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________________ Im+ अर्जुन का पलायन-अहंकार की ही दूसरी अति - ऐसे स्पष्ट कहकर चुप हो गया। वह कह रहा है, कृष्ण ने हंसते हुए...। उसके उपरांत हे भरतवंशी धृतराष्ट्र, अंतर्यामी श्री कृष्ण ने | वह हंसी किस बात पर है? हंसने का क्या कारण है ? अर्जुन दोनों सेनाओं के बीच में उस शोकयुक्त अर्जुन को | हंसी योग्य है? इतनी दुख और पीड़ा में पड़ा हुआ, इतने संकट में, हंसते हुए से यह वचन कहा। इतनी क्राइसिस में और कृष्ण हंसते हैं। लेकिन अब तक नहीं हंसे थे। पहली दफे कृष्ण हंसते हैं उसके वक्तव्य को सुनकर। उस हंसी का कारण है। कि वे देखते हैं, इतना अनिश्चित आदमी 27 र्जुन अति अनिश्चय की स्थिति में है। संजय कहता है, | | इतने निश्चय वक्तव्य दे रहा है कि युद्ध नहीं करूंगा! धोखा 1 फिर भी ऐसा कहकर कि मैं युद्ध नहीं करूंगा, अर्जुन | | किसको दे रहा है? उसके धोखे पर, उसके सेल्फ डिसेप्शन पर, रथ में बैठ गया है। अति अनिश्चय की स्थिति में ऐसा | उसकी आत्मवंचना पर कृष्ण को हंसी आ जाती है। जो जानता है, निश्चयात्मक भाव कि मैं युद्ध नहीं करूंगा, सोचने जैसा है। इतना | उसे आएगी। देख रहे हैं कि नीचे तो दरारें ही दरारें हैं उसके मन में। डिसीसिव वक्तव्य, इतना निर्णायक वक्तव्य कि मैं युद्ध नहीं देख रहे हैं कि नीचे तो कटा-कटा मन है उसका, टूटा-टूटा मन है। करूंगा और इतनी अनिश्चय की स्थिति कि क्या ठीक है, क्या | | देख रहे हैं कि नीचे कुछ भी तय नहीं है और ऊपर से वह कहता है गलत है; इतनी अनिश्चय की स्थिति कि मन अविद्या से भरा है | | कि मैं युद्ध नहीं करूंगा। यह वह अपने को धोखा दे रहा है। मेरा, मुझे प्रकाशित करो। लेकिन मुझे प्रकाशित करो, यह कहता | हम सब देते हैं। और जब भी हम बहुत निश्चय की भाषा बोलते हुआ भी वह निर्णय तो अपना ही ले लेता है। वह कहता है, मैं युद्ध | | हैं, तब भीतर अनिश्चय को छिपाते हैं। जब हम बहुत प्रेम की भाषा नहीं करूंगा। बोलते हैं, तो भीतर घृणा को छिपाते हैं। और जब हम बहुत ... इसके जरा भीतर प्रवेश करना जरूरी होगा। अक्सर जब आप आस्तिकता की भाषा बोलते हैं, तो भीतर नास्तिकता को छिपाते हैं। बहुत निश्चय की बात बोलते हैं, तब आपके भीतर अनिश्चय गहरा आदमी उलटा जीता है। ऊपर जो दिखाई पड़ता है, ठीक उससे होता है। एक आदमी कहता है कि मैं दृढ़ निश्चय करता हूं। जब उलटा भीतर होता है। ऐसा कोई आदमी कहे, तो समझना कि उसके भीतर अनिश्चय ___ इसलिए कृष्ण की हंसी बिलकुल मौजूं है, ठीक वक्त पर है। बहुत ज्यादा है, नहीं तो दृढ़ निश्चय की जरूरत नहीं पड़ेगी। जब | असामयिक नहीं है, लगेगी असामयिक। अच्छा नहीं लगता यह। एक आदमी कहे, मेरा ईश्वर पर पक्का भरोसा है, तो समझना कि । बड़ी कठोर बात मालूम पड़ती है कि कृष्ण हंसें। इतने दुख, इतने भरोसा भीतर बिलकुल नहीं है। नहीं तो पक्के भरोसे का लेबल | | संकट में पड़ा हुआ अर्जुन, उस पर हंसें! लेकिन हंसी का कारण लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जब एक आदमी बार-बार कहे कि | है। देख रहे हैं उसको कि कैसा दोहरा काम अर्जुन कर रहा है। एक मैं सत्य ही बोलता हूं, तब समझना कि भीतर असत्य की बहुत | | तरफ कुछ कह रहा है, दूसरी तरफ ठीक उलटा वक्तव्य दे रहा है। संभावना है। अन्यथा ऐसे बोलने की जरूरत नहीं पड़ेगी। | दो-सुरे आदमी के वक्तव्य में, दोहरे आदमी के वक्तव्य में __ हम अपने भीतर जो डांवाडोलपन है, उसे निश्चयात्मक हमेशा अंतर्विरोध होता है। अंतर्विरोध बहुत साफ है। यानी वह वक्तव्यों को ऊपर से थोपकर मिटाने की कोशिश में रत होते हैं। ऐसा काम कर रहा है, कि एक हाथ से ईंट रख रहा है मकान की हम सभी, हम सभी जो भीतर बिलकुल निश्चित नहीं है, उसको | | और दूसरे हाथ से खींच रहा है; एक हाथ से दीवार उठाता है, दूसरे भी बाहर चेहरे पर निश्चित करके देख लेना चाहते हैं। हाथ से खींचता है; दिनभर मकान बनाता है, रात गिरा लेता है। यह अब यह अर्जुन बड़े मजे की बात कह रहा है। वह कह रहा है, | | जो दोहरा काम वह कर रहा है, इसलिए कृष्ण हंस रहे हैं। यह हंसी मैं युद्ध नहीं करूंगा। उसने तो आखिरी निर्णय ले लिया, उसने | उसके व्यक्तित्व के इस दोहरेपन पर, इस स्किजोफ्रेनिक, बंटे हुए निष्पत्ति ले ली। उसने तो कनक्लूडिंग बात कह दी। अब कृष्ण के | | पन पर हंसी के सिवाय और क्या हो सकता है! लिए छोड़ा क्या है ? अगर युद्ध नहीं करूंगा, तो अब कृष्ण से पूछने । मगर कृष्ण की हंसी में काफी इशारा है। लेकिन मैं नहीं समझता को क्या बचा है ? सलाह क्या लेनी है? | कि अर्जुन ने वह हंसी देखी होगी। और मैं नहीं समझता कि अर्जुन इसलिए दूसरी बात जो संजय कह रहा है, वह बड़ी मजेदार है। ने वह हंसी सुनी होगी। 83
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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