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________________ m-मरणधर्मा शरीर और अमृत, अरूप आत्मा पर को साफ कर दो। विद्युत के धक्कों से, और दूसरे केमिकल्स से, कृष्ण जब कह रहे हैं कि कोई है अजन्मा, नहीं जन्मता, नहीं और दूसरी मानसिक प्रक्रियाओं से उसकी स्मृति को पोंछ डालो। मरता, जिसे शस्त्रों से छेदा नहीं जा सकता...। फिर क्या बात है? समाप्त हो गई। अगर मार्क्स के दिमाग को साफ आपको, मुझे छेदा जा सकता है। इसलिए ध्यान रखना, जिसे कर दो. तो कैपिटल साफ हो जाएगी। उसके दिमाग में जो है. वह छेदा जा सकता है. कष्ण उसके संबंध में बात नहीं कर रहे हैं। वे मिट जाएगा। फिर उस आदमी की कोई आइडेंटिटी, उसका कोई कहते हैं कि जिसे छेदा नहीं जा सकता शस्त्रों से, आग में जलाया तादात्म्य पीछे से नहीं रह जाएगा। नहीं जा सकता, पानी में डुबाया नहीं जा सकता। तो हम जिसे कहते हैं मैं, जो कभी पैदा हुआ, जो किसी का बेटा हमें तो छेदा जा सकता है; कोई कठिनाई नहीं है छेदे जाने में। है, किसी का पिता है, किसी का पति है, यह सिर्फ चित्रों का संग्रह आग में जलाए जाने में कोई कठिनाई नहीं है। पानी में डुबाए जाने है, एलबम है; इससे ज्यादा नहीं है। अपना-अपना एलबम सम्हाले में कोई कठिनाई नहीं है। बैठे हैं। उसी को लौट-लौटकर देख लेते हैं; दूसरों को भी दिखा __तो जो पानी में डुबाया जा सकता, आग में जलाया जा सकता, देते हैं, कोई घर में आता है, कि यह एलबम है। बाकी यह आप | शस्त्रों से छेदा जा सकता, उसकी यह चर्चा नहीं है। जिसके ऊपर नहीं हैं। सर्जन कुछ कर सकता है, उसकी यह चर्चा नहीं है। जिसके लिए ___ अगर इस एलबम को आप समझते हों कि कृष्ण कह रहे हैं डाक्टर कुछ कर सकता है, उसकी यह चर्चा नहीं है। डाक्टर जिससे अजात, तो इस गलती में मत पड़ना। यह अजात नहीं है। यह तो उलझा है, वह मर्त्य है। और सर्जन जिस पर काम कर रहा है, वह जन्मा है। यह तो जात है। यह मरेगा भी। जो जन्मा है, वह मरेगा भी। मरणधर्मा है। विज्ञान की प्रयोगशाला में जिस पर खोज-बीन हो रही जन्म एक छोर है, मृत्यु दूसरा अनिवार्य छोर है। आप तो मरेंगे ही। है, वह मरणधर्मा है। इससे उसका कोई लेना-देना नहीं है। इस बात को ठीक से समझ लें, तो शायद उस आप को खोजा इसलिए अगर वैज्ञानिक सोचता हो कि अपनी प्रयोगशाला की जा सके, जो कि नहीं मरेगा। लेकिन हम इसी मैं को पकड़े रह जाते टेबल पर किसी दिन वह कृष्ण के अजात को, अजन्मे को, अमृत हैं, जो जन्मा है। यह मैं—यह मैं—मैं नहीं हूं। यह सिर्फ मेरे उस को पकड़ लेगा, तो भूल में पड़ा है। वह कभी पकड़ नहीं पाएगा। गहरे मैं पर इकट्ठे हो गए चित्र हैं, जिनसे मैं गुजरा हूं। उसके सब सूक्ष्मतम औजार उसको ही पकड़ पाएंगे, जो छेदा जा इसलिए जापान में झेन फकीर के पास जब कोई साधक जाता है सकता है। लेकिन जो नहीं छेदा जा सकता, अगर वह दिखाई पड़ और उससे पूछता है कि मैं क्या साधना करूं? तो वह कहता है कि जाए...वह दिखाई पड़ सकता है। वह दिखाई पड़ सकता है। तू यह साधना कर, अपना ओरिजनल फेस, जो जन्म के पहले तेरा सिकंदर हिंदुस्तान आया। जब हिंदुस्तान से वापस लौटता था, चेहरा था, उसको खोजकर आ। तो हिंदुस्तान की सीमा को छोड़ते वक्त उसके मित्रों ने याद दिलाया जन्म के पहले कहीं कोई चेहरा होता है! अब कोई आपसे कहने कि जब हम यूनान से चले थे, तो यूनान के दार्शनिकों ने कहा था लगे, मरने के बाद जो आपकी शकल होगी, उसको खोजकर कि हिंदुस्तान से एक संन्यासी को लेते आना। लाइए। कोई आपसे कहे कि जन्म के पहले जो आपकी शकल थी, अब संन्यासी जो है, वह सच यह है कि जगत को हिंदुस्तान की वह खोजकर लाइए। देन है, अकेली देन है। पर काफी है। सारे जगत की सारी देनें भी वे झेन फकीर ठीक कहते हैं। वे वही कहते हैं, जो कृष्ण कह रहे इकट्ठी कर ली जाएं, तो एक संन्यासी भी हमने जगत को दिया, तो हैं। वे यह कहते हैं, उसका पता लगाओ, जो तुममें कभी जन्मा नहीं | | हमने बैलेंस पूरा कर दिया है। और शायद जिस दिन दुनिया की सब था। अगर ऐसे किसी सूत्र को तुम खोज सकते हो, जो जन्म के देनें बेकार सिद्ध हो जाएंगी, उस दिन हमारा दिया संन्यास ही सारी पहले भी था, तो विश्वास रखो फिर कि वह मृत्यु के बाद भी होगा। | दुनिया के लिए अर्थ का हो सकता है। जो जन्म के पहले था, उसे मृत्यु नहीं पोंछ सकेगी। जो जन्म के | । तो याद दिलाई मित्रों ने सिकंदर को कि एक संन्यासी को तो ले पहले था, वह मृत्यु के बाद भी होगा। और जो जन्म के बाद ही चलें। बहुत चीजें लूट ली हैं। धन लूट लिया, लेकिन धन वहां भी हुआ है, वह मृत्यु के पहले तक ही साथी हो सकता है, उसके आगे है। बहुमूल्य चीजें, हीरे-जवाहरात ले जा रहे हैं, लेकिन वे वहां भी साथी नहीं हो सकता है। हैं। एक संन्यासी को भी ले चलें, जो वहां नहीं है। सिकंदर ने सोचा | 125
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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