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________________ + गीता दर्शन भाग- 14 इसलिए कृष्ण उससे कहते हैं कि अब मैं तुझसे कर्मयोग की बात कहता हूं। सांख्ययोग श्रेष्ठतम योग है। अब मैं तुझसे कर्मयोग की बात करता हूं। वे जो जानने से ही नहीं जान सकते, जिन्हें कुछ करना ही पड़ेगा, जो बिना कुछ किए स्मरण ला ही नहीं सकतेअब मैं तुझसे कर्मयोग की बात कहता हूं। प्रश्नः भगवान श्री, झेन बुद्धिज्म में, जैसे कि अद्वैत वेदांत में ब्रह्म आता है, तो झेन बुद्धिज्म में तो कुछ ऐसा है नहीं, तो आप साम्यता जो बता रहे हैं, उसकी स्पष्टता करें। और दूसरी बात यह है कि वेस्टर्न फिलासफर्स सांख्य का कभी पुरस्कार करते हैं, तो इसलिए कि सांख्य निरीश्वरवादी है। लेकिन कोई-कोई विद्वान ऐसा कहते हैं कि सांख्य निरीश्वरवादी नहीं है। तो यह भी है। तो वेस्टर्न फिलासफर्स निरीश्वरवादी है, इसलिए सांख्य का स्वीकार करते हैं? और झेन और सांख्य दोनों में ब्रह्म तत्व का स्थान क्या हो सकता है? झेन और सांख्य के बीच जो साथ मैंने कहा, उस साम्य है ज्ञान की प्रधानता । झेन कहता है, करने को कुछ भी नहीं है; और जो करेगा, वह व्यर्थ ही भटकेगा । झेन तो यहां तक कहता है कि तुमने खोजा कि तुम भटके। खोजो ही मत, खड़े हो जाओ और जान लो । क्योंकि तुम वही हो, जिसे तुम खोज रहे हो। झेन कहता है, जिसने प्रयास किया, वह मुश्किल में पड़ेगा। क्योंकि जिसे हमें पाना है, वह प्रयास से पाने की बात नहीं है। केवल अप्रयास में, एफर्टलेसनेस में जानने की बात है। झेन कहता है, पा सकते हैं श्रम से उसे, जो हमारा नहीं है। पा सकते हैं श्रम से उसे, जो हमें मिला हुआ नहीं है। धन पाना हो तो बिना श्रम के नहीं मिलेगा; धन पाने के लिए श्रम करना होगा। धन हमारा कोई स्वभाव नहीं है। एक आदमी को दूसरे के घर जाना हो, तो रास्ता चलना पड़ेगा, क्योंकि दूसरे का घर अपना घर नहीं है। लेकिन एक आदमी अपने घर में बैठा हो और पूछता हो कि मुझे मेरे घर जाना है, मैं किस रास्ते से जाऊं? तो झेन कहता है, जाना ही मत, अन्यथा घर से दूर निकल जाओगे। एक छोटी-सी कहानी मुझे याद आती है, जो झेन फकीर कहते हैं। वे कहते हैं, एक आदमी ने शराब पी ली। शराब पीकर आधी रात अपने घर पहुंचा। हाथ-पैर डोलते हैं, आंखों को ठीक दिखाई नहीं पड़ता। ऐसे भी अंधेरा है, भीतर नशा है, बाहर अंधेरा है। टटोल-टटालकर किसी तरह अपने दरवाजे तक पहुंच गया है। और फिर थक गया है। बहुत देर से भटक रहा है। फिर जोर-जोर से चिल्लाने लगा कि कोई मुझे मेरे घर पहुंचा दो । मेरी मां राह |देखती होगी। पास-पड़ोस के लोग उठ आए। और उन्होंने कहा, पागल तो | नहीं हो गए हो ! तुम अपने ही घर के सामने खड़े हो, अपने ही घर की सीढ़ियों पर। यही तुम्हारा घर है। लेकिन वह आदमी इतना परेशानी में चिल्ला रहा है कि मुझे मेरे घर पहुंचा दो, मुझे मेरे घर जाना है, मेरी बूढ़ी मां राह देखती होगी, कि सुने कौन ! सुनने के | लिए भी तो चुप होना जरूरी है। वह आदमी चिल्ला रहा है। पास-पड़ोस के लोग उससे कह रहे हैं, यही तुम्हारा घर है। लेकिन यही तुम्हारा घर है—यह भीतर कैसे प्रवेश करे ? वह आदमी तो भीतर चिल्ला रहा है, मेरा घर कहां है? शोरगुल सुनकर उसकी बूढ़ी मां भी उठ आई, जिसकी तलाश में वह है । उसने दरवाजा खोला, उसने उसके सिर पर हाथ रखा और कहा, . | बेटा तुझे क्या हो गया है ! उसने उसके ही पैर पकड़ लिए और उसने कहा कि मेरी बूढ़ी मां राह देखती होगी; मुझे रास्ता बताओ कि मेरा घर कहां है? तो पास-पड़ोस में कोई मजाक करने वाले लोग एक बैलगाड़ी लेकर आ गए और उन्होंने कहा कि बैठो, हम तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा देते हैं। वह आदमी बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने कहा कि यह भला आदमी है। ये सारे लोग मुझे घर पहुंचाने का कोई उपाय ही नहीं करते! कोई उपाय नहीं करता, न कोई बैलगाड़ी लाता, न कोई | घोड़ा लाता, न मेरा कोई हाथ पकड़ता। तुम एक भले आदमी हो। उसने उसके पैर पड़े। वह आदमी हंसता रहा। उसे बैलगाड़ी में बिठाया, दस-बारह चक्कर लगाए घर के, फिर उसे द्वार के सामने उतारा। फिर वह कहने लगा, धन्यवाद ! बड़ी कृपा की, मुझे घर पहुंचा दिया। 186 अब कृष्ण अर्जुन से कोशिश कर चुके पहली वाली कि यही तेरा घर है। अब नहीं मानता, तो बैलगाड़ी जोतते हैं। वे कहते हैं, कर्मयोग में चल । अब तू चक्कर लगा। अब तू दस-पांच चक्कर
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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