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Im गीता दर्शन भाग-1 -
इसलिए हम जीवन की इच्छा छोड़ देते हैं—ये अगर दो घटनाएं को नमस्कार कर रहे हैं! होती. तो मैं कोई उत्तर दे पाता। ये दो घटनाएं नहीं हैं. यह । हमारा अहंकार करीब-करीब जीवन की घटनाओं और पीछे साइमलटेनियस, युगपत घटना है। अव्यक्त का सिकुड़ना और | अव्यक्त के चलने वाले रथ के बीच में, कुत्ते की हालत में होता है। हमारा जीने की इच्छा छोड़ देना, एक ही घटना है। हमारा जीने की । | सब नमस्कार इस मैं को होते हैं; सब पीछे से घटने वाली घटनाएं इच्छा छोड़ देना और अव्यक्त का सिकुड़ना भी एक ही घटना है। इस मैं को होती हैं। लेकिन कौन इस कुत्ते को समझाए? कैसे क्योंकि हम अव्यक्त से पृथक नहीं हैं, हम उससे अन्य नहीं हैं, हम | समझाए? उससे दूसरे नहीं हैं। यह एक ही चीज है।
इस पर निर्भर करेगा कि आपने पूरे जीवन को कैसे लिया है। हां, हमें सबसे पहले जो पता चलता है, उसमें फर्क हो सकता है। जब आपको भूख लगी है, तब आपने सोचा है कि मैं भूख लगा अस्तित्व में दोनों एक चीज हैं; पता चलने में फर्क हो सकता है। एक रहा हूं या अव्यक्त से भूख आ रही है! जब आप बच्चे से जवान आदमी को पहले पता चल सकता है कि मेरी जीवन की इच्छा मरती हो गए हैं, तो आपने समझा कि मैं जवान हो गया हूं या अव्यक्त जाती है। एक आदमी को पता चल सकता है कि मेरी तो इच्छा कोई से जवानी आ रही है! मरी नहीं, लेकिन भीतर कुछ सिकुड़ना शुरू हो गया है। यह ___ यह इंटरप्रिटेशन की बात है, यह व्याख्या की बात है। घटना तो
आदमियों पर निर्भर करेगा कि उनकी कहां से शुरुआत होगी। वही है, जो हो रही है, वही हो रही है। लेकिन कुत्ता अपनी व्याख्या __ अगर कोई आदमी निरंतर अहंकार में ही जीया है, तो उसकी | करने को तो स्वतंत्र है। रथ चल रहा है, नमस्कार रथ को की जा प्रतीति और होगी। और कोई आदमी निरंतर निरहंकार में जीया है, | रही है, लेकिन कुत्ते को व्याख्या करने से तो नहीं रोक सकते कि तो उसकी प्रतीति और होगी। वह प्रतीति अहंकार के अस्तित्व पर | नमस्कार मुझे हो रही है, रथ मेरे लिए चल रहा है! निर्भर करेगी, घटना के अस्तित्व पर नहीं। घटना तो एक ही है। आदमी जो व्याख्या कर रहा है, उसी से सभी कुछ अहंकारघटना एक ही है। वे घटनाएं दो नहीं हैं। लेकिन हम तो अहंकार में केंद्रित हो जाता है। अन्यथा अहंकार को छोड़ें, तो फिर दो बातें नहीं ही जीते हैं। इसलिए साधारणतः जब जीवन सिकुड़ना शुरू होता है, | रह जातीं, एक ही बात रह जाती है, क्योंकि हम भी अव्यक्त के ही अस्तित्व जब डूबना शुरू होता है, तो हमें ऐसा ही लगता है...। | हिस्से हैं। हम अगर अलग होते, तब उपाय भी था; हम भी
बूढ़े आदमी कहते हुए सुने जाते हैं कि अब जीने की कोई इच्छा | अव्यक्त के ही हिस्से हैं। हम भी जो कर रहे हैं, वह भी अव्यक्त न रही। अब जीना नहीं चाहते। अब तो मौत ही आ जाए तो अच्छा ही कर रहा है। हम भी जो सोच रहे हैं, वह भी अव्यक्त ही सोच है। लेकिन अभी भी वे यह कह रहे हैं कि अब जीने की कोई इच्छा | रहा है। हम भी जो हो रहे हैं, वह भी अव्यक्त ही हो रहा है। न रही, जैसे कि अपनी इच्छा से अब तक जीते थे। लेकिन सब जिस दिन हमें ऐसा दिखाई पड़ेगा, उस दिन यह सवाल नहीं चीजों को अपने से बांधकर देखा है, तो इसको भी अपने से ही | | | बनेगा। लेकिन अभी बनेगा, क्योंकि हमें लगता है, कुछ हम कर बांधकर वे देखेंगे।
| रहे हैं। कुछ हम कर रहे हैं, वह मनुष्य की व्याख्या है। उसी व्याख्या हमारी स्थिति करीब-करीब ऐसी ही है। मैंने सुना है कि जगन्नाथ | | में अर्जुन उलझा है, इसलिए पीड़ित और परेशान है। वह यह कह की रथ-यात्रा चल रही है। हजारों लोग रथ को नमस्कार कर रहे | रहा है कि मैं मारूं! इन सबको मैं काट डालूं! नहीं, ये सब मेरे हैं, हैं। एक कुत्ता भी रथ के आगे हो लिया। उस कुत्ते की अकड़ देखते | मैं यह न करूंगा। इससे तो बेहतर है कि मैं भाग जाऊं। लेकिन ही बनती है। ठीक कारण है। सभी उसको नमस्कार कर रहे हैं! जो भागना भी वही करेगा, मारना भी वही करेगा। वह कर्ता को नहीं भी सामने आता है, एकदम चरणों में गिर जाता है। सामने जो भी छोड़ पाएगा, वह मैं की व्याख्या नहीं छोड़ पा रहा है। आ जाता है, चरणों में गिर जाता है। उस कुत्ते की अकड़ बढ़ती __कृष्ण अगर कुछ भी कह रहे हैं, तो इतना ही कह रहे हैं कि तू चली जा रही है। फिर पीछे लौटकर देखता है. तो पता चलता है कि जो व्याख्या कर रहा है मैं के केंद्र से. वह केंद्र ही झठा है. वह केंद्र सामने ही नहीं स्वागत हो रहा है, पीछे भी रथ चल रहा है। | कहीं है ही नहीं। उस केंद्र के ऊपर तू जो सब समर्पित कर रहा है, स्वभावतः, जिस कुत्ते का इतना स्वागत हो रहा हो, उसके पीछे रथ | वहीं तेरी भूल हुई जा रही है। चलना ही चाहिए। यह रथ कुत्ते के पीछे चल रहा है! ये लोग कुत्ते लेकिन हमें सब चीजें दो में टूटी हुई दिखाई पड़ती हैं। यह श्वास
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