SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Sam गीता दर्शन भाग-1 AM आखिरी सूत्र और पढ़ लें। को अपने पक्ष में खड़ा कर लेना बहुत कनफर्मिस्ट, बहुत सरल, बड़ा रूढ़िग्रस्त कदम है; क्योंकि उससे आप अपने को बचाने के | लिए सुविधा और सिक्योरिटी खोजते हैं। श्री भगवानुवाच ___ अर्जुन पंडित की भाषा बोल रहा है, पंडित जैसी बातें बोल रहा अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे । | है। लेकिन अर्जुन को ज्ञान से, प्रज्ञा से कोई लेना-देना नहीं है। गतासूनगतार॑श्च नानुशोचन्ति पण्डिताः । । ११ ।। | अपने पक्ष में सारे शास्त्रों को खड़ा करना चाहता है। श्री कृष्ण बोलेः हे अर्जुन, तू न शोक करने योग्यों के लिए और जो व्यक्ति शास्त्र को अपने पक्ष में खड़ा कर लेना चाहता शोक करता है, और पंडितों के से वचनों को कहता है, परंतु । | है, स्वभावतः अपने को शास्त्र के ऊपर रख लेता है। और अपने पंडितजन, जिनके प्राण चले गए हैं, उनके लिए और जिनके को शास्त्र के ऊपर रख लेने से ज्यादा खतरनाक और कुछ भी नहीं प्राण नहीं गए हैं, उनके लिए भी नहीं शोक करते हैं। हो सकता है। क्योंकि उसने यह तो मान ही लिया कि वह ठीक है; उसमें गलती होने की तो उसे अब कोई संभावना न रही। उसने अपने ठीक होने का तो अंतिम निर्णय ले लिया। अब वह शास्त्रों में सकर जो कृष्ण ने कहा है, वह और भी कठोर है। वे | | में भी अपने को खोज लेता है। ए अर्जुन को कहते हैं कि तुम शास्त्र की भाषा बोल रहे | ईसाई फकीर एक बात कहा करते हैं कि शैतान भी शास्त्र से हो, लेकिन पंडित नहीं हो, मूढ़ हो, मूर्ख हो। क्योंकि | हवाले दे देता है; अक्सर देता है। कोई कठिनाई नहीं है शास्त्र से शास्त्र की भाषा बोलते हुए भी तुम जो निष्पत्तियां निकाल रहे हो, | | हवाले दे देने में। आसान है बात। अर्जुन भी वैसे ही शास्त्र के वे तुम्हारी अपनी हैं। शास्त्र की भाषा बोल रहा है क्या-क्या हवाले दे रहा है। अधर्म हो जाएगा, क्या-क्या अशुभ हो जाएगा, क्या-क्या बुरा हो __ और बड़े मजे की बात यह है कि किस आदमी के सामने शास्त्र जाएगा-पूरी शास्त्र की भाषा अर्जुन बोल रहा है। लेकिन शास्त्र के हवाले दे रहा है! जब शास्त्र मूर्तिमंत सामने खड़ा हो, तब शास्त्र की भाषा पर अपने को थोप रहा है। जो निष्कर्ष लेना चाहता है, | के हवाले सिर्फ नासमझ दे सकता है। किस आदमी के सामने ज्ञान , वह उसके भीतर लिया हुआ है। शास्त्र से केवल गवाही और | की बातें बोल रहा है! जब ज्ञान सामने खड़ा हो, तब ज्ञान की उधार समर्थन खोज रहा है। बातें सिर्फ नासमझ बोल सकता है। कृष्ण का हंसना उचित है। और मूर्ख और पंडित में एक ही फर्क है। मूर्ख भी शास्त्र की भाषा बोल कृष्ण का यह कहना भी उचित है कि अर्जुन तू पंडित की भाषा बोलता सकता है, अक्सर बोलता है; कुशलता से बोल सकता है। क्योंकि | है, लेकिन निपट गंवारी का काम कर रहा है। किसके सामने? मूर्ख होने और शास्त्र की भाषा बोलने में कोई विरोध नहीं है। लेकिन | | सना है मैंने कि बोधिधर्म के पास एक आदमी गया बद्ध की एक मूर्ख शास्त्र से वही अर्थ निकाल लेता है, जो निकालना चाहता है। | किताब लेकर, और बोधिधर्म से बोला कि इस किताब के संबंध में शास्त्र से मूर्ख को कोई प्रयोजन नहीं है; प्रयोजन अपने से है। शास्त्र मुझे कुछ समझाओ। बोधिधर्म ने कहा कि यदि तू समझता है कि को भी वह अपने साथ खड़ा कर लेता है गवाही की तरह। बुद्ध की किताब मैं समझा सकूँगा, तो किताब को फेंक, मुझसे ही सिमन वेल ने कहीं एक वाक्य लिखा है; लिखा है कि कुछ लोग समझ ले। और अगर तू समझता है कि बुद्ध की किताब बोधिधर्म हैं जो सत्य को भी अपने पक्ष में खड़ा करना चाहते हैं, और कुछ नहीं समझा सकेगा, तो मुझे फेंक, किताब को ही समझ ले। लोग हैं जो सत्य के पक्ष में स्वयं खड़े होना चाहते हैं। बस, दो ही कृष्ण की हंसी बहुत उचित है। किनके हवाले दे रहा है? और तरह के लोग हैं। कुछ लोग हैं जो धर्म को अपनी पीठ के पीछे खड़ा बड़े मजे की बात है, पूरे समय कह रहा है, भगवन् ! कह रहा है, करना चाहते हैं, शास्त्र को अपने पीछे खड़ा करना चाहते हैं; और | | भगवान! हे भगवान! हे मधुसूदन! और शास्त्र के हवाले दे रहा है। कुछ लोग हैं जो धर्म के साथ खड़े होने का साहस रखते हैं। भगवान के सामने भी कुछ नासमझ शास्त्र लेकर पहंच जाते हैं। लेकिन धर्म के साथ खड़ा होना बडा क्रांतिकारी कदम है। उनकी नासमझी का कोई अंत नहीं है। अगर कभी भगवान भी उन्हें क्योंकि धर्म मिटा डालेगा, आपको तो बचने नहीं देगा। लेकिन धर्म | मिल जाए, तो उसके सामने भी वे गीता के उद्धरण देंगे कि गीता में
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy