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1- गीता दर्शन भाग-1 AM
पीछे-पीछे ही चले आए हैं।
क्योंकि लैला के सौंदर्य को देखने के लिए मजनू की आंख चाहिए। नदी पार करते हैं, तो एक मुरदे की लाश को लकड़ी समझकर | मजनू के पास कौन-सी आंख है? कोई और तरह की आंख है ? सहारा लेकर नदी पार कर जाते हैं। आंख अपना फंक्शनल काम | आंख तो ऐसी ही है, जैसी मेरी है, आपकी है, उस राजा के पास नहीं कर पा रही है। आंख जो करने के लिए बनी है, वह नहीं कर | थी। आंख तो जैसी सब की है वैसी उसकी भी है। लेकिन आंख पा रही है कि लाश है। न, मन कह रहा है, कहां लाश! मन को | वासनाग्रस्त है। आंख आंख का काम नहीं कर रही है, पीछे जो लाश से कोई लेना-देना नहीं है। मन को पहंचना है उस पार। उस आंख की वासना की इंद्रिय है, वह हावी है। आंख वही देख पार भी नहीं पहुंचना है, वह जो पत्नी चली गई है, उस तक पहुंचना है, जो वासना दिखाना चाह रही है। है। अब मन बिलकुल आंखों का उपयोग नहीं कर रहा है। आंखें ___ इस भीतर की अंतर-इंद्रिय को सिकोड़ लेने की बात हैबिलकुल अंधी हो गई हैं। लाश का सहारा लेकर, लकड़ी | अंतर-इंद्रिय को, दिस इनर इंस्टमेंट, यह जो भीतर है हमारे। समझकर, पार हो जाते हैं। सांप को पकड़कर छत पर चढ़ जाते हैं। इस फासले को ठीक से हमें समझ लेना चाहिए। जब हाथ से मैं
अब यहां अगर हम ठीक से समझें, तो आंख का जो व्यवहार जमीन छूता हूं, तब मेरा हाथ क्या वही काम करता है! जब हाथ से है, जिसके लिए आंख है, वह नहीं हो रहा है। बल्कि आंख के पीछे | मैं पत्थर छूता हूं, तब भी वही करता है! जब हाथ से मैं किसी उसको जो वासना है, वह वासना आंख पर हावी है। आंख वासना से | छूता हूं जिसको मैं छूना चाहता हूं, तब हाथ वही काम करता है? आब्सेस्ड है। वासनाग्रस्त आंख अंधी हो जाती है। वह वही देखती नहीं, हाथ के काम में फर्क पड़ गया है। जब मैं जमीन को छूता है. जो देखना चाहती है: वह नहीं देखती. जो है।
है, तो सिर्फ छूता हूं। कोई वासना नहीं है वह, सिर्फ स्पर्श है, एक कृष्ण जब कहते हैं, कछुए की तरह इंद्रियों को सिकोड़ लेता है। | भौतिक घटना है, एक मानसिक आरोपण नहीं। लेकिन जब मैं स्थितधी, तो मतलब यह नहीं है कि आंखें फोड़ लेता है, कि आंखें | | किसी को प्रेम करता हूं और उसके हाथ को छूता हूं, तब सिर्फ बंद कर लेता है। मतलब इतना ही है कि आंखों से सिर्फ आंखों का | | भौतिक घटना है? ही काम लेता है। सिर्फ देखता ही है आंखों से; वही देखता है, जो नहीं, तब एक मानसिक घटना भी है। हाथ सिर्फ छू ही नहीं रहा है। कानों से वही सुनता है, जो है। हाथों से वही छूता है, जो है।। | है, हाथ कुछ और भी कर रहा है। हाथ कोई सपना भी देख रहा है। विषयों पर वासना को आरोपित नहीं करता। विषयों पर वासना के हाथ किसी ड्रीम में उतर रहा है। हाथ अपने स्पर्श करने के ही सपनों के भवन नहीं बनाता। विषयों को आपूरित नहीं कर देता। अकेले काम को नहीं कर रहा है, स्पर्श के आस-पास काव्य भी
सुना है मैंने कि मजनू को उसके गांव के राजा ने बुलाया और | बुन रहा है, कविता भी गढ़ रहा है। कहा, तू बिलकुल पागल है, साधारण-सी स्त्री है लैला। | वह भीतरी, वह जो भीतरी हाथ है, जो यह कर रहा है, इस भीतरी
आपको भी खयाल न हो. क्योंकि मजन इतना लैला-लैला हाथ के सिकोड लेने की बात कष्ण कह रहे हैं कि स्थितधी चिल्लाया है कि ऐसा खयाल पैदा हो गया है कि लैला कोई बहुत | अंतर-इंद्रियों को ऐसे ही सिकोड़ लेता है, जैसे कछुआ बहिर-इंद्रियों सुंदर स्त्री रही होगी। लैला बहुत साधारण स्त्री है।
| को सिकोड़ लेता है। सम्राट ने बुलाकर कहा कि तू पागल है। बहुत साधारण-सी स्त्री | | लेकिन आदमी को बहिर-इंद्रियां सिकोड़नी नहीं हैं। बहिर-इंद्रियां है, उसके पीछे तू दीवाना है? उससे अच्छी स्त्रियां मैं तुझे बुलाए परमात्मा की बड़ी से बड़ी देन हैं। उनके कारण ही जगत का विराट देता है; कोई भी चुन ले। सम्राट ने नगर की बारह सुंदरतम | हम तक उतरता है, उनके द्वार से ही हम परिचित होते हैं प्रकाश से। लड़कियों को लाकर खड़ा कर दिया। मजनू पर उसे दया आ गई। उनके द्वार से ही आकाश से, उनके द्वार से ही फूलों से, उनके द्वार
मजनू हंसने लगा। उसने कहा कि कहां लैला और कहां ये | से ही मनुष्य के सौंदर्य से, उनके द्वार से ही जगत में जो भी है, उससे स्त्रियां! आपका दिमाग तो ठीक है? लैला के चरणों में भी तो ये कोई हम परिचित होते हैं। नहीं बैठ सकतीं! सम्राट ने कहा, दिमाग मेरा ठीक है कि तेरा ठीक नहीं, इंद्रियां तो द्वार हैं। लेकिन इन द्वार से सिर्फ जो बाहर है, है! मजनू ने कहा, कुछ भी हो, दिमाग से लेना-देना क्या है! लेकिन वह भीतर जाए, तब तक ये द्वार विक्षिप्त नहीं हैं। और जब भीतर एक बात आपसे कहे देता हूं, अब दोबारा यह बात मत उठाना। | | का मन इन द्वार से बाहर जाकर हमले करने लगता है, और चीजों
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