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________________ परमहंस के स्वरूप का इंगित और इशारा करते हैं। ऋषि कहता है, उनका सिद्धांत आकाश की भांति निर्लेप है। इस अस्तित्व में आकाश के अतिरिक्त और कुछ भी निर्लेप नहीं है। यहां सभी चीजें लिप्त हो जाती हैं, सिर्फ आकाश ही अलिप्त बना रहता है। इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है, तो फिर परमहंस, सिद्ध की जो चेतना की अवस्था है, वह कैसी निर्लेप होती है, वह खयाल में आ सके। ___आकाश में सभी चीजें हैं, बनती हैं, खोती हैं, रहती हैं, मिट जाती हैं, आकाश को उनका पता भी नहीं चलता। आकाश में सारे रंग प्रगट होते हैं, लेकिन आकाश बिना रंग के अन-रंगा रह जाता है। अंधेरा आता है, सुबह होती है, प्रकाश आता है, लेकिन आकाश न अंधेरे से बंधता और न प्रकाश से। आकाश अस्पर्शित रह जाता है, जो भी घटित होता है उससे। उसकी कोई रेखा आकाश पर नहीं छूटती। इसलिए आकाश के अतिरिक्त और निर्लेपता का कोई उदाहरण नहीं है। आकाश का अर्थ है, स्पेस, खाली जगह। आप बैठे हैं, आपके चारों तरफ आकाश है। आपके भीतर भी आकाश है। एक बीज फूट रहा है, आकाश में जन्म ले रहा है। वृक्ष बनेगा आकाश में। कल मुाएगा, वृद्ध होगा, जीर्ण-जर्जर होगा, आकाश में; गिरेगा, खो जाएगा, आकाश में। लेकिन आकाश पर कोई रूप-रेखा न छूट जाएगी। आकाश को पता भी नहीं चलेगा। पानी पर हम हाथ से रेखा खींचें तो बनती है, बनते ही मिट जाती है। पत्थर पर रेखा खींचें तो बनी रह जाती है। आकाश में रेखा खींचें तो खिंचती ही नहीं। आकाश पर कुछ भी अंकित नहीं होता। ___ इसलिए ऋषि कह रहा है, वे जो परमहंस हैं, उनका सिद्धांत आकाश की भांति निर्लेप है। सिद्धांत! अगर सिद्धांत आकाश की भांति निर्लेप है, तो सिद्धांत मत नहीं हो सकता, ओपीनियन नहीं हो सकता। क्योंकि जहां मत है. वहां तो रेखा खिंच जाती है। जैसे आकाश में बादल घिर जाएं ऐसे ही जब चेतना पर विचार घिर जाते हैं और चेतना उन विचारों को पकड़ लेती है, तो मत का, ओपीनियन का जन्म होता है। आकाश से बादल हट जाएं, खाली कोरा आकाश छूट जाए, जिसमें कुछ भी नहीं है-रिक्त, शून्य, ऐसे ही जब भीतर चेतना छूट जाती है, जिसमें कोई विचार के बादल नहीं होते, कोई बदलियां नहीं तैरती, जिसमें कोई मत नहीं होता, तब जो शून्य चेतना है, वहां जो होता है, उसे ऋषि ने कहा है, वही परमहंस का सिद्धांत है। सिद्धांत का हम जैसा उपयोग करते हैं, वैसा उपयोग यह नहीं है। सिद्धांत से हमारा अर्थ होता है, प्रिंसिपल, मत, विचार। एक आदमी कहता है, मेरा सिद्धांत जैन है; एक आदमी कहता है, मेरा सिद्धांत बौद्ध है; एक आदमी कहता है, मेरा सिद्धांत हिंदू है। लेकिन सिद्धांत हिंदू, बौद्ध और जैन नहीं हो सकता। तब तो आकाश बंट गया, तब तो आकाश लिप्त हो गया, तब तो आकाश के विशेषण हो गए। सिद्धांत का तो अर्थ यह होता है कि अंत में जो सिद्ध होता है, अंततः जो सिद्ध होता है। जीवन जब
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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