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________________ 27 गीता दर्शन भाग-1 AM यही उचित है कि आप मुझे पागल या बहरा समझकर चले जाएं। तिब्बत में वह करना बन गया, रिचुअल बन गया। चीन में झेन कहता है, ध्यान अर्थात न-करना। इस न-करने में ही वह | जाकर उसने करने के लिए स्वीकृति दे दी कि ऐसा-ऐसा करो। जाना जाता है, जो है। सांख्य और झेन का इस वजह से साम्य है। थाईलैंड में वह करना बन गया, लंका में करना बन गया। वह झेन बात नहीं करता ब्रह्म की। क्योंकि झेन का कहना यह है कि जब कर्मयोग बना। जब तक वह सांख्य रहा शुद्ध, तब तक उसकी जड़ें तक ध्यान नहीं, जब तक ज्ञान नहीं, तब तक ब्रह्म की बात व्यर्थ | फैलनी मुश्किल हो गईं। है। और जब ज्ञान हुआ, ध्यान हुआ, तब भी ब्रह्म की बात व्यर्थ | थोड़े से लोगों की ही पकड़ में आ सकती है शुद्ध सांख्य की बात। है। क्योंकि जिसे हमने नहीं जाना, उसकी बात क्या करें! और जिसे इसलिए श्रेष्ठतम विचार सांख्य ने दिया, लेकिन सांख्य को मानने हमने जान लिया, उसकी बात की क्या जरूरत है! इसलिए झेन चुप | वाला आदमी हिंदुस्तान में खोजे से नहीं मिलेगा। सब तरह के, हजार है, वह मौन है; वह ब्रह्म की बात नहीं करता। तरह के मानने वाले आदमी मिल जाएंगे, सांख्य को मानने वाला लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि ब्रह्म नहीं जानता। यह तो | आदमी नहीं मिलेगा। सांख्य के लिए समर्पित एक मंदिर नहीं है। निर्भर करेगा व्यक्तियों पर। सांख्य बात करता है, इसी आशा में कि सांख्य के जन्मदाता के लिए समर्पित एक मूर्ति नहीं है। शायद उसकी चर्चा-उसकी चर्चा से उसे जाना नहीं जा सकता, असल में जो एब्सोल्यूट ट्रथ की बात करेंगे, उनको राजी होना लेकिन उसकी चर्चा शायद किसी के मन में छिपी हुई प्यास पर चोट | चाहिए कि आम जनता तक उनकी खबर मुश्किल से पहुंचेगी। जो बन जाए। शायद उसकी चर्चा किसी के मन में चल रही आकांक्षा पूर्ण सत्य की बात करेंगे, उनको राजी रहना चाहिए कि उनकी बात को मार्ग दे दे। शायद उसकी चर्चा ऊंट के लिए आखिरी तिनका | बहुत आकाश में घूमती रहेगी। जमीन तक उतारना बहुत मुश्किल सिद्ध हो जाए। कोई बिलकुल बैठने को ही था ऊंट, एक तिनका | है। क्योंकि यहां जमीन पर सिर्फ अशुद्ध सत्य उतरते हैं। यहां जमीन और-एक तिनके से कहीं ऊंट बैठा है! लेकिन शायद किसी | पर जिस सत्य को भी पैर जमाने हों, उसे जमीन के साथ समझौता बैठते ऊंट को तिनका सिद्ध हो जाए, वह बैठ जाए। करना पड़ता है। इसलिए सांख्य बात करता है। लेकिन कैसे मिलेगा वह? कुछ कृष्ण ने पहले नानकंप्रोमाइजिंग सांख्य की बात की। कहा कि करने से? नहीं; जानने से। जानना और करना, डूइंग और नोइंग का | मैं तुझे सांख्य की बुद्धि बताता हूं। लेकिन देखा कि अर्जुन के भीतर । जो फर्क है, उस मामले में झेन और सांख्य बिलकुल समान हैं। और | उसकी जड़ें नहीं पहुंच सकतीं। इसलिए दूसरे, सेकेंडरी वे कहते हैं, जगत में जितने भी परम ज्ञानी हुए हैं, उन सब परम ज्ञानियों की बातों | अब मैं तुझसे कर्मयोग की बात कहता हूं। में सांख्य तो होगा ही। सांख्य से बचा नहीं जा सकता। सांख्य तो __ और एक बात और पूछी है कि पश्चिम में क्या सांख्य की चर्चा होगा ही। यह हो सकता है कि किसी की चर्चा में शुद्ध सांख्य हो। | जिन दार्शनिकों ने की है, उनका कारण यही तो नहीं है कि सांख्य तब ऐसा आदमी बहुत कम लोगों के काम का रह जाएगा। | निरीश्वरवादी है? जैसे बुद्ध। बुद्ध की चर्चा शुद्ध सांख्य है। इसलिए हिंदुस्तान से ___ असल में जो भी ब्रह्मवादी है, वह ईश्वरवादी हो नहीं सकता। बुद्ध के पैर उखड़ गए। क्योंकि सिर्फ जानना, सिर्फ जानना, सिर्फ | जो भी ब्रह्मवादी है, वह ईश्वरवादी हो नहीं सकता। अगर वह ईश्वर जानना! करना कुछ भी नहीं! वह जो इतना बड़ा जगत है, जहां सब | | को जगह भी देगा, तो वह माया के भीतर ही होगी जगह, बाहर नहीं करने वाले इकट्ठे हैं, वे कहते हैं कि कुछ तो करने को बताओ, कुछ | | हो सकती। वह इलूजन के भीतर ही होगी। या तो वह कह देगा, पाने को बताओ! बुद्ध कहते हैं, न कुछ पाने को है, न कुछ करने | | कोई ईश्वर नहीं है, ब्रह्म पर्याप्त है, अव्यक्त पर्याप्त है। या अगर को। झेन जो है, वह बुद्धिज्म की शाखा है। वह शुद्धतम बुद्ध का | | समझौता किया उसने आपसे, तो वह कहेगा, ईश्वर है; वह भी विचार है। लेकिन हिंदुस्तान के बाहर बुद्ध के पैर जम गए-चीन | अव्यक्त का एक रूप है, लेकिन माया के घेरे के भीतर। वह सिर्फ में, बर्मा में, थाईलैंड में, तिब्बत में। क्योंकि जो अशुद्धि करने के आपसे समझौता कर रहा है। लिए बुद्ध का विचार हिंदुस्तान में राजी नहीं हुआ, तो यहां उसके | सांख्य के जो मौलिक सूत्र हैं, वे शुद्धतम हैं। उनमें ईश्वर की पैर उखड़ गए, तो वही समझौता उसे करना पड़ा, जो यहां करने को | | कोई जगह नहीं है। ईश्वर का मतलब समझ लेना आप, ब्रह्म का राजी नहीं हुआ। | फर्क समझ लेना। 188
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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