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________________ m गीता दर्शन भाग-1-m द्वंद्वों से रहित, नित्य वस्तु में स्थित तथा योगक्षेम को लगाव है, उसके खिलाफ हम चुन रहे हैं, तो ज्यादा से ज्यादा हम न चाहने वाला और आत्मवान हो। | दमन कर सकते हैं, सप्रेशन कर सकते हैं। और कुछ होने वाला नहीं है; दब जाएगा। जिसे हमने इनकार किया, वह हमारे अचेतन | में उतर जाएगा। और जिसे हमने स्वीकार किया, वह हमारा चेतन 1 ग और द्वेष से मुक्त, द्वंद्व से रहित और शून्य। राग | बन जाएगा। I और द्वेष से मुक्त, दो में से एक पर होना सदा आसान | हमारा मन, जिसे अस्वीकार करता है, उसे अंधेरे में ढकेल देता है। राग में होना आसान है, विराग में भी होना आसान | है। हमारे सबके मन के गोडाउन हैं। घर में जो चीज बेकार हो जाती है। विराग द्वेष है। धन को पकड़ना आसान है, धन को त्यागना | है, उसे हम कबाड़खाने में डाल देते हैं। ऐसे ही चेतन मन जिसे आसान है। पकड़ना राग है, त्यागना द्वेष है। राग और द्वेष दोनों से | इनकार कर देता है, उसे अचेतन में डाल देता है। जिसे स्वीकार कर मुक्त हो जाओ, शून्य हो जाओ, रिक्त हो जाओ, तो जिसे महावीर | लेता है, उसे चेतन में ले आता है। चेतन मन हमारा बैठकखाना है। ने वीतरागता कहा है, उसे उपलब्ध होता है व्यक्ति। लेकिन किसी भी आदमी का घर बैठकखाने में नहीं होता। द्वंद्व में चुनाव आसान है, चुनावरहित होना कठिन है। च्वाइस बैठकखानों में सिर्फ मेहमानों का स्वागत किया जाता है, उसमें कोई आसान है, च्वाइसलेसनेस कठिन है। कहें मन को कि इसे चुनते | रहता नहीं। असली घर बैठकखाने के बाद शुरू होता है। हैं, तो मन कहता है-ठीक। कहें मन को, इसके विपरीत चुनते हैं, बैठकखाना घर का हिस्सा नहीं है, तो भी चलेगा। कह सकते हैं कि तो भी मन कहता है-ठीक। चुनो जरूर! क्योंकि जहां तक चुनाव | बैठकखाना घर का हिस्सा नहीं है। क्योंकि घर वाले बैठकखाने में है, वहां तक मन जी सकता है। चुनाव कोई भी हो, इससे फर्क नहीं नहीं रहते, बैठकखाने में सिर्फ अतिथियों का स्वागत होता है। पड़ता-घर चुनो, जंगल चुनो; मित्रता चुनो, शत्रुता चुनो; धन बैठकखाना सिर्फ फेस है, बैठकखाना सिर्फ एक चेहरा है, दिखावा चुनो, धन-विरोध चुनो; कुछ भी चुनो, प्रेम चुनो, घृणा चुनो; क्रोध है घर का, असली घर नहीं है। बैठकखाना एक डिसेप्शन है, एक चुनो, क्षमा चुनो; कुछ भी चुनो-च्वाइस हो, तो मन जीता है। धोखा है, जिसमें बाहर से आए लोगों को धोखा दिया जाता है कि लेकिन कुछ भी मत चुनो, तो मन तत्काल-तत्काल-गिर जाता | यह है हमारा घर। हालांकि उसमें कोई रहता नहीं, न उसमें कोई है। मन के आधार गिर जाते हैं। च्वाइस मन का आधार है, चुनाव | | सोता, न उसमें कोई खाता, न उसमें कोई पीता। उसमें कोई नहीं मन का प्राण है। रहता, वह घर है ही नहीं। वह सिर्फ घर का धोखा है। बैठकखाने इसलिए जब तक चुनाव चलता है जीवन में, तब तक आप | के बाद घर शुरू होता है। कितना ही चुनाव बदलते रहें, इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता है। | चेतन मन हमारा, जगत के दिखावे के लिए बैठकखाना है। संसार छोड़ें, मोक्ष चुनें; पदार्थ छोड़ें, परमात्मा चुनें; पाप छोड़ें, | उससे हम दूसरों से मिलते-जुलते हैं। लेकिन उसके गहरे में हमारा पुण्य चुनें-कुछ भी चुनें। यह सवाल नहीं है कि आप क्या चुनते | असली जीवन शुरू होता है। जब भी हम चुनाव करते हैं, तो चुनाव हैं, सवाल गहरे में यह है कि क्या आप चुनते हैं? अगर चुनते हैं, से कोई चीज मिटती नहीं। चुनाव से सिर्फ बैठकखाने की चीजें घर अगर च्वाइस है, तो द्वंद्व रहेगा। क्योंकि किसी को छोड़ते हैं और के भीतर चली जाती हैं। चुनाव से, सिर्फ जिसे हम चुनते हैं, उसे किसी को चुनते हैं। बैठकखाने में लगा देते हैं। वह हमारा डेकोरेशन है। यह भी समझ लेना जरूरी है कि जिसे छोड़ते हैं, उसे परा कभी इसलिए दिनभर जो आदमी धन को इनकार करता है. कहता है नहीं छोड़ पा सकते हैं। क्योंकि जिसे छोड़ना पड़ता है, उसकी मन कि नहीं, मैं त्याग को चुना हूं, रात सपने में धन को इकट्ठा करता में गहरी पकड़ होती है। नहीं तो छोड़ना क्यों पड़ेगा? अगर एक | है। जो दिनभर कामवासना से लड़ता है, रात सपने में कामवासना आदमी के मन में धन की कोई पकड़ न हो, तो वह धन का त्याग | से घिर जाता है। जो दिनभर उपवास करता है, रात राजमहलों में कैसे करेगा? त्याग के लिए पकड़ अनिवार्य है। अगर एक आदमी | निमंत्रित हो जाता है भोजन के लिए। की कामवासना में, सेक्स में रुचि न हो, लगाव न हो, आकर्षण | सपने में एसर्ट करता है वह जो भीतर छिपा है। वह कहता है, न हो, तो वह ब्रह्मचर्य कैसे चुनेगा? और जिसमें आकर्षण है, बहुत हो गया दिनभर अब चुनाव, अब हम प्रतीक्षा कर रहे हैं 1204
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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