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________________ निर्वाण उपनिषदः नए मनुष्य की भूमिका निर्वाण उपनिषद का नाम सुनते ही प्राणों में मिठास घुल जाती है और स्मरण हो आता है उन मस्ती भरे दिनों का जब माउंट आबू में ओशो के ध्यान-शिविर हुआ करते थे। ओशो-मुख से पुनः-पुनः उच्चारित निर्वाण उपनिषद के सूत्र 'विवेक रक्षा, करुणैव केलिः, आनंद माला...' आज भी मैं इन सूत्रों की अनुगूंज अपने हृदय में सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाता हूं, ऐसा कुछ जादू है इन सूत्रों में और ऐसी अनूठी-अप्रतिम व्याख्या की है ओशो ने। ___उपनिषद उद्घोष हैं सनातन सत्य के, जिनमें ऋषियों के माध्यम से सत्य व्याख्यायित हुआ है। इसलिए ऋषि अपने आप को उपनिषदों के रचयिता घोषित नहीं करते। आप भी इस निर्वाण उपनिषद को पढकर चकित होंगे कि स्वयं निर्वाण उपनिषद का ऋषि भी अपने आप को इसका लेखक घोषित नहीं कर रहा है। ___ 'अथ निर्वाणोपनिषदम् व्याख्यास्यामः', उपनिषद के इस सूत्र पर प्रकाश डालते हुए ओशो कहते हैं: ऋषि कहता है, व्याख्यान शुरू करते हैं, व्याख्या शुरू करते हैं निर्वाण उपनिषद की। इसमें एक और बात छिपी है। इसमें यह बात छिपी है कि ऋषि निर्वाण उपनिषद नहीं लिख रहा है, सिर्फ निर्वाण उपनिषद का व्याख्यान कर रहा है। यह बहुत अदभुत मामला है। इसका मतलब यह हुआ कि निर्वाण उपनिषद तो शाश्वत है, वह तो सदा से चल रहा है। ऋषि सिर्फ व्याख्या करते हैं। जिसे हम आज निर्वाण उपनिषद कहते हैं, वह तो इसी ऋषि ने कहा है, पर वह कहता है, हम सिर्फ व्याख्या कर रहे हैं-उसकी, जो सदा से है। हम तो सिर्फ व्याख्यान कर रहे हैं—उसका, जो सदा से है। इसलिए किसी ऋषि ने उपनिषद का अपने आप को लेखक नहीं माना, सिर्फ व्याख्यान करने वाला माना। इसलिए उपनिषदों को पढ़ने का अपना एक आनंद है—जो अन्यत्र दुर्लभ है। और जब ओशो जैसे व्यक्ति की दृष्टि उपनिषदों को हमारे समक्ष उदघाटित करती है तो हम स्वयं उस ज्योतिर्मय लोक में पहुंच जाते हैं जहां उपनिषद की घटना घटती है। __उपनिषद मूलतः किसी धर्म विशेष की शिक्षा नहीं देते-उपनिषद शुद्धतम धार्मिकता हैं। उपनिषद ऐसे सूत्र हैं जिन्हें आप पढ़कर हिंदू नहीं बन जाते, बौद्ध नहीं बन जाते, जैन नहीं बन जाते। उपनिषद के सूत्र तो जागरूकता के, साधना के, विवेक के अमृत-सूत्र हैं और ये सूत्र सभी के लिए हैं-उन सभी के लिए जो जाग्रत होना चाहते हैं और धर्मों के मायाजाल से मुक्त शुद्ध धार्मिकता का आनंद
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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