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________________ न के अधोगमन और ऊर्ध्वगमन की सीढ़ियां - कभी पैदा न होगा। लेकिन काम की नदी बहती है और बाधाओं के है, तो भी आप दो हैं और दो होना भी काफी बड़ी बाधा है। और पत्थर चारों ओर खड़े हैं। वे खड़े ही हैं। कोई आपके काम को क्रोध रोज-रोज जन्मेगा; जरा-जरा सी बात में जन्मेगा। रोकने के लिए नहीं खडे हैं वे. वे खडे ही थे। आपके काम ने वहां - आप सबह पांच बजे उठना चाहते हैं और आपकी स्त्री सबह छ: से बहना शुरू किया। बजे उठना चाहती है। बस, इतना भी काफी है। कोई पुलिस, ___ अब एक स्त्री सुंदर मुझे दिखाई पड़ी; मैंने उसे चाहना शुरू | अदालत, कानून और राज्य की जरूरत नहीं है क्रोध के लिए. इतनी किया। अब हजार पत्थर हैं। उस स्त्री का पति भी है, वह भी पत्थर ही बाधा काफी है। छोटी-छोटी अड़चनें चाह में खड़ी होती हैं और है। उस स्त्री का पिता भी है, वह भी पत्थर है। उस स्त्री का भाई भी | बाधा खड़ी हो जाती है। वह दूसरा व्यक्ति भी व्यक्ति है, मशीन है, वह भी पत्थर है। कानून भी है, अदालत भी है, पुलिस भी नहीं है। उसकी भी अपनी चिंतना है, अपना सोचना है, अपना ढंग है-वे भी पत्थर हैं। और ये कोई भी न हों, तो कम से कम वह है। और दो चिंतन एकदम पैरेलल नहीं हो पाते; हो नहीं सकते। स्त्री भी तो है। मैंने चाहा इसलिए वह चाहे. यह तो जरूरी नहीं है। सिर्फ दो मशीनें समानांतर हो सकती हैं, दो व्यक्ति कभी समानांतर मेरी चाह कोई उसके लिए नियम और कानून तो नहीं है। वह स्त्री नहीं हो सकते। तो है ही; इस जगत में हम सारे पत्थर हटा दें, तो भी वह स्त्री तो है | - असल में दो व्यक्तियों का साथ रहना उपद्रव है। न रहना भी ही। और फिर अगर वह स्त्री भी राजी हो, तो भी पत्थर नहीं रहेंगे, | | उपद्रव है, क्योंकि चाह है। साथ न रहें, तो पूरी नहीं हो सकती। ऐसा नहीं है। साथ रहें, तो भी पूरी नहीं हो पाती है। यहां थोड़े और गहरे उतरना पड़ेगा। ___ तो वे जितनी अड़चनें हैं, वे सब काम में अड़चनें, पत्थर बन अगर ऐसा भी हम कर लें जैसा कि समाजशास्त्री सोचते हैं, जाती हैं और क्रोध को जन्माती हैं। कामी क्रोधी हो जाता है। जैसा कि समाजवादी सोचते हैं कि सारे पत्थर अलग कर दें; जैसा अगर कृष्ण ने कहा है कि स्थितप्रज्ञ को क्रोध नहीं होता, तो कि हिप्पी और बीटनिक और प्रवोस सोचते हैं कि सारे पत्थर अलग उसका कारण यही है कि स्थितप्रज्ञ को काम नहीं होता; वह निष्काम कर दो-कानून अलग करो, पुलिस अलग करो-जहां-जहां | है। ये नेसेसरी स्टेप्स हैं, ये अनिवार्य सीढ़ियां हैं, जो एक के पीछे पत्थर है, वह अलग कर दो, क्योंकि व्यर्थ ही उनसे क्रोध पैदा होता चली आती हैं। और एक को लाएं, तो दूसरे को लाना पड़ता है। है और मनुष्य दुखी होता है। सब पत्थर अलग कर दो। तो भी एक | वह दूसरा उससे इतना बंधा है कि वह एक को लाते वक्त ही उसके स्त्री को पचीस पुरुष नहीं चाह लेंगे, एक पुरुष को पचीस स्त्रियां | साथ छाया की तरह भीतर प्रवेश कर जाता है। आपको मैंने निमंत्रण नहीं चाह लेंगी, इसका क्या उपाय है? दिया, आपकी छाया भी मेरे घर में आ जाती है। आपकी छाया को ___ असल में कानून और व्यवस्था इसीलिए बनानी पड़ी कि | मैंने कभी निमंत्रण नहीं दिया था, पर वह आपके साथ ही है, वह अव्यवस्था इससे भी बदतर हो जाएगी। यह बदतर है काफी, लेकिन भीतर चली आती है। अव्यवस्था इससे भी बदतर हो जाएगी। यह चुनाव रिलेटिव है। यह ___ काम के पीछे आता है क्रोध। अगर चित्त में क्रोध हो, तो जरा बदतर है काफी कि हर जगह चाह के बीच में उपद्रव खड़ा है, लेकिन | | भीतर खोजने से पता चलेगा, कहीं काम है। अटका हुआ काम अगर सारे उपद्रव हटा लो, तो महाउपद्रव खड़ा हो जाएगा। अभी | क्रोध है। रुका हुआ काम क्रोध है। बाधा डाला गया काम क्रोध है। एक ही पति है उसका खड़ा। पति की व्यवस्था को हटा दो, तो हजार | क्रोध का सांप फुफकारता तभी है, तभी वह फन फैलाता है, जब पति नहीं खड़े हो जाएंगे, इसका क्या उपाय है रोकने का ? अभी एक मार्ग में कोई अडचन आ जाती है और द्वार नहीं मिलता है। जब ही पत्नी उस पति के ऊपर पहरा दे रही है। हटा दो उसे, तो हजार कोई रोकता है, कोई अटकाता है...। पत्नियां नहीं पहरा देंगी, इसकी क्या गारंटी है? फिर हम अकेले नहीं हैं इस जगत में। विराट यह जगत है। सभी फिर हम कल्पना भी कर लें कि सब हटा दिया जाए और ऐसा की कामनाएं एक-दूसरे की कामनाओं को क्रिस-क्रास कर जाती भी कुछ हो जाए कि बाहर से कोई बाधा नहीं आती, तो भीतरी हैं; तो सब जगह अटकाव हो जाता है। मैं कुछ चाहता हूं, लेकिन बाधाएं हैं, जो और भी बड़ी बाधाएं हैं। क्योंकि जिस स्त्री को आप साढ़े तीन अरब लोग और हैं पृथ्वी पर, वे कुछ चाहते हैं। फिर चाहते हैं, जो स्त्री आपको चाहती है, बीच में और कोई बाधा नहीं| अदृश्य परमात्मा है, फिर अदृश्य जीव-जंतु हैं, फिर अदृश्य 271]
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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