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निर्वाण उपनिषद
कम होता चला जाता है। ___ अगर आप धूप में बिलकुल नहीं बैठते, छाया में ही बैठते हैं, तो जरा सी धूप भी तकलीफ दे देगी, क्योंकि रेजिस्टेंस कम हो जाएगा, आपकी प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाएगी। लेकिन एक दूसरा आदमी गड्ढे खोद रहा है धूप में, छाया में बैठने का उसे कोई अवसर ही नहीं मिलता। वह घंटों, दिनभर धूप में गड्ढे खोद रहा है और धूप उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाती है। कारण क्या है ? उसके पास प्रतिरोधक शक्ति, रेजिस्टेंस, इनर फोर्स खड़ी हो जाती है।
इसलिए आदमी को जितनी दवाइयां मिलती जाती हैं, उतनी बीमारियां बढ़ती चली जाती हैं। क्योंकि रेजिस्टेंस तो टूटता चला जाता है। आदमी को जितनी सुविधाएं मिलती जाती हैं, उतनी असुविधाएं बढ़ती चली जाती हैं। आदमी जितना इंतजाम कर लेता है, उतना ही पाता है कि मुश्किल में पड़ गया है। क्योंकि सब इंतजाम बाहर होता है और भीतर से जो इंतजाम हो सकता था, उसका इंतजाम टूट जाता है। जब उसकी जरूरत ही नहीं रह जाती, बात समाप्त हो जाती है।
बायजीद नग्न घम रहा था रेगिस्तान में। एक सफी फकीर था। कछ राहगीरों ने उसे देखा और उन्होंने कहा कि जलती धूप में, आग पड़ते रेगिस्तान में तुम नग्न घूम रहे हो? फिर रात रेगिस्तान बर्फीला हो जाता है, ठंडा, तब भी तुम नग्न ही पड़े रहते हो। बात क्या है? राज क्या है? तो बायजीद ने कहा कि अपने चेहरे से पूछो। तुम्हारे चेहरे पर भी वही चमड़ी है, जो तुम्हारे हाथ में, तुम्हारे पैर में, तुम्हारी छाती में है। लेकिन चेहरा धूप में भी परेशान नहीं होता, सर्दी में भी परेशान नहीं होता। उसका कुल कारण इतना है कि चेहरा सदा से खुला है, उसका रेजिस्टेंस ज्यादा है। बाकी सारा शरीर ढंका है, उसका . रेजिस्टेंस कम है। बायजीद ने कहा कि हमने पूरे शरीर को ही चेहरे की तरह कर लिया, तब से धूप और । सर्दी का पता नहीं चलता।
संन्यासी के पास जब बाहर कोई इंतजाम नहीं, तो भीतर इंतजाम है।
इस दिशा में एक बात और समझ लेनी जरूरी है जो कि पूरब और पश्चिम का बुनियादी फर्क है। पश्चिम ने सब इंतजाम बाहर किए, इसलिए भीतर पश्चिम बिलकल दर्बल और इंपोटेंट हो गया. बिलकुल नपुंसक हो गया। इंतजाम उन्होंने बहुत बढ़िया कर लिए बाहर। रेगिस्तान में भी हो, तो भी शीतल इंतजाम हो सकता है। बीमारी हो, तो तत्काल दवाइयां पहंचाकर बीमारी से लड़ा जा सकता है। अगर एक तरह के जर्स शरीर को पकड़ लिए हैं, तो उनसे विपरीत जर्स फौरन शरीर में डालकर उनको मिटाया जा सकता है। सब इंतजाम कर लिया है। लेकिन आंतरिक शक्ति रोज दीन होती चली गई।
पूरब ने एक दूसरा प्रयोग किया था। वह प्रयोग यह था कि हम बाहर से सहायता न लेंगे लड़ने के लिए, हम भीतर की शक्ति से ही लड़ेंगे। इसका फायदा हुआ। एक फायदा हुआ कि पूरब भीतर से समृद्ध हुआ, लेकिन एक नुकसान हुआ कि बाहर से दरिद्र हो गया, बाहर से गरीब होता चला गया। और बाहर की गरीबी दिखाई पड़ती है और भीतर की समृद्धि दिखाई नहीं पड़ती। इसलिए पश्चिम से जब कोई आता है, तो पूरब की बाहर की दरिद्रता को देखकर कहता है, क्या बुरी हालत है! भीतर का तो कुछ दिखाई नहीं पड़ता। भीतर का दिखाई पड़ नहीं सकता।
पूरब ने एक प्रयोग किया था। वह यह था कि हम व्यक्ति की चेतना को ही दृढ़ करते रहेंगे, ताकि
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