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________________ + गीता दर्शन भाग-1 AM नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । आकस्मिक नहीं हो सकता। सब प्रारंभ पूर्व की तैयारी से, पूर्व के न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।। २३ ।।। कारण से बंधे होते हैं, कॉलिटि से बंधे होते हैं। हे अर्जुन, इस आत्मा को शस्त्रादि नहीं काट सकते हैं और एक बच्चे का जन्म होता है. हो सकता है. क्योंकि मां-बाप के इसको आग नहीं जला सकती है तथा इसको जल नहीं दो शरीर उसके जन्म की तैयारी करते हैं। सब प्रारंभ अपने से भी गीला कर सकता है और वायु नहीं सुखा सकता है। | पहले किसी चीज को, प्रिसपोज्ड, अपने से भी पहले किसी चीज __ अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च। को स्वीकार करते हैं। इसलिए कोई प्रारंभ मौलिक रूप से प्रारंभ नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ।। २४ ।।। नहीं होता। किसी चीज का प्रारंभ हो सकता है, लेकिन शुद्ध प्रारंभ क्योंकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य नहीं होता। ठीक वैसे ही, किसी चीज का अंत हो सकता है, लेकिन और अशोष्य है तथा यह आत्मा निःसंदेह नित्य, सर्वव्यापक, अस्तित्व का अंत नहीं होता। क्योंकि कोई भी चीज समाप्त हो, तो अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है। उसके भीतर जो होना था, जो अस्तित्व था, वह शेष रह जाता है। अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते।। । तो जब हम कहते हैं, आत्मा का कोई जन्म नहीं, कोई मृत्यु नहीं, तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमहीस । । २५।। तो समझ लेना चाहिए। दूसरी तरफ से समझ लेना उचित है कि और यह आत्मा अव्यक्त अर्थात इंद्रियों का अविषय और यह जिसका कोई जन्म नहीं, जिसकी कोई मृत्यु नहीं, उसी का नाम हम आत्मा अचिंत्य अर्थात मन का अविषय और यह आत्मा । | आत्मा कह रहे हैं। आत्मा का अर्थ है-अस्तित्व, बीइंग। . विकाररहित अर्थात न बदलने वाला कहा जाता है। इससे है लेकिन हमारी भ्रांति वहां से शुरू होती है, आत्मा को हम समझ अर्जुन, इस आत्मा को ऐसा जानकर तू शोक करने के योग्य | | लेते हैं मैं। मेरा तो प्रारंभ है और मेरा अंत भी है। लेकिन जिसमें मैं नहीं है अर्थात तुझे शोक करना उचित नहीं है। जन्मता हूं और जिसमें मैं समाप्त हो जाता हूं, उस अस्तित्व का कोई अंत नहीं है। आकाश में बादल बनते हैं और बिखर जाते हैं। जिस आकाश प्रश्नः भगवान श्री, जो आत्मा अपनी तरफ से किसी | |में उनका बनना और बिखरना होता है, उस आकाश का कोई प्रारंभ भी दिशा में प्रवृत्त नहीं होता, वह वस्त्रों की भांति | | और कोई अंत नहीं है। आत्मा को आकाश समझें-इनर स्पेस, जीर्ण देह को त्यागने की और नवीन देह को धारण | | भीतरी आकाश। और आकाश में भीतर और बाहर का भेद नहीं करने की चेष्टा की तकलीफ क्यों उठाता है? इसमें | | किया जा सकता। बाहर के आकाश को परमात्मा कहते हैं, भीतर कुछ इंट्रॅिजिक कंट्राडिक्शन नहीं फलित होता है? के आकाश को आत्मा। इस आत्मा को व्यक्ति न समझें, | इंडिविजुअल न समझें। व्यक्ति का तो प्रारंभ होगा, और व्यक्ति का | अंत होगा। इस आंतरिक आकाश को अव्यक्ति समझें। इस या त्मा, न जन्म लेता है, न मरता है; न उसका प्रारंभ है, | आंतरिक आकाश को सीमित न समझें। सीमा का तो प्रारंभ होगा l न उसका अंत है-जब हम ऐसा कहते हैं, तो | और अंत होगा। थोड़ी-सी भूल हो जाती है। इसे दूसरे ढंग से कहना इसलिए कृष्ण कह रहे हैं कि न उसे आग जला सकती है। ज्यादा सत्य के करीब होगा जिसका जन्म नहीं होता, जिसकी मृत्यु __ आग उसे क्यों नहीं जला सकती? पानी उसे क्यों नहीं डुबा नहीं होती. जिसका कोई प्रारंभ नहीं है. जिसका कोई अंत नहीं है. सकता? अगर आत्मा कोई भी वस्त है. तो आग नाग जरूर जला सकती ऐसे अस्तित्व को ही हम आत्मा कहते हैं। है। यह आग न जला सके, हम कोई और आग खोज लेंगे। कोई निश्चित ही, अस्तित्व प्रारंभ और अंत से मुक्त होना चाहिए। एटामिक भट्ठी बना लेंगे, वह जला सकेगी। अगर आत्मा कोई वस्तु जो है, दैट व्हिच इज़, उसका कोई प्रारंभ नहीं हो सकता। प्रारंभ का है, तो पानी क्यों नहीं डुबा सकता? थोड़ा पानी न डुबा सकेगा, तो अर्थ यह होगा कि वह शून्य से उतरे, ना-कुछ से उतरे। और प्रारंभ | बड़े पैसिफिक महासागर में डुबा देंगे। होने के लिए भी प्रारंभ के पहले कुछ तैयारी चाहिए पड़ेगी। प्रारंभ | जब वे यह कह रहे हैं कि आत्मा को न जलाया जा सकता है, 136
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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