SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ im+ मृत्यु के पीछे अजन्मा, अमृत और सनातन का दर्शन +Am एक्सटेंशन है। जो हम अपने संबंध में जानते हैं, उसे ही फैलाकर | जानता है, वह कहेगा, लहरों को बनने दो, मिटने दो। लहरों में जो हम समस्त के संबंध में जान लेते हैं। और जो हम अपने संबंध में | | पानी है, जो सागर है, वह पहले भी था जब लहर नहीं थी, और नहीं जानते, उसे हम किसी और के संबंध में कभी नहीं जान सकते।। | बाद में भी होगा जब लहर नहीं होगी। आत्म-ज्ञान ही ज्ञान है; बाकी सब ज्ञान गहरे अज्ञान पर खड़ा होता । जीसस से एक मित्र ने पूछा है उनके कि अब्राहम-एक बहुत है। और अज्ञान पर खड़े ज्ञान का कोई भी भरोसा नहीं। पुराना प्रोफेट हुआ जेरूसलम में, तो अब्राहम बहुत पहले हुआ अब वह अर्जुन बड़े ज्ञान की बातें करता हुआ मालूम पड़ता है; | | आप अब्राहम के संबंध में क्या जानते हैं? तो जीसस ने कहा, जब वह बड़े धर्म की बातें करता हुआ मालूम पड़ता है; लेकिन उसे | | अब्राहम हुआ, उसके पहले भी मैं था—बिफोर अब्राहम, आई इतना भी पता नहीं है कि अरूप भी है कोई, निराकार भी है कोई।। वाज़-मैं अब्राहम के पहले भी था। अस्तित्व के आधार में कुछ है, जो अमृत है-इसका उसे कोई भी निश्चित ही, उस आदमी को शक हुआ होगा। तीस साल से पता नहीं है। और जिसे अमृत का पता नहीं है, उसके लिए जीवन | | ज्यादा उम्र नहीं थी जीसस की। अब्राहम को मरे हजारों साल हो गए में अभी ज्ञान की कोई भी किरण नहीं फूटी। जिसे मृत्यु का पता है, | | और यह आदमी कहता है, अब्राहम के पहले भी मैं था। जब वह घने अंधकार और अज्ञान में खड़ा है। अब्राहम नहीं हुआ था, तब भी मैं था। कसौटी यही है, अगर ज्ञात है आपको सिर्फ मृत्यु, तो अज्ञान । असल में जीसस सागर की बात कर रहे हैं; उस लहर की बात आधार है; और अगर ज्ञात है आपको अमृत, नहीं जो मरता, तो | | नहीं कर रहे, जो मरियम से उठी। वह जो जीसस नाम की लहर है, ज्ञान आधार है। अगर मृत्यु का भय है मन में चाहे दूसरे की, उसकी बात नहीं कर रहे हैं। वह उस सागर की बात कर रहे हैं, जो चाहे अपनी, इससे कोई भेद नहीं पड़ता-अगर मृत्यु का भय है | लहरों के पहले है और लहरों के बाद है। मन में, तो गवाही है वह भय इस बात की कि आपको अमृत का | और जब कृष्ण कहते हैं कि पहले भी हम थे, तू भी था, मैं भी कोई भी पता नहीं है। था; ये जो लोग सामने युद्ध के स्थल पर आकर खड़े हैं, ये भी थे; और अमृत ही है; और मृत्यु केवल ऊपर बनी हुई लहरों का नाम | | बाद में भी हम होंगे तो वे सागर की बात कर रहे हैं। और अर्जुन है। सागर ही है लेकिन सागर दिखाई नहीं पड़ता; दिखाई लहरें| लहर की बात कर रहा है। और अक्सर सागर और लहर की बात पड़ती हैं। आप कभी सागर के किनारे गए हैं, तो सागर देखा है? | | करने वाले लोगों में संवाद बड़ा मुश्किल है, कम्युनिकेशन बहुत कहेंगे, जरूर देखा है। लेकिन सिर्फ लहरें ही देखी होंगी, सागर नहीं मुश्किल है। क्योंकि कोई पूरब की बात कर रहा है, कोई पश्चिम देखा होगा। लहरें सागर नहीं हैं; लहरें सागर में हैं जरूर, लेकिन की बात कर रहा है। लहरें सागर नहीं हैं। क्योंकि सागर बिना लहरों के भी हो सकता है, इसलिए गीता इतनी लंबी चलेगी। क्योंकि अर्जुन बार-बार लेकिन लहरें बिना सागर के नहीं हो सकतीं। पर दिखाई लहरें पड़ती लहरों की बातें उठाएगा, और कृष्ण बार-बार सागर की बात करेंगे, हैं; उन्हीं का जाल फैला है ऊपर। आंखें उन्हीं को पकड़ती हैं, कान | और उनके बीच कहीं भी, कहीं भी कटाव नहीं होता। कहीं वे उन्हीं को सुनते हैं। | एक-दूसरे को काटते नहीं। काट दें तो बात हल हो जाए। इसलिए __ और मजा यह है कि जिस लहर को आप देख रहे हैं, लहर का | लंबी चलेगी बात। वह फिर दोहरकर लहरों पर लौट आएगा। उसे मतलब ही यह है कि आप उसे कभी न देख पाएंगे। क्योंकि लहर, | लहरें ही दिखाई पड़ती हैं। और जिसे लहरें दिखाई पड़ती हैं, उसका देख रहे हैं, तभी बदली जा रही है। देख भी नहीं पाए कि बदल गई। | भी कसूर क्या है! लहरें ही ऊपर होती हैं। लहर का मतलब ही है, जो हो रही है, नहीं हो रही है, जिसका होना ___ असल में जो देखने पर ही निर्भर है, उसे लहरें ही दिखाई पड़ेंगी। और न होना एक साथ चल रहा है; जो उठ रही है और गिर रही है | | अगर सागर को देखना हो, तो खुली आंख से देखना जरा मुश्किल जो है और नहीं है; जो एक साथ डोल रही है। इस लहर को ही हम | है। आंख बंद करके देखना पड़ता है। अगर सागर को देखना हो, देखते हैं। | तो सच तो यह है कि आंख से देखना ही नहीं पड़ता, सागर में जिसने लहरों को ही सागर समझा, वह चिंतित हो सकता है कि | डबकी लगानी पडती है। और डबकी लगाते वक्त आंख बंद कर क्या होगा? लहरें मिट रही हैं, क्या होगा? लेकिन जो सागर को | लेनी होती है। लहरों से नीचे उतरना पड़ता है सागर में। लेकिन जो
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy