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________________ निष्काम कर्म और अखंड मन की कीमिया - फेंक दी! बेकार। आज जीवन के अंत में वे ही तीन शब्द पास घूम | | पूरा ही मन राजी होता तो फिर क्या था! मेजारिटी माइंड से लिया रहे हैं। काश, उस दिन मैं समझ जाता कि मन की शांति ही सब था, बहुमत से लिया था। कुछ है, तो शायद आज तक पाया भी जा सकता था। लेकिन | - मन कोई पार्लियामेंट नहीं है कि जिसमें आप बहुमत से पक्ष लें। जिंदगी उसी फेहरिस्त को पूरा करने में बीत जाती है सबकी। | मन कोई पार्लियामेंट नहीं है, कोई संसद नहीं है। और अगर संसद कृष्ण कह रहे हैं, यह जो विषयों की दौड़ है चित्त की, यह सिर्फ | | भी है, तो वैसी ही संसद है, जैसी दिल्ली में है। उसमें कुछ पक्का अशांति को...। अशांति का अर्थ ही सिर्फ एक है, बहुत-बहुत नहीं है कि जो अभी आपके पक्ष में गवाही दे रहा था, वह दो दिन दिशाओं में दौड़ता हुआ मन, अर्थात अशांति। न दौड़ता हुआ | बाद विपक्ष में गवाही देगा; उसका कुछ पक्का नहीं है। आप रातभर मन, अर्थात शांति। कृष्ण कहते हैं, निष्काम कर्म की जो भाव-दशा सोकर सुबह उठोगे और पाओगे कि माइनारिटी में हो; मेजारिटी है, वह एक मन और शांति को पैदा करती है। और जहां एक मन | | हाथ से खिसक गई है। है, वहीं निश्चयात्मक बुद्धि है, दि डेफिनीटिव इंटलेक्ट, दि | | कृष्ण कुछ और बात कह रहे हैं। वे यह नहीं कह रहे हैं कि तुम डेफिनीटिव इंटेलिजेंस। | निश्चय करो। वे यह कह रहे हैं, जो निष्काम कर्म की यात्रा पर इसको आखिरी बात समझ लें। तो जहां एक मन है. वहां निकलता है. उसे निश्चयात्मक बद्धि उपलब्ध हो जाती है। क्योंकि अनिश्चय नहीं है। अनिश्चय होगा कहां? अनिश्चय के लिए कम | उसके पास एक ही मन रह जाता है। विषयों में जो भटकता नहीं, से कम दो मन चाहिए। जहां एक मन है, वहां निश्चय है। | जो अपेक्षा नहीं करता, जो कामना की व्यर्थता को समझ लेता है, __इसलिए आमतौर से आदमी लेकिन क्या करता है? वह कहता | | जो भविष्य के लिए आतुरता से फल की मांग नहीं करता, जो क्षण है कि निश्चयात्मक बुद्धि चाहिए, तो वह कहता है, जोड़-तोड़ | में और वर्तमान में जीता है-वैसे व्यक्ति को एक मन उपलब्ध करके निश्चय कर लो। दबा दो मन को और छाती पर बैठ जाओ, | होता है। एक मन निश्चयात्मक हो जाता है, उसे करना नहीं पड़ता। और निश्चय कर लो कि बस, निश्चय कर लिया। लेकिन जब वह शेष कल सुबह बात करेंगे। निश्चय कर रहा है जोर से, तभी उसको पता है कि भीतर विपरीत स्वर कह रहे हैं कि यह तुम क्या कर रहे हो? यह ठीक नहीं है। वह आदमी कसम ले रहा है कि ब्रह्मचर्य साधूंगा, निश्चय करता हूं। लेकिन निश्चय किसके खिलाफ कर रहे हो? जिसके खिलाफ निश्चय कर रहे हो, वह भीतर बैठा है। ___ मैं एक बूढ़े आदमी से मिला। उस बूढ़े आदमी ने कहा कि मैंने अपनी जिंदगी में तीन बार ब्रह्मचर्य का व्रत लिया है। तो मैंने पूछा कि चौथी बार क्यों नहीं लिया? बूढ़ा आदमी ईमानदार था। बूढ़े आदमी कम ही ईमानदार होते हैं, क्योंकि जिंदगी इतनी बेईमानी सिखा देती है कि जिसका कोई हिसाब नहीं। बच्चे साधारणतः ईमानदार होते हैं। बेईमान बच्चा खोजना मुश्किल है। बूढ़े साधारणतः बेईमान होते हैं। ईमानदार बूढ़ा खोजना मुश्किल है। पर वह बूढ़ा ईमानदार आदमी था। उसने कहा कि आप ठीक कहते हैं। आप ठीक कहते हैं, मैंने चौथी बार इसीलिए नहीं लिया कि तीन बार की असफलता ने हिम्मत ही तुड़वा दी। फिर हिम्मत भी नहीं रही कि चौथी बार ले सकूँ। पर मैंने कहा, तुमने व्रत किसके खिलाफ लिया था? अपने ही खिलाफ-कहीं व्रत पूरे होते हैं? ज़ब तुमने व्रत लिया था, तब तुम्हारा पूरा मन राजी था? उसने कहा, 197
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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