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mm गीता दर्शन भाग-1 AM
फिर उपद्रव हैं बहुत।
लेकिन बायरन को एक स्त्री ने मजबूर कर दिया शादी के लिए। उसने कहा, पहले शादी, फिर कुछ और। पहले शादी, अन्यथा हाथ भी मत छूना। शादी की। चर्च में घंटियां बज रही हैं, मोमबत्तियां जली हैं, मित्र विदा हो रहे हैं, शादी करके बायरन उतर रहा है सीढ़ियों पर अपनी नव-वधू का हाथ हाथ में लिए हुए। और तभी सड़क से एक स्त्री जाती हुई दिखाई पड़ती है। और उसका हाथ छूट गया। और उसकी पत्नी ने चौंककर देखा, और बायरन वहां नहीं है। शरीर से ही है, मन उसका उस स्त्री के पीछे चला गया है।
उसकी पत्नी ने कहा, क्या कर रहे हैं आप? बायरन ने कहा, अरे, तुम हो? लेकिन जैसे ही तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में आया, तुम मेरे लिए अचानक व्यर्थ हो गई हो। मेरा मन एक क्षण को उस स्त्री के पीछे चला गया। और मैं कामना करने लगा कि काश! वह स्त्री मिल जाए।
ईमानदार आदमी है। नहीं तो पहले ही दिन विवाहित स्त्री से इतनी हिम्मत बहुत मुश्किल है कहने की। साठ साल के बाद भी मुश्किल पड़ती है कहना। पहला दिन, पहला दिन भी नहीं, अभी सीढ़ियां ही उतर रहा है चर्च की। वह स्त्री तो चौंककर खड़ी हो गई। लेकिन बायरन ने कहा कि जो सच है वही मैंने तुमसे कहा है।
ऐसा ही है सच हम सब के बाबत। कभी आपने सोचा है कि जिस कार के लिए आप दीवाने थे और कई रात नहीं सोए थे, वह पोर्च में आकर खड़ी हो गई है। फिर! फिर कल दसरी कोई कार सड़क पर चमकती हुई निकलती है और उसकी चमक आंखों में समा जाती है। फिर वही पीड़ा है। जिस मकान के लिए आप दीवाने थे कि पता नहीं उसके भीतर पहुंचकर कौन-से स्वर्ग में प्रवेश हो जाएगा। उसमें प्रवेश हो गया है। और प्रवेश होते ही मकान भल गया और कोई स्वर्ग नहीं मिला। और फिर स्वर्ग कहीं और दिखाई पड़ने लगा। मृग-मरीचिका है। सदा सुख कहीं और है और चित्त दौड़ता रहता है।
कृष्ण कहते हैं, जब सुख यहीं है भीतर, अपने में, तभी प्रज्ञा की स्थिरता उपलब्ध होती है।
अभी इतना ही। फिर सांझ।
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