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________________ भ्रांति भंजन, कामादि वृत्ति दहन, अनाहत मंत्र और अक्रिया में प्रतिष्ठा । उपद्रव के कारण बने हैं। क्योंकि जहां अहंकार है वहां सिर्फ उपद्रव ही पैदा हो सकता है। होना उलटा चाहिए था कि मंदिर और मस्जिद जगत में प्रेम की वर्षा बन जाते, अमृत के द्वार खोलते, लेकिन बहुत जहर के द्वार उन्होंने खोले हैं। नास्तिकों के ऊपर इतने पापों का जिम्मा नहीं है, जितना तथाकथित आस्तिकों के ऊपर है। वोल्तेयर ने कहीं कहा है कि हे परमात्मा, अगर तू कहीं है, तो कम से कम मंदिर और मस्जिद तो गिरवा दे। तेरे होने से हमें कोई अड़चन नहीं, लेकिन तेरे मंदिर और मस्जिद बहुत दिक्कतें दे रहे हैं। ठीक ही है यह बात। भलाई में अगर एक बूंद भी अहंकार का पड़ गया, तो भलाई बुराई हो जाती है। और समाज जो तरकीब जानता है, वह एक ही है कि अगर आपको भला बनाना है, तो आपके अहंकार को परसुएड करना पड़ता है। आपसे कहना पड़ता है कि कैसे महान हो आप, दिव्य हो, तब आपके भीतर रस जन्मता है। यह रस उसी अहंकार में जन्म रहा है। इसलिए मनोवैज्ञानिक एक बहुत अनूठी बात कहते हैं। वे कहते हैं कि जिनको हम अपराधी कहते हैं और जिनको हम तथाकथित अच्छे आदमी कहते हैं, सज्जन कहते हैं, इनमें बुनियादी फर्क नहीं होता। दोनों ही अटेंशन चाहते हैं। समाज का ध्यान उन पर जाए, इसकी आकांक्षा में जीते हैं। एक आदमी भला होकर सड़क पर चलने लगता है, लोगों का ध्यान उस पर जाए। एक आदमी को कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ता भलो होने का, वह बुरा हो जाता है। अभी एक मुकदमा था बेल्जियम में। एक आदमी ने चार हत्याएं की थीं। और चारों अजनबी थे, जिनकी हत्याएं की थीं। उन्हें उसने हत्या करने के पहले कभी देखा भी नहीं था। बस, समुद्र के किनारे लेटे हुए चार आदमियों की हत्या कर दी। अदालत में उसने कहा कि मैं अखबार में मेन हेडिंग्स में नाम देखना चाहता था। और मुझे कोई उपाय नहीं दिखता था। महात्मा होने में बहुत देर लगे, और महात्मा होना पक्का भी नहीं है। और कितना ही बड़ा महात्मा हो जाए, सभी लोग उसे महात्मा कभी स्वीकार नहीं कर पाते। और फिर महात्माओं को भी सूली लग जाती है, इसलिए सुरक्षित मार्ग वह भी नहीं है। जब जीसस को सूली लग जाती है और सुकरात को जहर मिल जाता है, तो उसने कहा, वह भी कोई बहुत सुरक्षित तो दिखता नहीं रास्ता। समय ज्यादा लेता है। भारी कठिनाई झेलो। बामुश्किल! और अक्सर ऐसा होता है कि जिंदगीभर मेहनत करो, मरकर ही आदमी महात्मा हो पाता है। क्योंकि जिंदा आदमी को कोई महात्मा कहे, तो कहने वाले के भी अहंकार को चोट लगती है, सुनने वाले के अहंकार को भी चोट लगती है। जब कोई मर जाए, मुर्दे को जो जी चाहे कहो, किसी को कोई अड़चन नहीं होती। नसरुद्दीन कहता था कि कब्रिस्तानों में देखकर मुझे ऐसा लगा कि नर्क में अब तक कोई भी आदमी नहीं गया होगा। क्योंकि कब्रों पर जो वचन लिखे हैं, प्रशस्तियां लिखी हैं, वे बताती हैं कि सभी लोग स्वर्ग गए होंगे। मरते ही आदमी भला हो जाता है। पैदा होते ही बुरा हो जाता है। वोल्तेयर का एक शत्रु था जिंदगीभर का। हर चीज में मतभेद था वोल्तेयर से उसका। वह मर गया। स्वभावतः, उसके शत्रु के मित्रों ने वोल्तेयर के पास जाकर कहा कि तुम्हारे जिंदगीभर के संबंध थे, कोई वक्तव्य तुम दोगे, तो अच्छा होगा। माना कि शत्रुता थी। वोल्तेयर ने लिखकर एक पत्र दिया, जिसमें 2657
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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