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________________ - विषय-त्याग नहीं-रस-विसर्जन मार्ग है +HIK पर आरोपित होने लगता है, और आग्रह निर्मित करने लगता है, | | कितनी बार आपने सपने देखे, वह सब ग्राफ बता देता है। अब तो और कल्पनाएं सजाने लगता है, और सपने निर्माण करने लगता धीरे-धीरे, धीरे-धीरे समझ में आ रहा है कि किस तरह का सपना है, तब, तब हम एक जाल में खो जाते हैं, जो जाल बाहर की इंद्रियों | | देखा! ग्राफ से वह भी पता चलने लगा है। क्योंकि जब आप का नहीं है, अंतर-इंद्रियों का है। | सेक्सुअल सपना देखते हैं, जब आप कामुक सपना देखते ___ अंतर-इंद्रियों को सिकोड़ लेता है स्थितधी। कैसे सिकोड़ लेता हैं और सौ में से कम से कम पचास सपने कामुक होते हैं सभी होगा? क्योंकि बहिर-इंद्रियों को सिकोड़ना तो बहुत आसान समझ | | के, साधारणतः सभी के; जो असाधारण हैं, उनके जरा और ज्यादा में आता है। यह हाथ फैला है, इसको सिकोड़ लिया। इसके लिए | | परसेंटेज में होते हैं; पचास प्रतिशत कामुक सपने-तब तो आंख कोई स्थितप्रज्ञ होने की जरूरत नहीं है। कछुआ स्थितप्रज्ञ नहीं है, ही नहीं, जननेंद्रिय भी तत्काल प्रभावित हो जाती है। उस पर भी नहीं तो सभी आदमी कछुए हो जाएं और स्थितप्रज्ञ हो जाएं। । | मशीन लगाई जा सकती है, वह भी खबर कर देती है ग्राफ पर। लेकिन बहुत लोगों ने कछुआ बनने की कोशिश की है। कई ___ अब कोई भी नहीं है, आप बिलकुल अकेले हैं अपने सपने में। साधु, संन्यासी, साधक, त्यागी, योगी, कछुआ बनने की कोशिश | न कोई विषय है, न कोई स्त्री है, न कोई पुरुष है, न कोई भोजन में लगे रहे हैं कि कैसे इंद्रियों को सिकोड़ लें। कछुआ बनने से कोई है-कुछ भी नहीं है। निपट अकेले हैं, सब इंद्रियां बंद हैं। फिर हल नहीं है। कछुआ तो सिर्फ एक प्रतीक था, और अच्छा प्रतीक | | यह भीतर कौन गति कर रहा है? ये अंतर-इंद्रियां हैं, जो भीतर गति था। शायद कृष्ण जिस दुनिया में थे, इससे अच्छा प्रतीक और कोई | | कर रही हैं। और इनकी भीतरी गति के कारण इनकी बहिर-इंद्रिय मिल नहीं सकता था। आज भी नहीं है। आज भी हम खोजें कोई | | भी प्रभावित हो जाती है। काट डालें पूरे आदमी को, तो भी कोई दूसरा सब्स्टीटयूट, तो बहुत मुश्किल है। कछुआ बिलकुल ठीक | | फर्क नहीं पड़ेगा। पता नहीं चलेगा बस, सब भीतर-भीतर धुआं से बात कह जाता है-ऐसा कुछ, भीतर के जगत में। लेकिन वह | | होकर घूमने लगेगा। अक्सर सज्जन आदमियों के भीतर सब धुआं भीतर के जगत में होगा कैसे? | हो जाता है, भीतर घूमने लगता है। बुरे आदमी जो बाहर कर लेते बाहर की इंद्रियां सिकोड़ना बहुत आसान है। आंखें फोड़ लेना हैं, अच्छे आदमी भीतर करते रहते हैं। धर्म की दृष्टि से कोई भी कितना आसान है, लेकिन देखने का रस छोड़ना कितना कठिन है! | फर्क नहीं है। सच तो यह है कि आंखें फोड़ लो, तभी पहली दफा पता चलता है। इन भीतर की इंद्रियों को कैसे सिकोड़ेंगे? एक छोटा-सा सूत्र, कि देखने का रस कितना है! रात आंख तो बंद हो जाती है, लेकिन फिर हम दूसरा श्लोक लें। बहुत छोटा-सा सूत्र है भीतर की इंद्रियों सपने तो बंद नहीं होते। और दिनभर जो नहीं देखा, वह भी रात में | को सिकोड़ने का। दिखाई पड़ता है। आंख फोड़ लेंगे, तो क्या होगा? इतना ही होगा ___ एक दिन बुद्ध बैठे हैं ऐसे ही किसी सांझ; बहुत लोग उन्हें सुनने कि सपने चौबीस घंटे चलने लगेंगे। और क्या होगा? | आ गए हैं। एक आदमी सामने ही बैठा हुआ पैर का अंगूठा हिला सपनों पर बहुत खोजबीन हुई है। जब आप रात सपना देखते हैं, रहा है। बुद्ध ने बोलते बीच में उस आदमी से कहा कि क्यों भाई, तो अब तो बाहर से भी पता चल जाता है कि आप सपना देख रहे | यह पैर का अंगूठा क्यों हिलाते हो? वह आदमी भी चौंका, और हैं कि नहीं। अब तो यंत्र बन गए हैं, जो आपकी आंखों पर लगा | लोग भी चौंके, कि कहां बात चलती थी, कहां उस आदमी के पैर दिए जाते हैं रात में, और रातभर अंकित करते रहते हैं कि इस का अंगूठा! बुद्ध ने कहा, यह पैर का अंगूठा क्यों हिल रहा है? आदमी ने कब सपना देखा, कब नहीं देखा। क्योंकि जब आप | उस आदमी का तत्काल अंगूठा रुक गया। उस आदमी ने कहा, सपना देखते हैं, तब बंद आंख में भी आंख तेजी से चलने लगती | | आप भी कैसी बातें देख लेते हैं! छोड़िए भी। बुद्ध ने कहा, नहीं, है। बंद आंख है, देखने को कुछ नहीं है वहां, लेकिन आंख तेजी | | छोडूंगा नहीं। जानना ही चाहता हूं, अंगूठा क्यों हिलता था? तुम्हारे से चलने लगती है। उसके मूवमेंट्स रैपिड हो जाते हैं। इतनी तेजी इतने सवालों के जवाब मैंने दिए, आज पहली दफे मैंने सवाल पूछा • से आंख चलने लगती है, जैसे सच में वह देख रही है अब। है; मुझे उत्तर दो। उस आदमी ने कहा, अब आप पूछते हैं, तो __ तो वह उसकी आंख की गति ऊपर से पकड़ ली जाती है, वह मुश्किल में डालते हैं। सच बात यह है कि मुझे पता ही नहीं था कि ग्राफ बन जाता है कि आंख कब कितनी तेजी से चली। रात में पैर का अंगूठा हिल रहा है; और जैसे ही पता चला, रुक गया। तो 1257
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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