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________________ भागना नहीं - जागना है 4 इन अर्थों में कृष्ण का संदेश बहुत कठिन हो जाता है समझना। चुनाव आसान पड़ता है - यह बुरा है, यह ठीक है । लेकिन ठीक और बुरा दोनों ही स्वप्न हैं, यहां हमारे पैर डगमगा जाते हैं। लेकिन जो यहां पैर को थिर रख सके, वही गीता में आगे प्रवेश कर सकेगा। इसलिए इस बात को बिलकुल ठीक से समझ लेना कि कृष्ण न हिंसक हैं, न अहिंसक हैं। क्योंकि हिंसक की मान्यता है कि मैं दूसरे मार डालता हूं। और अहिंसक की मान्यता है कि मैं दूसरे को बचा रहा हूं। और कृष्ण कहते हैं कि जो न मारा जा सकता, वह बचाया भी नहीं जा सकता है। न तुम बचा सकते हो, न तुम मार सकते हो। जो है, वह है । और जो नहीं है, वह नहीं है। तुम दोनों एक-दूसरे से विपरीत स्वप्न देख रहे हो । एक आदमी किसी की छाती में छुरा भोंक देता है, तो सोचता है, • मिटा डाला इसे । और दूसरा आदमी उसकी छाती से छुरा निकाल कर मलहम पट्टी करता है, और सोचता है, बचा लिया इसे । इन दोनों ने सपने देखे विपरीत - एक बुरे आदमी का सपना, एक अच्छे आदमी का सपना। और हम चाहेंगे कि अगर सपना ही देखना है, तो अधिक लोग अच्छे आदमी का सपना देखें। लेकिन कृष्ण यह कह रहे हैं कि दोनों सपने हैं। और एक और तल है देखने का, जहां बचाने वाला और मारने वाला एक सी ही भूल कर रहा है। वह भूल यही है कि जो है, उसे या तो मिटाया जा सकता है, या बचाया जा सकता है। कृष्ण कह रहे हैं, जो नहीं है, वह नहीं है; जो है, वह है। वे यह नहीं कह रहे हैं कि बुरे आदमी का सपना देखें, वे यह कह रहे हैं कि दोनों ही सपने हैं । और अगर देखना ही है, तो पूरे सपने को देखें, ताकि जाग जाएं। अगर देखना ही है, तो बुरे-अच्छे आदमी के सपनों में चुनाव न करें, पूरे सपने को ही देखें और जाग जाएं। यह जागरण की, अवेयरनेस की जो प्रक्रिया कृष्ण अर्जुन को कह रहे हैं, वह अर्जुन की कैसे समझ में आएगी, बड़ी कठिनाई है। क्योंकि अर्जुन बड़ी नीतिवादी बातें कर रहा है । और वह नैतिक सपना देखने को बड़ा उत्सुक है। वह अनैतिक सपने से ऊबा हुआ मालूम पड़ता है। अब वह नैतिक सपना देखने को उत्सुक है। और कृष्ण कहते हैं, सपने में ही चुनाव कर रहा है। पूरे सपने के प्रति ही जाग जाना है। एक सूत्र और पढ़ लें, फिर रात हम बात करेंगे। य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् । उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते । । १९ । । और, जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है, तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों हीं नहीं जानते हैं। क्योंकि, यह आत्मा न मारता है और न मारा जाता है। जो है, वह न मरता है और न मारा जाता है। और जो है हमारे भीतर, उसका नाम आत्मा है। और जो है हमारे बाहर, उसका नाम परमात्मा है। जो मारा जाता है और जो मार सकता है, या जो अनुभव करता है कि मारा गया – हमारे भीतर उसका नाम शरीर है, हमारे बाहर उसका नाम जगत है। जो अमृत है, जो इम्मार्टल है, वही चेतना है । और जो मर्त्य है, वही जड़ है। साथ ही, जो मर्त्य है, वही लहर है, असत है; और जो अमृत है, वही सागर है, सत है। अर्जुन के मन में यही चिंता, दुविधा और पीड़ा है कि मैं कैसे मारने में संलग्न हो जाऊं ! इससे तो बेहतर है, मैं ही मर जाऊं । ये दोनों बातें एक साथ ही होंगी। जो दूसरे को सोच सकता है मरने | की भाषा में, वह अपने को भी मरने की भाषा में सोच सकता है। | जो सोच सकता है कि मृत्यु संभव है, वह स्वभावतः दुखी हो जाएगा। लेकिन कृष्ण कह रहे हैं कि मृत्यु एक मात्र असंभावना है – दि ओनली इंपासिबिलिटी । मृत्यु हो ही नहीं सकती । मृत्यु की असंभावना है। लेकिन जिंदगी जहां हम जीते हैं, वहां तो मृत्यु से ज्यादा निश्चित और कोई संभावना नहीं है। वहां सब चीजें असंभव हो सकती हैं, मृत्यु भर सुनिश्चित रूप से संभव है। एक बात तय है, वह है मृत्यु । और सब बातें तय नहीं हैं। और सब बदलाहट हो सकती है। कोई दुखी होगा, कोई सुखी होगा। कोई स्वस्थ होगा, कोई बीमार होगा। कोई सफल होगा, कोई असफल होगा। कोई दीन होगा, कोई | सम्राट होगा । और सब होगा, और सब विकल्प खुले हैं, एक | विकल्प बंद है। वह मृत्यु का विकल्प है, वह होगा ही । सम्राट भी वहां पहुंचेगा, भिखारी भी वहां पहुंचेगा; सफल भी, असफल भी; स्वस्थ भी, बीमार भी - सब वहां पहुंच जाएंगे। एक बात, जिस जीवन में हम खड़े हैं, वहां तय है, वह मृत्यु है। और कृष्ण बिलकुल उलटी बात कह रहे हैं, वे यह कह रहे हैं कि एक बात भर सुनिश्चित है कि मृत्यु असंभावना हैं। न कभी 117
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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