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________________ गीता दर्शन भाग-1 पीछे, अरूप भी चाहिए। वह अरूप न हो, तो रूप टिक न सकेंगे। फिल्म देखते हैं सिनेमागृह में बैठकर । प्रतिपल दौड़ते रहते हैं फिल्म के चित्र | चित्रों में कुछ होता नहीं बहुत । सिर्फ किरणों का जाल होता है। छाया-प्रकाश का जोड़ होता है। लेकिन पीछे एक परदा चाहिए। वह परदा बिलकुल दिखाई नहीं पड़ता, जब तक फिल्म दौड़ती रहती है । उसे दिखाई पड़ना भी नहीं चाहिए । अगर वह दिखाई पड़े, तो फिल्म दिखाई न पड़ सके। जब तक फिल्म चलती रहती है, रूप आते और जाते रहते हैं, तब तक पीछे थिर खड़ा परदा दिखाई नहीं पड़ता । लेकिन उस परदे को हटा दें, तो ये रूप कहीं भी प्रकट नहीं हो सकते, ये आकृतियां कहीं भी प्रकट नहीं हो सकतीं। इन आकृतियों की दौड़ती हुई परिवर्तन की इस लीला में पीछे कोई थिर परदा चाहिए, जो उन्हें सम्हाले। एक चित्र आएगा, तब भी परदा वी होगा। दूसरा चित्र आएगा, तब भी परदा वही होगा। तीसरा चित्र आएगा, तब भी परदा वही होगा। चित्र बदलते जाएंगे, परदा वही होगा। तभी इन चित्रों में एक संगति, तभी इन चित्रों में एक श्रृंखला, तभी इन चित्रों में एक संबंध दिखाई पड़ेगा। वह संबंध, पीछे जो थिर परदा है, उससे ही पैदा हो रहा है। सारा जीवन चित्रों का फैलाव है। ये चित्र टिक नहीं सकते। जन्म भी एक चित्र है, मृत्यु भी एक चित्र है— जवानी भी, बुढ़ापा भी, सुख भी, दुख भी, सौंदर्य भी, कुरूपता भी, सफलता-असफलता भी वह सब चित्रों की धारा है। उन चित्रों की धारा को सम्हालने के लिए कोई चाहिए, जो दिखाई नहीं पड़ेगा। उसको दिखाई पड़ने का उपाय नहीं है। जब तक चित्रों को आप देख रहे हैं, तब तक वह दिखाई नहीं पड़ेगा। वह परदे की तरह जो पीछे खड़ा है, वही अस्तित्व है। उसे कृष्ण कहते हैं, वह अजात, अजन्मा, कभी जन्मता नहीं, कभी मरता नहीं। लेकिन भूलकर भी आप ऐसा मत समझ लेना कि यह आपके संबंध में कहा जा रहा है। आप तो जन्मते हैं और मरते हैं । और जिस आप के संबंध में यह कहा जा रहा है, उस आप का, आपको कोई भी पता नहीं है। जिस आप को आप जानते हैं, वह तो जन्मता है; उसकी तो जन्म-तारीख है; उसकी तो मृत्यु की तिथि भी होगी। कब्र पर पत्थर लगेगा, तो उसमें जन्म और मृत्यु दोनों की तारीखें लग जाएंगी। लोग, जब आप जन्मे थे, तो बैंडबाजा बजाए थे, खुशी किए थे। जब मरेंगे, तो रोएंगे, दुखी होंगे। आप जितना अपने को जानते हैं, वह सिर्फ चित्रों का समूह है। इसे थोड़ा वैज्ञानिक ढंग से भी समझना उपयोगी है कि क्या सच | में ही जिसे आप जानते हैं, वह चित्रों का समूह है? अब तो हम ब्रेनवाश कर सकते हैं। अब तो वैज्ञानिक रास्ते उपलब्ध हैं, जिनसे हम आपके चित्त की सारी स्मृति को पोंछ डाल | सकते हैं। एक आदमी है पचास साल का, उसे पता है कि चार लड़कों का पिता है, पत्नी है, मकान है, यह उसका नाम है, यह उसकी वंशावली है। इस इस पद पर रहा है, यह यह काम किया | है। सब पचास साल की कथा है। उसका ब्रेनवाश किया जा सकता | है | उसके मस्तिष्क को हम साफ कर डाल सकते हैं। फिर भी वह होगा। लेकिन फिर वह यह भी न बता सकेगा कि मेरा नाम क्या है। और यह भी न बता सकेगा कि मेरे कितने लड़के हैं। मेरे एक मित्र हैं डाक्टर | ट्रेन से गिर पड़े। चोट खाने से स्मृति चली गई। बचपन से मेरे साथी हैं, साथ मेरे पढ़े हैं। देखने उन्हें मैं | उनके गांव गया । जाकर सामने बैठ गया; उन्होंने मुझे देखा और जैसे नहीं देखा। मैंने उनसे पूछा, पहचाना नहीं ? उन्होंने कहा कि | कौन हैं आप? उनके पिता ने कहा कि सारी स्मृति चली गई है; जब से ट्रेन से गिरे हैं, चोट लग गई, सारी स्मृति चली गई; कोई स्मरण नहीं है। इस आदमी के पास इसका कोई अतीत नहीं है। चित्र खो गए। | कल तक यह कहता था, मैं यह हूं, मेरा यह नाम है। अब वे सब चित्र खो गए। वह फिल्म वाश हो गई। वह सब धुल गया। अब | यह खाली है - कोरा कागज । अब इस कोरे कागज पर फिर से लिखा जाएगा। अब उसकी नई स्मृति बननी शुरू हुई। | अभी जब दुबारा मैं मिलने गया, तो उसने कहा कि आपको पता होगा कि तीन साल पहले मैं गिर पड़ा, चोट लग गई। अब इस तीन साल की स्मृति फिर से निर्मित होनी शुरू हुई। लेकिन तीन | साल के पहले वह कौन था, वह बात समाप्त हो गई। हां, उसे याद | दिलाते हैं कि तुम डाक्टर थे, तो वह कहता है, आप लोग कहते हैं | कि मैं डाक्टर था, लेकिन मुझे कुछ पता नहीं । मेरा इतिहास तो बस | वहीं से समाप्त हो जाता है, जहां से वह घटना घट गई, जहां वह दुर्घटना घट गई। आज चीन में तो कम्युनिस्ट ब्रेनवाश को एक पोलिटिकल, एक राजनैतिक उपाय बना लिए हैं। रूस में तो वह चल ही रहा है। अब आने वाली दुनिया में किसी राजनैतिक विरोधी को मारने की जरूरत | नहीं होगी। क्योंकि इससे बड़ी हत्या और क्या हो सकती है कि उसके ब्रेन को वाश कर दो। विरोधी को पकड़ो और उसके मस्तिष्क 124
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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