________________
Sam
गीता दर्शन भाग-1 AM
ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते। | सुंदर बलिष्ठ पुरुष को; आंख में एक कौंध और व्यक्ति निकल संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ।। ६२ ।। | जाता है। वह जो सुंदर स्त्री या सुंदर पुरुष या सुंदर कार या सुंदर विषयों को चिंतन करने वाले पुरुष की उन विषयों में | भवन दिखाई पड़ा है-तत्क्षण भीतर खोजने की जरूरत है-जैसे आसक्ति हो जाती है। और आसक्ति से उन विषयों की | ही वह दिखाई पड़ा है, क्या आपको सिर्फ दिखाई ही पड़ा है, सिर्फ कामना उत्पन्न होती है। और कामना में विघ्न पड़ने से | आपने देखा ही, या देखने के साथ ही मन के किसी कोने में चाह क्रोध उत्पन्न होता है।
| ने भी जन्म लिया! सिर्फ देखा ही या चाहा भी! दिखाई पड़ी है एक क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविनमः ।। | सुंदर स्त्री, देखी ही या भीतर कोई और भी कंपन उठा–चाह का स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ।। ६३ ।। | भी. मांग का भी. पा लेने का भी. पजेस करने का भी। क्रोध से मोह उत्पन्न होता है। और मोह से स्मरणशक्ति अगर सिर्फ देखा, तो बात आई और गई हो गई। सिर्फ भ्रमित हो जाती है। और स्मरणशक्ति के प्रमित हो जाने से | बहिर-इंद्रियों ने भाग लिया। आंख ने देखा, मन ने खबर की, कोई बुद्धि अर्थात ज्ञानशक्ति का नाश हो जाता है। और बुद्धि के | जाता है। लेकिन चाहा भी, तो जो देखा, वहीं बात समाप्त नहीं हो. नाश होने से यह पुरुष अपने श्रेय साधन से गिर जाता है। | गई। मन में वर्तुल शुरू हो गए, मन में लहरें शुरू हो गईं। देखने तक
बात समाप्त नहीं हुई; भीतर चाह ने भी जन्म लिया, मांग भी उठी।
आप कहेंगे, नहीं, मांगा नहीं, चाहा नहीं; देखा, सिर्फ इतना हुआ या नुष्य के मन की भी अपनी शृंखलाएं हैं। मनुष्य के मन | मन में कि सुंदर है। इस बात को ठीक से समझ लेना जरूरी है। 01 के भी ऊर्ध्वगमन और अधोगमन के नियम हैं। मनुष्य __ इतना भी मन में उठा कि सुंदर है, तो चाह ने अपने अंकुर फैलाने
___ के मन का अपना विज्ञान है। यहां मनुष्य के मन का । | शुरू कर दिए। क्योंकि सुंदर का कोई और मतलब नहीं होता। सुंदर अधोगमन कैसे होता है, कैसे वह पतन के मार्ग पर एक-एक सीढ़ी । | का इतना ही मतलब होता है, जिसे चाहा जा सकता है। सुंदर का उतरता है, कृष्ण उन सीढ़ियों का पूरा ब्योरा दे रहे हैं। और कोई मतलब नहीं होता। असुंदर का इतना ही मतलब होता है,
सूक्ष्मतम होता है प्रारंभ, स्थूलतम हो जाता है अंत। मन के बहुत | | जिसे नहीं चाहा जा सकता। गहरे में उठती है लहर, फैलती है, और पूरे मन को ही नहीं, पूरे सुंदर है, इस वक्तव्य में चाह कहीं दिखाई नहीं पड़ती, यह आचरण को, पूरे व्यक्तित्व को ग्रसित कर लेती है। सूक्ष्म उठी इस वक्तव्य बड़ा निर्दोष मालूम पड़ता है। यह वक्तव्य सिर्फ स्टेटमेंट लहर को इसके स्थूल तक पहुंचने की जो पूरी प्रक्रिया है, जो उसे आफ फैक्ट मालूम पड़ता है। नहीं, लेकिन यह सिर्फ तथ्य का पहचान लेता है. वह उससे बच भी सकता है, वह उसके पार भी वक्तव्य नहीं है। इसमें आप संयक्त हो गए। क्योंकि चीजें अपने जा सकता है।
आप में न सुंदर हैं, न असुंदर हैं; चीजें सिर्फ हैं। आपने व्याख्या कहां से मन का पतन शुरू होता है? कहां से मन संसार-उन्मुख डाल दी। होता है? कहां से मन स्वयं को खोना शुरू करता है? . एक स्त्री निकली है राह से; वह सिर्फ है। सुंदर और असुंदर
तो कृष्ण ने कहा है कि विषय के चिंतन से, वासना के विचार से। | देखने वाले की व्याख्या है। सुंदर-असुंदर उसमें कुछ भी नहीं है। जो पहला वर्तुल, जहां से पकड़ा जा सकता है, वह है विचार का | व्याख्याएं बदलती हैं, तो सौंदर्य बदल जाते हैं। चीन में चपटी नाक वर्तुल-सूक्ष्मतम, जहां से हम पकड़ सकते हैं। विषय की इच्छा, | सुंदर हो सकती है, भारत में नहीं हो सकती। चीन में उठे हुए गाल विषय का विचार, भोग की कामना उठती है मन में। विषय का संग | की हड्डियां सुंदर हैं, भारत में नहीं हैं। अफ्रीका में चौड़े ओंठ सुंदर हैं करने की आकांक्षा जगती है मन में। वह पहली लहर है, जहां से सब | और स्त्रियां पत्थर लटकाकर अपने ओंठों को चौड़ा करती हैं। सारी शुरू होता है। काम की जो बीज-स्थिति है, वह विषय का विचार | दुनिया में कहीं चौड़े ओंठ सुंदर नहीं हैं, पतले ओंठ सुंदर हैं। वे है। संग की कामना पैदा होती है, भोग की कामना पैदा होती है। | हमारी व्याख्याएं हैं, वे हमारी सांस्कृतिक व्याख्याएं हैं। एक समाज
राह पर देखते हैं भागती एक कार को। चमकती हुई, आंखों में | | ने क्या व्याख्या पकड़ी है, इस पर निर्भर करता है। फिर फैशन बदल कौंधकर निकल जाती है। देखते हैं एक सुंदर स्त्री को; देखते हैं एक | | जाते हैं, सौंदर्य बदल जाता है। तथ्य वही के वही रहते हैं।
268|