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________________ मन के अधोगमन और ऊर्ध्वगमन की सीढ़ियां अफ्रीका में जो स्त्री पागल कर सकती है पुरुषों को, वही भारत में सिर्फ पागलों को आकर्षित कर सकती है। क्या हो गया ! स्त्री वही है, तथ्य वही है, लेकिन व्याख्या करने वाले दूसरे हैं। जब हम कहते हैं, सुंदर है, तभी हम सम्मिलित हो गए, तभी तथ्य नहीं रहा। बुद्ध एक वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे हैं। रात है पूर्णिमा की। गांव से कुछ मनचले युवक एक वेश्या को लेकर पूर्णिमा की रात मनाने आ गए हैं। उन्होंने वेश्या को नग्न कर लिया है, उसके वस्त्र छीन लिए हैं। वे सब शराब में मदहोश हो गए हैं, वे सब नाच-कूद रहे हैं। उनको बेहोश हुआ देखकर वेश्या भाग निकली। थोड़ा होश आया, तो देखा, जिसके लिए नाचते थे, वह बीच में नहीं हैं। खोजने निकले। जंगल है, किससे पूछें? आधी रात है । फिर उस वृक्ष के पास आए, जहां बुद्ध बैठे हैं। तो उन्होंने कहा, यह भिक्षु यहां बैठा है, यही तो रास्ता है एक जाने का। अभी तक कोई दोराहा भी नहीं आया। वह स्त्री जरूर यहीं से गुजरी होगी । तो उन्होंने बुद्ध को कहा कि सुनो भिक्षु, यहां से कोई एक नग्न सुंदर युवती भागती हुई निकली है ? देखी है? बुद्ध ने कहा, कोई निकला जरूर, लेकिन युवती थी या युवक, कहना मुश्किल है। क्योंकि व्याख्या करने की मेरी कोई इच्छा नहीं। कोई निकला है जरूर, सुंदर था या असुंदर, कहना मुश्किल है। क्योंकि जब अपनी चाह न रही, तो किसे सुंदर कहें, किसे असुंदर कहें ! सौंदर्य चुनाव है, सौंदर्य निर्णय है। असल में जैसे ही सुंदर कहा, मन के किसी कोने पर बनना शुरू हो गया भाव - कि मिले। सौंदर्य पसंदगी की शुरुआत है। वह वक्तव्य सिर्फ तथ्य का नहीं, वह वक्तव्य वासना का है। वासना छा गई है तथ्य पर; वह कहती है, सुंदर है। हम साधारणतया कहेंगे कि नहीं, सुंदर कहने से कोई मतलब नहीं होता। सुंदर है । जब पहला मन का विषयों में गमन शुरू होता है, तो अति सूक्ष्म है। वह ऐसे ही शुरू होता है: सुंदर है, असुंदर है; प्रीतिकर है, अप्रीतिकर है; अच्छा लगता है, बुरा लगता है। चाह जब पैदा होती है पहले, तो पसंद और नापसंद के रूप में झलकती है, फिर बढ़ती है। अभी बीज है, अभी पहचानना बहुत मुश्किल है। अभी कोई कृष्ण, कोई बुद्ध पहचान सकेगा । हम तो तब पहचानेंगे, जब वृक्ष हो जाएगा। लेकिन बीज से मुक्त हुआ जा सकता है, वृक्ष से मुक्त होना अति कठिन है। जितनी बढ़ जाएगी वासना भीतर गहरी और प्रगाढ़ और जड़ों को फैला देगी, उतना ही उससे छूटना कठिन होता जाएगा। जब अभी वासना सिर्फ बीज है, जब उसमें कोई जड़ें नहीं हैं अभी अभी जब उसने चित्त की भूमि में कहीं जड़ों को फैलाकर भूमि को पकड़कर कस नहीं लिया है, तब तक बहुत आसान है। बीज फेंके जा सकते हैं, वृक्षों को काटना और उखाड़ना पड़ता है। और मजा यह है कि वृक्ष काटने से भी कटते हों, ऐसा नहीं है। | अक्सर तो काटने से सिर्फ कलम होती है। एक शाखा कटती है और चार शाखाएं निकल आती हैं। जड़ों तक काट डालने से भी | जड़ें नए अंकुर और नई कोंपलें छोड़ जाती हैं और एक वृक्ष के अनेक वृक्ष भी हो जाते हैं। और जड़ों को उखाड़ना बहुत कठिन है, क्योंकि जड़ें मनुष्य के मन के अचेतन गर्भों में फैल जाती हैं। उन तक पहुंचना भी मुश्किल हो जाता है। इसलिए कृष्ण का यह सूत्र साधक के लिए बहुत समझ लेने जैसा है। इस पर पूरा ही, मन के रूपांतरण की पूरी काजेलिटी, पूरा कारण, उसका राज छिपा है। तथ्य तभी तक तथ्य है, जब तक आपने व्याख्या नहीं की है। बुद्ध ने कहा, निकला कोई जरूर। यह व्याख्या नहीं है, निकला है। | कोई। युवक था कि युवती, कहना कठिन है। क्योंकि – बुद्ध ने | कहा- जब तक मेरे भीतर पुरुष बहुत लालायित था, तब तक बाहर खोज चलती थी, कौन स्त्री, कौन पुरुष ! 269 स्त्री और पुरुष भी, तथ्य होते हुए भी, हमारी व्याख्या के कारण ही वह तथ्य दिखाई पड़ता है। अब यह बड़े मजे की बात है। हम जिंदगी में सब भूल जाते हैं । एक आदमी मुझे आज मिले। मैं भूल जाता हूं कि उसका नाम क्या है दस साल बाद; भूल जाता हूं, जाति क्या है, धर्म क्या है, चेहरा कैसा था, आंखें कैसी थीं, कितना पढ़ा-लिखा था - सब भूल जाता हूं। एक बात नहीं भूल पाता कि स्त्री था कि पुरुष था। यह बड़े मजे की बात है। कभी आप भूले हैं किसी के बाबत कि मुझे पक्का याद नहीं आता कि वह जो मिला था, स्त्री थी या पुरुष था? सब भूल जाते हैं— नाम, शकल, चेहरा, जाति, धर्म – कई बार यह भी शक होता है कि वह मिला था कि नहीं मिला था, यह भी भूल सकते हैं। लेकिन वह स्त्री थी या पुरुष, यह नहीं भूल सकते हैं। जरूर और सब पहचान यह स्त्री और पुरुष की पहचान आपके किसी गहरे मन ने की है, जहां से भूल नहीं होती । अगर एक हवाई जहाज आपके गांव में गिर पड़े, समझें कोई अंतरिक्ष यान गिर पड़े, कोई दूसरे ग्रह के यात्री का जहाज आपके
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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