________________
im+ अर्जुन का जीवन शिखर-युद्ध के ही माध्यम से -
नहीं, जड़ें हैं ही इसलिए कि फूल तक पहुंचे। मनुष्य का जो स्वभाव आज दिखाई पड़ता है, वह है ही इसलिए कि वह परमात्मा तक पहुंचे। क्रोध है इसलिए कि क्रोध की जड़ किसी दिन अक्रोध का फूल बने। काम है इसलिए, सेक्स है इसलिए कि सेक्स की ऊर्जा और काम की ऊर्जा किसी दिन ब्रह्मचर्य का फूल बने। और जब तक नहीं बन जाती, तब तक मनुष्य को बेचैन होना ही चाहिए; जब तक नहीं बन जाती, तब तक मनुष्य को चिंतित होना ही चाहिए; जब तक नहीं बन जाती, तब तक मनुष्य को संताप में, पीड़ा में, संघर्ष में होना ही चाहिए। जल्दी ली गई शांति खतरनाक है, क्योंकि वह प्रारंभ को ही अंत बना सकती है। शांति जरूर मिलती है, लेकिन अंत आ जाए, मंजिल आ जाए, तब तक यात्रा जारी रखनी जरूरी है।
दो तरह की शांतियां हैं। एक तो हम जहां हैं, वहीं बैठ जाएं, तो यात्रा का कष्ट बंद हो जाता है। एक और शांति भी है-जिस दिन यात्रा पूरी होती है और मंजिल आती है। हम बैठ जाएं और इसी को मंजिल मान लें, तो भी शांति मिलती है। और मंजिल आ जाए और हम बैठे, तब भी शांति मिलती है।
लेकिन दोनों शांतियों में बड़ा फर्क है। एक पशु की शांति है, एक परमात्मा की शांति है।
181