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________________ m गीता दर्शन भाग-1 AM उसे नहीं जाना जा सकता। एक और मजे की बात उन्होंने इसमें कही | | तकलीफ, इनकी उलझन बड़ी गहरी है। कुछ इन्होंने जाना है, जो है कि आश्चर्य है कि कोई आत्मा के संबंध में समझाए, उपदेश दे। ये चाहेंगे कि सबको जना दें। जो ये चाहेंगे कि जो इन्हें मिला है, पहली तो बात इसलिए आश्चर्य है कि कोई आत्मा के संबंध में वह सबको मिल जाए। जो आनंद की वर्षा और जो अमृत का सागर उपदेश दे, क्योंकि आत्मा किसी की भी आवश्यकता नहीं है; | इनमें उतर आया है, सब में उतर आए। लेकिन समझाने की बड़ी उपदेश सुनेगा कौन? नो वन्स नेसेसिटी। बाजार में वही चीज बिक | मुश्किल है। शब्द बेकार हैं। जिसे विचार से जाना नहीं, उसे विचार सकती है, जो किसी की जरूरत हो। आत्मा किसी की भी जरूरत | से कहेंगे कैसे! और जिसे शब्द छोड़कर जाना, उसे शब्द से प्रकट नहीं है। इसलिए जो आत्मा के संबंध में उपदेश देने की हिम्मत कैसे करेंगे! तो आश्चर्य इसलिए भी है कि वह कहा नहीं जा करता है, बिलकुल पागल आदमी है। कोई जिस चीज को लेने को सकता, फिर भी कहना ही पड़ेगा, फिर भी कहना ही पड़ा है। तैयार नहीं, उसको बेचने निकल पड़े! इसलिए एक और एब्सर्ड, बिलकुल असंगत सी घटना दुनिया वह कष्ण को खद भी समझ में आ रहा होगा कि अर्जन की जो में घटी कि बद्ध कहते हैं. कहा नहीं जा सकता: और जितना बद्ध मांग नहीं, जो उसकी डिमांड नहीं, वे उसकी सप्लाई कर रहे हैं। | बोलते हैं, उतना कोई आदमी नहीं बोलता। और कृष्ण कहते हैं, वह बेचारा कुछ और मांग रहा है। वह मांग रहा है एस्केप, वह मांग | | समझाया नहीं जा सकता; और समझाए चले जा रहे हैं। और रहा है पलायन, वह मांग रहा है कंसोलेशन, वह मांग रहा है | | महावीर कहते हैं, वाणी के बाहर है, शब्द के बाहर है; लेकिन यह सांत्वना। वह कह रहा है, मुझे किसी तरह बचाओ, निकालो इस | | भी तो वाणी से और शब्द से ही कहना पड़ता है। चक्कर से। वह आत्मा वगैरह की बात ही नहीं कर रहा है। वह | विगिंस्टीन ने अपने टेक्टेट्स में एक वाक्य लिखा है, दैट किसी की जरूरत नहीं है। इसलिए आश्चर्य है कि कभी कोई | | व्हिच कैन नाट बी सेड, मस्ट नाट बी सेड-जो नहीं कहा जा आदमी आत्मा को बेचने निकल जाता है! सकता, वह नहीं ही कहना चाहिए। लेकिन विगिंस्टीन की बात पर कछ लोग सनकी होते हैं. आत्मा को भी समझाने लगते हैं। अगर कष्ण, बद्ध और महावीर मान लें, तो यह दनिया बहत गरीब एक तो यह आश्चर्य है कि कोई समझने को जिसे तैयार नहीं है...|| होती, यह बहुत दीन और दरिद्र होती। अभी मैंने पढ़ा, एक ईसाई बिशप का मैं जीवन पढ़ रहा था। | तो मैं तो कहना चाहूंगा, दैट व्हिच कैन नाट बी सेड, मस्ट बी कीमती आदमी था। सारे योरोप के ईसाई पादरियों का एक सम्मेलन सेड-जो नहीं कहा जा सकता, उसे भी कहना ही चाहिए। नहीं था। तो उस बिशप ने उस पादरियों के सम्मेलन में यह कहा, उनसे कहा जा सकेगा, यह पक्का है। लेकिन नहीं कह सकने की पूछा कि मैं तुमसे यह पूछना चाहता हूं कि चर्चों में जब तुम बोलते | तकलीफ में भी कुछ संवेदित हो जाएगा, कुछ कम्युनिकेट हो हो, तो लोग सिर्फ ऊबे हुए मालूम पड़ते हैं; बोर्ड मालूम पड़ते हैं। | जाएगा। नहीं कहा जा सकता, इस मुसीबत में भी कोई चीज शब्दों अधिक तो सोए मालूम पड़ते हैं। कोई रस लेता नहीं मालूम पड़ता। | के बाहर और शब्दों के पार और पंक्तियों के बीच में निवेदित हो और लोग बार-बार घड़ी देखते मालम पड़ते हैं। कारण क्या है? जाएगी। उसी की चेष्टा चल रही है। उत्तर वे बिशप नहीं दे सके, जो इकट्ठे थे। तब जिसने पूछा था, उस | संगीत वही नहीं है, जो स्वरों में होता है; संगीत वह भी है, जो फकीर ने खुद ही कहा कि मैं समझता हूं कि कारण यह है कि तुम | | दो स्वरों के बीच के मौन में होता है। वही नहीं कहा जाता, जो शब्दों उन प्रश्नों के उत्तर दे रहे हो, जो कोई पूछता ही नहीं है, जो किसी | | में कहा जाता है; वह भी कहा जाता है, जो दो शब्दों के बीच के के प्रश्न ही नहीं हैं। साइलेंस में, शून्य में होता है। वही नहीं सुना जाता, जो शब्द से पहला तो आश्चर्य कि कोई आत्मा को समझाने निकलने की | सुना जाता है; वह भी सुना जा सकता है, जो शब्द के बाहर, हिम्मत करे, करेजियस है मामला कि कोई आत्मा की दुकान खोले, | इर्द-गिर्द, आस-पास छूट जाता है। कोई ग्राहक मिलने की उम्मीद नहीं होनी चाहिए। और दूसरा इस | तो कृष्ण कह रहे हैं. मिरेकल है. चमत्कार है। कारण भी आश्चर्य है कि आत्मा ऐसा तत्व है, जो समझाया नहीं | शेष सांझ बात करेंगे। जा सकता। कोई उपाय जिसे समझाने का नहीं है। इसलिए कृष्ण या कबीर या बुद्ध या मोहम्मद या नानक, इनकी |
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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