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________________ निर्वाण उपनिषद भ्रांतियां पैदा होती हैं, वे भ्रांतियां भी पैदा नहीं होती। तब हम शुद्ध चैतन्य में, शुद्ध सत्य में, शुद्ध अस्तित्व के साथ एक हो जाते हैं। इस एकता का जो ज्ञान है, इस एकता का जो दिशा-निर्देश है, इस परम ऐक्य की जो इंगित व्यवस्था है, ऋषि कहता है, यही निर्वाण दर्शन है। जिसका एक बहुत अदभुत बात इस सूत्र में कही है अंत में-जिसका शिष्य या पुत्र के अतिरिक्त अन्य किसी को उपदेश नहीं करना, ऐसा यह रहस्य है। यह बहुत अजीब लगेगा। इतनी अदभुत बातों के बाद, इतने परम ज्योतिर्मय की ओर इशारे करने के बाद एक बात ऋषि कहता है कि यह ज्ञान ऐसा है कि इसे अपने पुत्र या अपने शिष्य के अतिरिक्त और किसी से मत कहना। उपनिषद का अर्थ होता है, द सीक्रेट डाक्ट्रिन। उपनिषद का अर्थ होता है, गुह्य रहस्य। उपनिषद शब्द का अर्थ होता है, जिसे गुरु के पास चरणों में बैठकर सुना। रहस्य इतना गुह्य है कि ऐसे ही राह चलते नहीं कहा जाता। रहस्य इतना गुह्य है कि हर किसी से नहीं कहा जाता। बहुत इंटिमेसी चाहिए, बड़ा आंतरिक संबंध चाहिए। रहस्य ऐसा गुह्य है कि जहां तर्क और वितर्क और विवाद चलता हो, वहां नहीं कहा जा सकता है। जहां प्रेम की अंतर्धारा बहती हो, वहीं कहा जा सकता है। जहां संवाद संभव हो, कम्यूनिकेशन जहां संभव हो, जहां हृदय हृदय से बोल सके, हार्ट टु हार्ट, वहीं कहना। ऋषि ने यह सूचना दी है। बेटे या शिष्य को कहने का भी कारण है। असल में बेटे से मतलब है, जो इतना अपना हो कि अपनी ही मांस-मज्जा मालूम पड़े। जरूरी नहीं है कि वह आपके शरीर से पैदा ही हुआ हो। यह जरूरी नहीं है। यह जरूर जरूरी है कि वह आपको ऐसा लगे कि अगर वह मर जाए, तो आपका कोई हिस्सा मर जाएगा; कि अगर वह खो जाए, तो आपका कोई अंग खो जाएगा; कि वह डूब जाए, नष्ट हो जाए, तो आपके हृदय की धड़कनें कुछ नष्ट हो जाएंगी आप फिर कभी उतने पूरे न होंगे, जितने उसके होने से थे। जिसके साथ ऐसी आत्मीयता मालम हो. जो इतना आत्मज मालम पडे. उससे कहना. क्योंकि यह रहस्य गुह्य है। या उससे कहना जो शिष्य हो। शिष्य का अर्थ होता है, वन हू इज़ रेडी टु लन, जो सीखने को तैयार है। __बहुत कम लोग दुनिया में सीखने को तैयार होते हैं, मुश्किल से। सिखाने की उत्सुकता बहुत आसान है, सीखने की तैयारी बहुत कठिन है। क्योंकि सीखने के लिए झुकना पड़ता है। ___इस शिष्य शब्द से मुझे खयाल आया। हमारे मुल्क में पांच सौ वर्ष पहले नानक के शब्दों से एक धर्म का जन्म हुआ, जिसको हम कहते हैं सिख। लेकिन सिख केवल शिष्य का पंजाबी रूपांतरण है। शिष्य का पंजाबी रूप है सिख-जो सीखने को तैयार है। इतना ही उसका मतलब है। सिख कोई पंथ नहीं, कोई मजहब नहीं। जो भी सीखने को तैयार है, वही शिष्य है। __ ऋषि कहता है, यह जो सीखने की तैयारी न हो अगर, तो मत कहना। क्योंकि ये बातें ऐसी हैं कि सीखने को जो तैयार न हो, उससे कहो, तो उसके कानों में भी प्रवेश नहीं होगा और खतरा यह है कि वह इनके गलत अर्थ निकाल लेगा। क्योंकि यह रहस्य गुह्य है, यह सीक्रेट है। यह ऐसी बात नहीं है बोलचाल की कि कह दी। यह कहना सोच-समझकर। 7296
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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