________________
Om गीता दर्शन भाग-1 AM
की दीवारें दिखाई पड़ेंगी। अगर दीवारें भी निकाल ली जाएं, तो ही जुड़ा है। हम कितना ही कहें सूक्ष्मातिसूक्ष्म, तो भी स्थूल से ही आप कहेंगे, यहां कमरा ही नहीं है।
| जुड़ा है। आदमी की भाषा द्वंद्व से बनी है। उसमें पेयर्स हैं, उसमें लेकिन दीवारें कमरा नहीं हैं। दीवारों के बीच में जो खाली जगह दो-दो चीजों के जोड़े हैं। है, वही कमरा है। अंग्रेजी का शब्द रूम बहुत अच्छा है। रूम का | लेकिन कृष्ण जिसे सूक्ष्म कह रहे हैं, वह स्थूल का कोई हिस्सा मतलब होता है, खाली जगह। रूम का मतलब ही होता है, खाली नहीं है। कृष्ण सूक्ष्म कह रहे हैं उसे, जो स्थूल नहीं है। मजबूरी है। जगह। पर वह खाली जगह दिखाई भी नहीं पड़ती, खयाल में भी | लेकिन उसके लिए हमारे पास कोई शब्द नहीं है। इसलिए नहीं आती, क्योंकि खाली जगह का हमें स्मरण ही नहीं है। असल निकटतम गलत शब्द जो हो सकता है, वह सूक्ष्म है। यानी कम से में खाली जगह इतनी सदा से है कि उसे हमें देखने की जरूरत ही | कम गलत शब्द जो हो सकता है, वह सूक्ष्म है। उसके लिए कोई नहीं पड़ी है।
शब्द नहीं है। कुछ भी हम कहें।। ठीक ऐसे ही, यह जो विराट आकाश है, यह जो स्पेस है अनंत, हमने जितने शब्द बनाए हैं, वे बड़े मजेदार हैं। हम उलटे से यह जो खाली जगह है, यह जो एंपटीनेस है फैली हुई अनंत तक, | उलटा शब्द भी प्रयोग करें, तो भी कोई अंतर नहीं पड़ता। वह जिसका कोई ओर-छोर नहीं है, जो कहीं शुरू नहीं होती और कहीं | उलटे से उलटा भी हमारे पुराने शब्द से ही जुड़ा होता है। अगर हम समाप्त नहीं होती।
कहें कि वह असीम है, तो भी हमें सीमा से ही वह शब्द बनाना आप ध्यान रखें, खाली चीज कभी भी शुरू और समाप्त नहीं हो पड़ता है। सकती, सिर्फ भरी चीज शुरू और समाप्त हो सकती है। खालीपन | अब यह बड़े मजे की बात है कि सीमा में असीम का कोई भाव की कोई बिगनिंग और कोई एंड नहीं हो सकता। कमरे के खालीपन नहीं होता। लेकिन असीम में सीमा का भाव होता है। हम कितनी की कौन-सी शुरुआत है और कौन-सा अंत है? हां, दीवार का ही कल्पना करें असीम की, हम ज्यादा से ज्यादा बहुत बड़ी सीमा होता है, सामान का होता है, कमरे का नहीं होता। स्पेस की कोई की कल्पना करते हैं। हम कितना ही सोचें, तो हमारा मतलब यही सीमाएं नहीं हैं, आकाश का अर्थ ही है कि जिसकी कोई सीमा नहीं | | होता है कि सीमा और आगे हटा दो, और आगे हटा दो, और आगे है। यह जो असीम फैला हुआ है, यह सत है। और इस असीम के | हटा दो। लेकिन सीमा होगी ही नहीं, यह हमारा विचार नहीं सोच । बीच में बहुत कुछ उठता है, बनता है, निर्मित होता है, बिखरता है, पाता। वह इनकंसिवेबल है। उसकी कोई चिंतना नहीं हो सकती वह असत है।
असीम की। वृक्ष बने, खालीपन थोड़ी देर के लिए हरा हुआ। फूल खिले, __ जब हम कहते हैं, कमरे में खालीपन है, तो उसका मतलब हमारे खालीपन थोड़ी देर के लिए सुगंध से भरा। फिर फूल गिर गए, फिर | मन में यह होता है कि कमरे में खालीपन भरा है। तो हम एंपटीनेस वृक्ष गिर गया; खालीपन फिर अपनी जगह है। और जब वृक्ष उठा | | को भी वस्तु की तरह उपयोग करते हैं, खालीपन भरा है। जैसे था और फूल खिले थे, तब भी खालीपन में कोई अंतर नहीं पड़ा | | खालीपन कोई चीज है। जब कि खालीपन का मतलब न भरा होना था; वह वैसा ही था।
| है, जहां कुछ भी नहीं है। लेकिन अगर हम कुछ भी नहीं का भी चीजें बनती हैं और मिटती हैं। जो बनता है और मिटता है, वह | प्रयोग करें, तो हम कुछ भी नहीं का भी वस्त की तरह प्रयोग करते स्थूल है, वह दिखाई पड़ता है। जो नहीं बनता, नहीं मिटता, वह | | हैं। अंग्रेजी में शब्द है नथिंग, वह बना है नो-थिंग से। नथिंग भी सूक्ष्म है, वह अदृश्य है। सूक्ष्म कहना भी ठीक नहीं है। लेकिन | कहना हो-नहीं कुछ तो भी थिंग, वस्तु उसमें लानी पड़ती है। मजबूरी में कृष्ण ने सूक्ष्म का प्रयोग किया है। उचित नहीं है, लेकिन बिना वस्तु के हम सोच ही नहीं सकते; बिना स्थूल के हम सोच ही मजबूरी है। कोई और उपाय नहीं है। असल में जब हम कहते हैं | नहीं सकते। सूक्ष्म, तो हमारा मतलब यह होता है, स्थूल का ही कोई हिस्सा। ___ इसलिए कृष्ण के इस सूक्ष्म शब्द को आदमी की मजबूरी समझें। जब हम कहते हैं छोटा, तो मतलब होता है कि बड़े का ही कोई इसका मतलब स्थूल का कोई अंश नहीं है, कोई बहुत सूक्ष्म स्थूल हिस्सा। जब हम कहते हैं बहुत सूक्ष्म, तो हमारा मतलब होता है | नहीं है। सूक्ष्म का अर्थ है, जो स्थूल नहीं ही है। और स्थूल क्या कि बहुत कम स्थूल। बाकी मनुष्य की भाषा में सूक्ष्म भी स्थूल से है? जो दिखाई पड़ता है, वह स्थूल है। जो स्पर्श में आता है, वह