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________________ m+ मृत्यु के पीछे अजन्मा, अमृत और सनातन का दर्शन +m था, तुम भी थे। दिखाई पड़ रही है। फिर बैलगाड़ी मुझे भी दिखाई पड़ने लगती है। भविष्य से मेरे | - यहां भी डर है कि भूल हो जाएगी। यहां भी डर यह है कि अर्जुन लिए भी वर्तमान में आ जाती है। फिर रास्ते पर चली जाती है, थोड़ी | समझेगा कि मैं अर्जुन नाम का व्यक्ति पहले भी था। कृष्ण यह नहीं देर में मुझे दिखाई पड़नी बंद हो जाती है। अतीत में चली जाती है, | कह रहे हैं। अर्जुन नाम का व्यक्ति कभी नहीं था पहले हो नहीं पास्ट में। लेकिन झाड़ पर से आप कहते हैं कि नहीं, मुझे अभी भी सकता। अर्जुन नाम का व्यक्ति तो सिर्फ एक वस्त्र है। उस वस्त्र दिखाई पड़ रही है। मेरे लिए अभी भी वर्तमान में है। के पीछे जो छिपी है चेतना निराकार, वह थी। और अर्जुन नाम का मेरे लिए बैलगाड़ी भविष्य में थी, वर्तमान में हुई, अतीत में हो व्यक्ति आगे भी नहीं होगा। वह तो वस्त्र है, वह तो मौत के साथ गई। आपके लिए एक ही प्रेजेंट में चल रही है, वर्तमान में चल रही | खो जाएगा। हां, जिस पर टंगा है वस्त्र, वह आगे भी होगा। है। आप जरा मुझसे ऊंचाई पर बैठे हैं और कोई खास फर्क नहीं है। ___ कृष्ण जो कह रहे हैं, अगर अर्जुन बहुत भी समझेगा, तो भी भूल जहां से कृष्ण देख रहे हैं, वह ऊंचाई से देखना है, फ्राम दि पीक। | होने वाली है। वह भूल यह होगी कि वह ज्यादा से ज्यादा यही जहां से वे कह रहे हैं कि नहीं, कल भी थे, परसों भी थे, पहले भी | समझेगा, तो मैं अर्जुन तुम कृष्ण, हम पहले भी थे। ये जो लोग थे; अभी भी हैं, कल भी होंगे, परसों भी होंगे। असल में कृष्ण | खड़े हैं, ये पहले भी थे। वह फिर भी वही पूछेगा, ये आकृतियां जहां से देख रहे हैं, वहां एवर प्रेजेंट है, वहां सब वर्तमान है। अर्जुन पहले भी यही थीं? जहां से देख रहा है, वहां से वह कहता है, क्या पता जन्म के पहले आकृतियां कभी ये न थीं। लेकिन आकृति अभिव्यक्ति है। थे या नहीं थे! मुझे पता नहीं। बस, उसकी यात्रा जन्म तक जाती अनाकृति, निराकार अस्तित्व-अभिव्यक्ति नहीं है। लेकिन है। जन्म तक भी नहीं जाती। अस्तित्व अनभिव्यक्त भी हो सकता है, अनमैनिफेस्ट भी हो अगर आप ठीक से देखेंगे, तो चार वर्ष से पहले की स्मृति | सकता है। जो प्रकट है वही नहीं है, जो अप्रकट है वह भी यही है। आपको नहीं होती है। चार वर्ष से पहले की बात अनुमान है, | | प्रकट हमें है ही क्या! बहुत थोड़ा-सा हमें प्रकट है। इनफरेंस है। लोग कहते हैं कि आप थे। चार वर्ष तक आपकी स्मृति । अगर हम वैज्ञानिक से पूछे, तो आज वैज्ञानिक कहने लगा है जाती है। कोई बहुत बुद्धिमान हुआ, तीन वर्ष तक चली जाएगी। | कि हमारे सामने प्रकट बहुत थोड़ा-सा है। यहां हम बैठे हैं। आज कोई और बहुत ही प्रतिभाशाली हुआ, तो दो वर्ष तक चली जाएगी। से दो सौ साल पहले रेडियो तो नहीं था। आज रेडियो है। यहां हम लेकिन दो वर्ष तक भी जाए, तो दो वर्ष तक आप थे? कुछ कहा | रेडियो रखे हैं और उसे लगाते हैं और लंदन की आवाज सुनाई नहीं जा सकता। स्मृति ही आधार है, तो दो वर्ष के पहले आप नहीं | | पड़नी शुरू हो जाती है। जब आप रेडियो पर बटन घुमाते हैं, तब थे। लेकिन अचानक कैसे हो जाएंगे, अगर दो वर्ष तक न रहे हों। लंदन से आवाज शुरू हो जाती है? नहीं, लंदन की आवाज तों लेकिन अगर याद आ जाए जन्म तक दसरे याद दिला देते गजर ही रही थी परे वक्त। सिर्फ आपके पास रेडियो नहीं था. जो हैं—पर मां के पेट में भी आप थे, उसकी कोई स्मति नहीं है। पकड़े। जब नहीं सुन रहे थे, तब भी गुजर रही थी; मैनिफेस्ट नहीं लेकिन गहरी हिप्नोसिस में उसकी स्मृति भी आ जाती है। गहरे | | थी, प्रकट नहीं थी; अप्रकट गुजर रही थी। कान उसे नहीं पकड़ सम्मोहन में व्यक्ति को बेहोश किया जाए, तो वह बता देता है कि | पाते थे, बस इतना ही। और भी हजारों आवाजें गुजर रही हैं। वह तीन महीने का जब मां के पेट में था, तो मां गिर पड़ी थी। बच्चे ___ वैज्ञानिक कहते हैं कि हमारी आवाज सुनने का एक रेंज है। इतनी को भी तो चोट लगती है, जब मां गिरती है तो। गर्भ की भी स्मृति | तरंगों तक हम सुनते हैं। इतनी तरंगों के नीचे भी नहीं सुनते, इसके आ जाती है। गर्भ के पार की भी स्मृति आ सकती है। पिछले जन्म | | ऊपर भी नहीं सुनते। हमारी सुनने की क्षमता की एक सीमा है; की भी स्मृति आ सकती है। लेकिन वह हमारे लिए पास्ट होगा। | उसके पार बहुत कुछ गुजर रहा है, जो हमें सुनाई नहीं पड़ता है। उसकी स्मृति जगानी पड़ेगी। अतीत होगा। वह है। उसके नीचे भी बहुत कुछ गुजर रहा है, जो हमें सुनाई नहीं कृष्ण के लिए सब शाश्वत वर्तमान है, दि इटरनल नाउ, अब पड़ता। वह भी है। जो हमें दिखाई नहीं पड़ता, वह भी है। अस्तित्व ही है सब। वे जिस जगह से खड़े होकर देख रहे हैं, वे कहते हैं | | उतना ही प्रकट होता है, जितनी हमारे पास इंद्रियां हैं। कि नहीं अर्जुन, पहले भी सब थे, बाद में भी सब होंगे। मैं भी समझ लें एक अंधा आदमी है, उसके लिए प्रकाश का कोई 93
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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