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निर्वाण उपनिषद
तीसरे चरण में हुंकार करनी है-हू-हू-इतने जोर से आवाज करनी है कि नाभि के तल तक उसकी चोट पहुंचने लगे और कुंडलिनी पर उसका धक्का लगे और कुंडलिनी जगने लगे और ऊपर की तरफ दौड़ने लगे। तो वे बारह सूर्य, जिनकी हम बात कर रहे हैं, वे हमें दिखाई पड़ने शुरू हो जाएं।
और एक आखिरी बात।
ध्यान के बाद जिनको पड़े रहना हो, बाद में भी, मेरे समाप्त कर देने के बाद भी जिनकी मौज हो, वे पीछे भी पड़े रह सकते हैं। और जैसे ही मैं कहूं, दस मिनट चुप हो जाना है, उसके बाद फिर जरा भी आवाज नहीं। फिर कोई आवाज नहीं करेगा, न नाचेगा, न डोलेगा। दस मिनट जब चुप होना है तो बिलकुल सन्नाटा और शून्य हो जाना है। अगर कोई मित्र यहां देखने भी बाहर आ गए हों तो दूर हट जाएं। पहाड़ी पर दूर बैठ जाएं। और वहां बातचीत न करें, चुपचाप देखते रहें।
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