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________________ ST- आत्म-विद्या के गूढ़ आयामों का उदघाटन - न डुबाया जा सकता है पानी में, न नष्ट किया जा सकता है, तो वे | भीतर हो, जो मरेगा नहीं, ताकि मैं मृत्यु को झुठला सकू। यह कह रहे हैं कि आत्मा कोई वस्तु नहीं है; थिंगनेस, वस्तु उसमें | | इसलिए मंदिर में, मस्जिद में, गुरुद्वारे में जवान दिखाई नहीं नहीं है। आत्मा सिर्फ अस्तित्व का नाम है। एक्झिस्टेंट वस्तु नहीं, | पड़ते। क्योंकि अभी मौत जरा दूर मालूम पड़ती है। अभी इतना एक्झिस्टेंस इटसेल्फ। वस्तुओं का अस्तित्व होता है, आत्मा स्वयं | | भय नहीं, अभी पैर कंपते नहीं। वृद्ध दिखाई पड़ने लगते हैं। सारी अस्तित्व है। इसलिए आग न जला सकेगी, क्योंकि आग भी | | दुनिया में धर्म के आस-पास बूढ़े आदमियों के इकट्ठे होने का एक अस्तित्व है। पानी न डुबा सकेगा, क्योंकि पानी भी अस्तित्व है। | ही कारण है कि जब मैं मरने के करीब पहुंचता है, तो मैं जानना इसे ऐसा समझें कि आग भी आत्मा का एक रूप है, पानी भी चाहता है कि कोई आश्वासन, कोई सहारा, कोई भरोसा, कोई आत्मा का एक रूप है, तलवार भी आत्मा का एक रूप है, इसलिए प्रामिस–कि नहीं, मौत को भी झुठला सकेंगे, बच जाएंगे मौत के आत्मा से आत्मा को जलाया न जा सकेगा। आग उसको जला पार भी। कोई कह दे कि मरोगे नहीं-कोई अथारिटी, कोई सकती है, जो उससे भिन्न है। आत्मा किसी से भी भिन्न नहीं। आत्मा प्रमाण-वचन, कोई शास्त्र! अस्तित्व से अभिन्न है, अस्तित्व ही है। इसीलिए आस्तिक, जो वृद्धावस्था में आस्तिक होने लगता है, अगर हम आत्मा शब्द को अलग कर दें और अस्तित्व शब्द को | उसके आस्तिक होने का मौलिक कारण सत्य की तलाश नहीं होती, विचार करें, तो कठिनाई बहुत कम हो जाएगी। क्योंकि आत्मा से मौलिक कारण भय से बचाव होता है, फियर से बचाव होता है। और हमें लगता है, मैं। हम आत्मा और ईगो को, अहंकार को इसलिए दुनिया में जो तथाकथित आस्तिकता है, वह भगवान के पर्यायवाची मानकर चलते हैं। इससे बहुत जटिलता पैदा हो जाती | आस-पास निर्मित नहीं, भय के आस-पास निर्मित है। और अगर है। आत्मा अस्तित्व का नाम है। उस अस्तित्व में उठी हुई एक लहर | | भगवान भी है उस आस्तिकता का, तो वह भय का ही रूप है; उससे का नाम मैं है। वह लहर उठेगी. गिरेगी: बनेगी. बिखरेगी: उस मैं भिन्न नहीं है। वह भय के प्रति ही सरक्षा है, सिक्योरिटी है। को जलाया भी जा सकता है, डुबाया भी जा सकता है। ऐसी आग | तो जब कृष्ण यह कह रहे हैं, तो एक बात बहुत स्पष्ट समझ खोजी जा सकती है, जो मैं को जलाए। ऐसा पानी खोजा जा सकता लेना कि यह आप नहीं जलाए जा सकेंगे, इस भ्रांति में मत पड़ना। है, जो मैं को डुबाए। ऐसी तलवार खोजी जा सकती है, जो मैं को | | इसमें तो बहुत कठिनाई नहीं है। घर जाकर जरा आग में हाथ काटे। इसलिए मैं को छोड़ दें। आत्मा से मैं का कोई भी लेना-देना | डालकर देख लेना, तो कृष्ण एकदम गलत मालूम पड़ेंगे। एकदम नहीं है, दूर का भी कोई वास्ता नहीं है। ही गलत बात मालूम पड़ेगी। गीता पढ़कर आग में हाथ डालकर मैं को छोड़कर जो पीछे आपके शेष रह जाता है, वह आत्मा है। | देख लेना कि आप जल सकते हैं कि नहीं! गीता पढ़कर पानी में लेकिन मैं को छोड़कर हमने अपने भीतर कभी कुछ नहीं देखा है। डुबकी लगाकर देख लेना, तो पता चल जाएगा कि डूब सकते हैं जब भी कुछ देखा है, मैं मौजूद हूं। जब भी कुछ सोचा है, मैं मौजूद या नहीं। हूं। मैं हर जगह मौजूद हूं भीतर। इतने घने रूप से हम मैं के | __ लेकिन कृष्ण गलत नहीं हैं। जो डूबता है पानी में, कृष्ण उसकी आस-पास जीते हैं कि मैं के पीछे जो खड़ा है सागर, वह हमें कभी | बात नहीं कर रहे हैं। जो जल जाता है आग में, कृष्ण उसकी बात दिखाई नहीं पड़ता। | नहीं कर रहे हैं। लेकिन क्या आपको अपने भीतर किसी एक भी और हम कृष्ण की बात सनकर प्रफल्लित भी होते हैं। जब सनाई। ऐसे तत्व का पता है, जो आग में नहीं जलता? पानी में नहीं डबता? पड़ता है कि आत्मा को जलाया नहीं जा सकता, तो हमारी रीढ़ | | अगर पता नहीं है, तो कृष्ण को मानने की जल्दी मत करना। सीधी हो जाती है। हम सोचते हैं, मुझे जलाया नहीं जा सकता। जब | | खोजना, मिल जाएगा वह सूत्र, जिसकी वे बात कर रहे हैं। हम सुनते हैं, आत्मा मरेगी नहीं, तो हम भीतर आश्वस्त हो जाते हैं | - सवाल पूछा है। पूछा है कि आत्मा न भी करती हो यात्रा, सूक्ष्म कि मैं मरूंगा नहीं। इसीलिए तो बूढ़ा होने लगता है आदमी, तो | शरीर, लिंग शरीर अगर यात्रा करता है, तो भी आत्मा का सहयोग गीता ज्यादा पढ़ने लगता है। मृत्यु पास आने लगती है, तो कृष्ण | | तो है ही। आत्मा कोआप्ट तो करती ही है। अगर इनकार कर दे की बात समझने का मन होने लगता है। मृत्यु कंपाने लगती है मन सहयोग करने से, तब तो यात्रा नहीं हो सकेगी! को, तो मन समझना चाहता है. मानना चाहता है कि कोई तो मेरे | इसे भी दो तलों पर समझ लेना जरूरी है। सहयोग भी इस जगत 1137
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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