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________________ Im जीवन की परम धन्यता-स्वधर्म की पूर्णता में - लेकिन आज आप नाम भी नहीं बता सकते कि रवींद्रनाथ के उन | रहा है, न हो सकता है। उसकी आत्मा जो हो सकती है, कृष्ण सब चमकदार भाइयों के नाम क्या हैं! वे अचानक कहीं खो गए। | उसके पीछे बिलकुल लाठी लेकर पड़ गए हैं, कि तू वही हो जा, मनोविज्ञान इस समय बहुत व्यस्त है कि यह जो जगत इतना | जो तू हो सकता है। वह भाग रहा है। वह बचाव कर रहा है, वह दुखी मालूम पड़ रहा है, इसका बहुत बुनियादी कारण जो है, वह | डर रहा है, वह भयभीत हो रहा है, वह पच्चीस तर्क खोज रहा है। डिसप्लेसमेंट है। हर आदमी जो हो सकता है, वह नहीं हो पा रहा | कृष्ण युद्धखोर नहीं हैं। कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं यह। और है। वह कहीं और लगा दिया गया है। एक चमार है, वह प्रधानमंत्री | | आप भूलकर भी यह मत समझ लेना कि सबके लिए, अर्जुन से हो गया है। जिसे प्रधानमंत्री होना चाहिए, वह कहीं जूते बेच रहा | कहा गया सत्य, सत्य है। ऐसा भूलकर मत समझ लेना। है। सब अस्तव्यस्त है। किसी को भी पता भी तो नहीं है कि वह हां, एक ही बात सत्य है उसमें, जो जनरलाइज की जा सकती क्या हो सकता है! धक्के हैं, बिलकुल एक्सिडेंटल है जैसे सब, है; और वह यह है कि प्रत्येक की संभावना ही उसका सत्य है। सांयोगिक है जैसे सब। बाप को एक सनक सवार है कि लड़के को इससे अगर कोई भी बात निकालनी हो, तो इतनी ही निकलती है इंजीनियर होना चाहिए, तो इंजीनियर होना चाहिए। अब बाप की कि प्रत्येक की उसकी निज-संभावना ही उसके लिए सत्य है। सनक से लड़के का क्या लेना-देना! होना था तो बाप को हो जाना गीता की इस किताब को अगर महावीर पढ़ें, तो भी पढ़कर चाहिए था। लेकिन बाप को सनक सवार है, बेटे को इंजीनियर | महावीर महावीर ही होंगे, अर्जुन नहीं हो जाएंगे। क्योंकि वे राज होना चाहिए। फिर बाप भी क्या कर सकता है, उसे कुछ भी तो पता | समझ जाएंगे कि मेरी पोटेंशियलिटी क्या है, वही मेरी यात्रा है। इस नहीं है। किताब को बुद्ध पढ़ें, तो दिक्कत नहीं आएगी जरा भी। वे कहेंगे, इसलिए आज सारी दुनिया में मनोवैज्ञानिक इस बात के लिए | बिलकुल ठीक, मैं अपनी यात्रा पर जाता हूं, जो मैं हो सकता हूं। आतुर हैं कि प्रत्येक बच्चे की पोटेंशियलिटी की खोज ही मनुष्यता | | प्रत्येक को जाना है अपनी यात्रा पर, जो वह हो सकता है। और के लिए मार्ग बन सकती है। प्रत्येक को खोज लेना है व्यक्त जगत में कि मेरे होने की क्या वह जो कृष्ण कह रहे हैं, वह युद्ध की बात नहीं कह रहे हैं, संभावना है। गीता का संदेश इतना ही है, युद्धखोरी का नहीं है। भूलकर भी मत समझ लेना यह। इससे बड़ी भ्रांति पैदा होती है। | लेकिन भ्रांति हुई है गीता को पढ़कर। युद्धखोर को लगता है कि कृष्ण जब यह कह रहे हैं, तो यह बात स्पेसिफिकली, विशेष रूप | बिलकुल ठीक, होना चाहिए युद्ध। गैर-युद्धखोर को लगता है, से अर्जुन के टाइप के लिए निवेदित है। यह बात, अर्जुन की जो | | बिलकुल गलत है, युद्ध करवाने की बात कर रहे हैं! संभावना है, उस संभावना के लिए उत्प्रेरित है। यह बात हर किसी | कृष्ण का युद्ध से लेना-देना ही नहीं है। जब मैं ऐसा कहूंगा, तो के लिए नहीं है। यह हर कोई के लिए नहीं है। आपको जरा मुश्किल होगी, लेकिन मैं फिर पुनः-पुनः कहता हूं, लेकिन इतने बड़े मनोविज्ञान की समझ खो गई। महावीर ने | | कृष्ण को युद्ध से लेना-देना नहीं है। कृष्ण एक मनोवैज्ञानिक सत्य अहिंसा की बात कही। वह कुछ लोगों के लिए सार्थक है, अगर | कह रहे हैं। वे कह रहे हैं अर्जुन से, यह तेरा नक्शा है, यह तेरा पूरे मुल्क को पकड़ ले तो खतरा है। कृष्ण ने हिंसा की बात कही। बिल्ट-इन-प्रोसेस है। तू यह हो सकता है। इससे अन्यथा होने की वह अर्जुन के लिए सार्थक है, और कुछ लोगों के लिए बिलकुल चेष्टा में सिवाय अपयश, असफलता, आत्मघात के और कुछ भी सार्थक हैं, पूरे मुल्क को पकड़ ले तो खतरा है। नहीं है। लेकिन भूल निरंतर हो जाती है। वह निरंतर भूल यह हो जाती है। शेष कल सुबह बात करेंगे। कि हम प्रत्येक सत्य को जनरलाइज कर देते हैं; उसको सामान्य नियम बना देते हैं। कोई सत्य व्यक्त जगत में सामान्य नियम नहीं है। अव्यक्त जगत की बात छोड़ें, व्यक्त जगत में, मैनिफेस्टेड जगत में सभी सत्य सशर्त हैं, उनके पीछे शर्त है। ध्यान रखेंगे पूरे समय कि अर्जुन से कही जा रही है यह बात, एक पोटेंशियल क्षत्रिय से, जिसके जीवन में कोई और स्वर नहीं 165
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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