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.. साधक की यात्रा जिन दो पैरों से होती है, उन दो पैरों की सूचना शांति पाठ के इस आखिरी हिस्से में है। साधक का एक पैर तो है संकल्प और साधक का दूसरा पैर है समर्पण।
मेरे संकल्प के बिना तो कोई यात्रा प्रारंभ नहीं हो सकती। परमात्मा भी मुझे इंचभर नहीं हिला सकता। मैं जहां हूं, वहीं खड़ा रहूंगा। मेरी स्वेच्छा पर, मेरी स्वतंत्रता पर परमात्मा कोई हमला नहीं करता है। इसलिए मैं नर्क भी जाना चाहूं, तो भी परमात्मा की तरफ से कोई बाधा नहीं पड़ेगी।
मेरा संकल्प प्राथमिक है। मैं कहां जाना चाहता हूं, क्या होना चाहता हूं, उसके लिए मेरे प्राणों की तत्परता जरूरी है। लेकिन वह भी काफी नहीं है, नाट इनफ। मेरा सारा संकल्प भी हो तो भी काफी नहीं है। मेरे बिना संकल्प के एक इंच यात्रा नहीं होगी, लेकिन मेरे संकल्प से ही यात्रा नहीं हो सकती, मात्र संकल्प से ही यात्रा नहीं हो सकती। मुझे उस परम शक्ति का सहारा भी खोजना होगा। व्यक्ति की शक्ति इतनी कम है-न के बराबर-कि अगर परम शक्ति का सहारा न मिले, तो भी यात्रा नहीं हो सकती। • इसलिए इस हिस्से में ऋषि ने कहा है, मैं ऋत भाषण करूंगा। मैं सत्य भाषण करूंगा।
यह संकल्प है। यह ऋषि कहता है, मैं ऋत भाषण करूंगा।
ऋत बहुत अदभुत शब्द है। ऋत का अर्थ होता है : स्वाभाविक, प्राकृतिक, जैसा है वैसा। मैं वही कहूंगा, जैसा है वैसा। लेकिन फिर भी कहने वाला तो मैं ही रहूंगा। और जैसा मुझे दिखाई पड़ता है, वह मुझे ही दिखाई पड़ेगा, उसमें भूल हो सकती है। मैं सत्य भाषण करूंगा, लेकिन मैं ही करूंगा-मैं जैसा हूं। जिस बात को सत्य समझंगा, बोल दूंगा, लेकिन वह असत्य भी हो सकता है। मुझे जो सत्य दिखाई
पड़ता है, जरूरी नहीं है कि सत्य हो ही। मुझे जो असत्य मालूम पड़ता है, जरूरी नहीं है कि असत्य हो . ही। मुझसे भूल हो सकती है। मेरी आंखें बाधा डालेंगी, मेरी दृष्टि भी तो विकार पैदा करेगी। ___ अगर आपने चश्मा लगा रखा है और आपको चारों तरफ नीला रंग दिखाई पड़ रहा है, तो आप बिलकुल ही सत्य कह रहे हैं कि चारों तरफ सभी चीजें नीली हैं, फिर भी असत्य कह रहे हैं। और हम सबकी दृष्टि पर चश्मे हैं बहुत तरह के। हम सबके अपने विचार हैं। जब हम सत्य भी बोलते हैं तो हम ही तो निर्णय करते हैं कि सत्य क्या है। और हम इतने गलत हैं कि हमारा निर्णय क्या सही हो पाएगा?
फिर भी ऋषि संकल्प करता है कि मैं ऋत भाषण ही करूंगा। जैसा है, वैसा ही कहूंगा, अन्यथा नहीं कहूंगा। सत्य ही बोलूंगा। जो मुझे सत्य मालूम होगा, वही मैं बोलूंगा। फिर भी मेरी रक्षा करो। वह प्रभु से कह रहा है, फिर भी मेरी रक्षा करो। ___ यह बड़ी कीमती बात है। असत्य बोलने वाला परमात्मा से प्रार्थना करे कि मेरी रक्षा करो, समझ में आता है। सत्य बोलने वाला परमात्मा से प्रार्थना करे कि मेरी रक्षा करो, तो समझ में नहीं आता। सत्य काफी है, सत्य स्वयं ही रक्षा कर लेगा।