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________________ निर्वाण उपनिषद अगर परमात्मा की कोई चर्या होगी, तो वैसी ही चर्या संन्यासी की चर्या है। असल में संन्यासी इस बोध से ही उठता है कि परमात्मा उठा मेरे भीतर, इस बोध से ही चलता है कि परमात्मा चला मेरे भीतर, इस बोध से ही बोलता है कि परमात्मा बोला मेरे भीतर, इस बोध से ही जीता है कि परमात्मा जीया मेरे भीतर। संन्यासी स्वयं को तो विदा कर देता है और परमात्मा को प्रतिष्ठित कर देता है। उसका जो भी है, वह सब परमात्मा का है। ऐसे अपने भीतर परमात्मा को जिसने प्रतिष्ठित किया हो, जो परमात्मा का मंदिर ही बन गया हो, उसके आचरण का नाम ब्रह्मचर्य है। निश्चित ही, उसमें काम-नियंत्रण तो आ ही जाता है। उसकी चर्चा करने की भी कोई जरूरत नहीं रह जाती। लेकिन ब्रह्मचर्य मात्र काम-नियंत्रण नहीं है, काम-नियंत्रण एक छोटा सा अंग है, ब्रह्मचर्य बहुत बड़ी बात है। ___ ऋषि कहता है, ब्रह्मचर्य संपदा है। क्योंकि जिसने यह अनुभव कर लिया कि मेरे भीतर परमात्मा है, उससे अब कुछ भी छीना नहीं जा सकता। एक ही है सत्व, जो हमसे छीना नहीं जा सकता। वह सत्व ऐसा होना चाहिए, जो हमारा स्वरूप भी हो। जिसे हमसे अलग करने का उपाय ही नहीं है, वह केवल परमात्मा है। बाकी सब हमसे अलग किया जा सकता है। मित्र हो, पत्नी हो, बेटा हो, सब हमसे जुदा किए जा सकते हैं। अपना शरीर भी अपने साथ नहीं होगा। अपना मन भी अपने साथ नहीं होगा। सिर्फ एक ही सत्य है, एक ही अस्तित्व परमात्मा का, जो हमसे छीना नहीं जा सकता। जो हमारा होना ही है, द वेरी बीइंग, उसे अलग करने का कोई मार्ग नहीं है। उसे यह ऋषि कहता है, संपदा है। __ आचरण ब्रह्म जैसा! लेकिन आचरण तो बाहर होता है। आचरण का अर्थ ही होता है, बाहर। चर्या का अर्थ ही होता है, बाहर। चर्या का अर्थ ही होता है, दूसरों के संबंध में। अकेले कोई आचरण नहीं होता। आचरण का अर्थ है, इन रिलेशनशिप टु समवन। ___ मुल्ला नसरुद्दीन एक बार जुए में पकड़ गया था। एक राजधानी में धर्मगुरुओं की एक बड़ी समिति थी। एक यहूदी धर्मगुरु, एक ईसाई धर्मगुरु, एक हिंदू धर्मगुरु और मुल्ला नसरुद्दीन एक ही होटल में ठहराए गए थे। लेकिन रात जुए में पकड़े गए चारों। अदालत में जब सुबह मौजूद किए गए, तो मजिस्ट्रेट भी थोड़ा संकोच से भर गया। कल सांझ ही इनके प्रवचन उसने सुने थे। और बड़ा प्रभावित हुआ था। लेकिन पुलिस का आदमी ले आया था अदालत में, तो अब मुकदमा तो चलता ही। फिर भी उसने सोचा, जल्दी निपटा देने जैसा है। इसे आगे खींचने जैसा नहीं है। __पूछा उसने ईसाई पुरोहित से कि क्या आप जुआ खेल रहे थे? ईसाई पुरोहित ने कहा, क्षमा करें, इट डिपेंड्स ऑन हाउ यू डिफाइन। यह बहुत सी बातों पर निर्भर करेगा कि आप जुए की व्याख्या क्या करते हैं। ऐसे तो पूरी जिंदगी ही जुआ है। मजिस्ट्रेट जल्दी मुक्त करना चाहता था। उसने देखा, यह तो लंबा थियोलाजी का मामला हो जाएगा। उसने कहा, साफ-साफ कहिए, आप जुआ नहीं खेल रहे थे? ईसाई पादरी ने कहा, पूरी जिंदगी ही जुआ है जहां, वहां जुए से बचा कैसे जा सकता है! फिर भी जज ने कहा, मैं समझ गया कि आप जुआ नहीं खेल रहे थे, आप बरी किए जाते हैं। ईसाई पादरी बाहर चला गया। यहूदी रबी से पूछा, आप जुआ खेल रहे थे? क्योंकि आपके सामने टेबिल पर रुपए रखे थे और ताश पीटे जा रहे थे। यहूदी रबी ने कहा, क्षमा करें, अभिप्राय अपराध नहीं है। अभी जुआ शुरू नहीं 7288
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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