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निर्वाण उपनिषद
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आप किसी से भी नहीं डरते ? किसी से नहीं । न शेर से, न हाथी से, न सांप से, न पहाड़ से
आपके भीतर हिस्से हैं बहुत, डिसइंटीग्रेटेड, अलग-अलग। एक हिस्सा बहादुर का है, एक हिस्सा कायर का है। जब तक बहादुर का ऊपर है, तब तक आप और बातें कर रहे हैं। जब बहादुर का जाएगा और कायर का ऊपर आएगा, आप बिलकुल दूसरे आदमी सिद्ध होंगे।
अनाहत अंगी का अर्थ है, जिसके भीतर कोई खंड नहीं, जो एक, एकरस, एक जैसा ही है। ऋषि कहते हैं, लेकिन ऐसा अनाहत अंगी तभी कोई हो पाता है जब अहंकार, माया और ममता को भस्मीभूत कर डालता है। लेकिन मरघट में नहीं जलती वह आग, जिसमें माया और ममता और अहंकार को भस्म किया जा सके। वह आग मंदिर में जलती है। वह आग प्रार्थना से जलती है, ध्यान से जलती है, पूजा जलती है।
अब हम उस आग को जलाने में लगें।
आज इतना ही।
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