, वहां उघाड़ने का रसेल ने लिखा है कि अगर किसी स्त्री के पैर का अंगूठा भी दिख मन है। जहां बाधा है! जाता था, तो चित्त में बिजली कौंध जाती थी। और उसने लिखा है। अब मेरी अपनी समझ यही है कि पुरानी मनुष्य की संस्कृति स्त्री | 273|
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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