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भ्रांति भंजन, कामादि वृत्ति दहन, अनाहत मंत्र और अक्रिया में प्रतिष्ठा
सब परिस्थितियों में वह स्वयं इतना दृढ़ हो कि पार हो जाए। पश्चिम ने एक प्रयोग किया कि हम बाहर की परिस्थितियों को ऐसा बना देंगे कि व्यक्ति को लड़ने की जरूरत ही न रह जाए। लेकिन जो लड़ता नहीं, वह लड़ने की क्षमता खो देता है। लड़ने की क्षमता कायम रखनी हो, तो लड़ना जारी रखना पड़ता है। पर निर्भर इस पर करता है कि आप किस शक्ति को जगाना चाहते हैं। अगर भीतर की शक्ति को
चाहते हैं. तो ऋषि ठीक कहता है कि सभी कठिनाइयों में दढता। अरक्षित. इनसिक्योर्ड, बिना इंतजाम के सारी कठिनाइयों को झेल लेने की जो बात है, उससे भीतर की प्रतिरोधक शक्ति इतनी बढ़ जाती है कि कठिनाइयां नीचे पड़ी रह जाती हैं और चेतना पार निकल जाती है।
सदैव संघर्षों में ही उनका वास है-चिराजिनवासः। संघर्ष ही उनका घर है। संघर्ष ही उनका आवास है। इसे थोड़ा सा समझ लेना जरूरी है।
संघर्ष ही उनका आवास है। एक तो संघर्ष है दूसरों से, परायों से। वह हिंसा है। एक संघर्ष है स्वयं से, अपने से। वह संघर्ष हिंसा नहीं है। एक संघर्ष है, जब हम किसी को जीतने जाते हैं, वह पाप है। यह संघर्ष है, जब हम स्वयं को अपराजेय बनाने जाते हैं, वह संघर्ष पुण्य है। ___ ऋषि कहता है, संघर्ष उनका वास है। __ वे चौबीस घंटे स्ट्रगल में हैं, किसी और से नहीं। असुरक्षित हैं, कोई उनके पास व्यवस्था नहीं, अनजाने भविष्य में कदम रख देते हैं बिना योजना के। सुबह उठते हैं, तभी जानते हैं कि सुबह ने क्या मौजूद किया, उससे गुजरते हैं। रात आती है, तब जानते हैं कि रात ने क्या मौजूद किया, तब उससे गुजरते हैं। लिविंग मोमेंट टु मोमेंट-एक-एक क्षण जीते हैं। निश्चित ही संघर्ष होगा। एक-एक क्षण जो जीएगा, संघर्ष होगा। ... हम तो भविष्य को व्यवस्थित करके जीते हैं। व्यवस्था का अर्थ ही है, संघर्ष को कम कर लेना। कल क्या करना है, कैसे करना है, उसका हमने पूर्व इंतजाम कर लिया, तो कल संघर्ष न्यून हो जाएगा, कम हो जाएगा। कल अनजान, अपरिचित, अननोन में उतर जाना है, ऐसे ही जैसे कोई सागर में उतर जाए, जिसकी गहराइयों का पता न हो। जैसे कोई सागर में उतर जाए, जिसके किनारों का पता न हो। जैसे कोई सागर में उतर जाए, जिसके तूफानों का कोई पता न हो। बिना किसी इंतजाम के!
संन्यासी ऐसे ही जीवन में चलता है बिना किसी इंतजाम के। क्यों? इस संघर्ष की जरूरत क्या है? क्योंकि संन्यासी जानता है कि इसी संघर्ष से निखार है। इसी रोज-रोज के संघर्ष से, क्षण-क्षण के संघर्ष से निखार पैदा होता है। वह जो निखार है व्यक्तित्व का, वह जो प्रतिभा पर धार आती है, वह इसी संघर्ष से आती है। यह संघर्ष किसी और से नहीं है। यह किसी दूसरे से नहीं है। यह संघर्ष सहज जीवन की धारा से है। और इस संघर्ष में कोई दुख भी नहीं है, कोई पीड़ा भी नहीं है।
इसलिए ऋषि कहता है, संघर्ष उनका घर है। संघर्ष से कोई शत्रुता भी नहीं है। यही उनका आवास है। इससे कोई दुश्मनी नहीं है, यही उनका आसरा, यही उनकी छाया, इसी के नीचे वे विश्राम करते हैं।
ध्यान रखें, संघर्ष को घर कहना बड़ी उलटी बात मालूम पड़ती है। संघर्ष ही उनकी छाया, उनका विश्राम, उनका बिछौना। इसका अर्थ हुआ कि संघर्ष के प्रति कोई शत्रुता का भाव नहीं। इसका अर्थ हुआ कि वे संघर्ष को संघर्ष नहीं मानते, वे उसे जीवन का सहज क्रम मानते हैं। वे मानते हैं कि ऐसा होगा ही।
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