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________________ लेना चाहते हैं । उपनिषद यद्यपि अत्यंत प्राचीन ग्रंथ हैं तथापि उनकी अर्थवत्ता वर्तमान तथा भविष्य के मनुष्य के लिए है। और स्मरण रहे कि जब तक उपनिषद अथवा इस निर्वाण उपनिषद की देशना ठीक से समझी न जाएगी, तब तक नए मनुष्य का आविर्भाव नहीं होगा। नया मनुष्य – जैसा कि ओशो सतत स्मरण दिलाते हैं- हैं-न हिंदू होगा, न मुसलमान होगा, 'न ईसाई; न अमरीकी, न चीनी, न रूसी, न भारतीय । नया मनुष्य शुद्धतम रूप से केवल मनुष्य है— बिना लेबलों के, बिना विशेषणों के । और नए मनुष्य के लिए निर्वाण उपनिषद का यह सूत्र 'विवेक रक्षा, करुणैव केलिः, आनंद माला' कितना उपयुक्त है! जिस व्यक्ति का विवेक जाग्रत हो गया, दूसरे शब्दों में जो ध्यान, होश और जागरण को उपलब्ध हो गया, उस व्यक्ति से स्वाभाविक रूप से करुणा फूटती है, करुणा उसकी क्रीड़ा है। नीतिवादियों ने प्रेम, अहिंसा, करुणा आदि को कर्तव्य बनाकर अनावश्यक रूप से बोझिल बना दिया है। निर्वाण उपनिषद की देशना है कि विवेक को उपलब्ध व्यक्ति के लिए करुणा उसकी केलि है। वह अपने आनंद में है और करुणा उसके आनंद की सुवास है। निर्वाण उपनिषद पर ओशो के ये अमृत प्रवचन ऐसी ही विलक्षण यात्रा के लिए आमंत्रण हैं । आमंत्रण हैं – नया मनुष्य होने के लिए। ओशो के साथ एक नए मनुष्य के युग का शुभारंभ हुआ - नया मनुष्य जो सदा नया है, सद्यः स्नात है। स्वामी चैतन्य कीर्ति संपादक : ओशो टाइम्स इंटरनेशनल
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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