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________________ m+ मरणधर्मा शरीर और अमृत, अरूप आत्मा -AIR देंगे। जो भी कार ऊपर से चलेगी रास्ते के, नीचे से उसे बिजली | यंत्र में फर्क है, बल्ब के यंत्र में फर्क है। चलने के लिए उपलब्ध होती रहेगी। परमात्मा चारों तरफ मौजूद है। सब तरफ वही है। हमारे पास जैसे ट्राम चलती है आपकी। ऊपर तार होता है, उससे बिजली एक सूक्ष्म यंत्र है, सूक्ष्म शरीर। उसके अनुसार हम उससे ताकत मिलती रहती है। ट्राम चलती हैं, बिजली नहीं चलती। बिजली ऊपर और जीवन ले रहे हैं। इसलिए अगर हमारे पास पांच कैंडिल का से मिलती रहती है, नीचे से ट्राम दौड़ती रहती है। जितनी आगे सूक्ष्म शरीर है, तो हम पांच कैंडिल की ताकत ले रहे हैं; पचास बढ़ती है, उधर से बिजली मिल जाती है। जैसे ट्राम चलती है और कैंडिल का है, तो पचास कैंडिल की ले रहे हैं। महावीर के पास बिजली नहीं चलती, लेकिन ऊपर से प्रतिपल मिलती रहती है। और हजार कैंडिल का है, तो हजार कैंडिल का ले रहे हैं। हम गरीब हैं जब बिजली न मिले, तो ट्राम तत्काल रुक जाए। बिजली के द्वारा | | बहुत, एक ही कैंडिल का सूक्ष्म शरीर है, तो एक ही कैंडिल की ले चलती है, लेकिन बिजली नहीं चलती, ट्राम चलती है। ठीक वैसे ही रूस का वैज्ञानिक कहता है, नीचे हम सड़कों के | | परमात्मा की कंजूसी नहीं है इसमें। हम जितना बड़ा पात्र लेकर तार बिछा देंगे, कार ऊपर से दौड़ती रहेगी। बस, उसके दौड़ने से | आ गए हैं, उतना ही उपलब्ध हो रहा है। हम चाहें हम हजार कैंडिल वह बिजली लेती रहेगी। कार का मीटर तय करता रहेगा, कितनी | के हो जाएं, तो ठीक महावीर से जैसी प्रतिभा प्रकट होती है, हमसे बिजली आपने ली। वह आप जमा करते रहेंगे। लेकिन बिजली नहीं प्रकट हो जाए। और एक सीमा आती है कि महावीर कहते हैं, हजार चलेगी, चलेगी कार। से भी काम नहीं चलेगा, हम तो अनंत कैंडिल चाहते हैं! तो फिर ठीक ऐसे ही, आत्मा व्यापक तत्व है; वह है ही सब जगह। कहते हैं कि बल्ब तोड़ दो, तो फिर अनंत कैंडिल के हो जाओ। सिर्फ हमारा सूक्ष्म शरीर बदलता रहता है, दौड़ता रहता है। और क्योंकि बल्ब जब तक रहेगा, तो सीमा रहेगी ही कैंडिल की, हजार , आत्मा से उसे जीवन मिलता रहता है। हो, दो हजार हो, लाख हो, दस लाख हो। लेकिन अगर अनंत जिस दिन सक्ष्म शरीर बिखर जाता है, टाम टूट गई, बिजली प्रकाश चाहिए. तो बल्ब तोड दो। तो फिर महावीर कहते हैं. हम अपनी जगह रह जाती है; ट्राम टूट जाती है, सूक्ष्म शरीर खो जाता बल्ब तोड़ देते हैं, हम मुक्त हो जाते हैं। है। तो जब सूक्ष्म शरीर खोता है, तो आत्मा परमात्मा से मिल जाती मुक्त होने का कुल मतलब इतना है कि अब ले चुके यंत्रों से है, ऐसा नहीं। आत्मा परमात्मा से सदा मिली ही हुई थी, सूक्ष्म | बहुत, लेकिन देखा कि हर यंत्र सीमा बन जाता है। और जहां सीमा शरीर की दीवार के कारण अलग मालूम पड़ती थी, अब अलग नहीं | है वहां दुख है। इसलिए तोड़ देते हैं यंत्र को, अब हम पूरे के साथ मालूम पड़ती है। एक ही हुए जाते हैं। __ आने-जाने की जो धारणा है-आवागमन की—वह बड़ी क्रूड यह भाषा की गलती है कि एक ही हुए जाते हैं, एक थे ही। यंत्र सिमली है। वह बहुत ही दूर की है, लेकिन कोई उपाय नहीं है। जो | बीच में था, इसलिए कम मिलता था। यंत्र टूट गया, तो पूरा है। " मैं कह रहा हूं, मैं यह कह रहा हूं कि आत्मा तो चारों तरफ मौजूद आत्मा आती-जाती नहीं, सूक्ष्म शरीर आता है, जाता है। स्थूल है, हमारे भीतर भी, बाहर भी। शरीर आता है, जाता है। स्थूल शरीर मिलता है माता-पिता से, __ अब यहां बिजली के बल्ब जल रहे हैं। एक सौ कैंडिल का बल्ब | सूक्ष्म शरीर मिलता है पिछले जन्म से। और आत्मा सदा से है। जल रहा है, एक पचास कैंडिल का जल रहा है, एक बीस कैंडिल सूक्ष्म शरीर न हो, तो स्थूल शरीर ग्रहण नहीं किया जा सकता। का जल रहा है, एक बिलकुल जुगनू की तरह पांच कैंडिल का जल सूक्ष्म शरीर टूट जाए, तो स्थूल शरीर ग्रहण करना असंभव है। रहा है। इन सबके भीतर एक सी बिजली दौड़ रही है। और प्रत्येक इसलिए सूक्ष्म शरीर के टूटते ही दो घटनाएं घटती हैं। एक तरफ अपनी कैंडिल के आधार पर उतनी बिजली ले रहा है। यह माइक सूक्ष्म शरीर गिरा कि स्थूल शरीर की यात्रा बंद हो जाती है। और है, इसमें तो कोई बल्ब भी नहीं लगा हआ है: यह माइक अपनी | दूसरी तरफ परमात्मा से जो हमारी सीमा थी, वह मिट जाती है। सूक्ष्म उपयोगिता के लिए बिजली ले रहा है। रेडियो अपनी उपयोगिता की | शरीर का गिर जाना ही साधना है। बीच का सेतु, जो ब्रिज है बीच में बिजली ले रहा है, पंखा अपनी उपयोगिता की बिजली ले रहा है। हमें जोड़ने वाला—शरीर से इस तरफ और उस तरफ परमात्मा बिजली में कोई फर्क नहीं है—पंखे के यंत्र में फर्क है, माइक के | | से—वह गिर जाता है। उसको गिरा देना ही समस्त साधना है। 133|
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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