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________________ निस्वैगुण्य स्वरूपानुसंधानम् समयं भ्रांति हरणम्। कामादि वृत्ति दहनम्। काठिन्य दृढ़ कौपीनम्। चिराजिनवासः। अनाहत मंत्रम् अक्रिययैव जुष्टम्। स्वेच्छाचार स्वस्वभावो मोक्षः। इति स्मृतेः। परब्रह्म प्लव वदाचरणम्। त्रयगुणरहित स्वरूप के अनुसंधान में तथा भ्रांति के भंजन में समय व्यतीत करना। कामवासना आदि वृत्तियों का दहन करना। सभी कठिनाइयों में दृढ़ता ही उनका कौपीन है। सदैव संघर्षों में जिनका वास है। अनाहत जिनका मंत्र और अक्रिया जिनकी प्रतिष्ठा है। ऐसा स्वेच्छाचार रूप आत्मस्वभाव रखना–यही मोक्ष है। और यही स्मृति का अंत है। . परब्रह्म में बहना जिनका आचरण है।
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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