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असार बोध, अहं विसर्जन और तुरीय तक यात्रा-चैतन्य और साक्षीत्व से
आड़ है, दीवार है। इसलिए ऋषि कहता है, कर्मों को निर्मूल कर डालना ही उनकी कन्था है।
और अंतिम, श्मशान में जिसने दहन कर दिए माया, ममता, अहंकार, वही अनाहत अंगी-पूर्ण व्यक्तित्व वाला है।
इस सूत्र में बात को ऋषि पूरा करता है। जैसे किसी ने मरघट पर जाकर जला दिए हों सब–ममता, माया, अहंकार। असल में सब अहंकार का विस्तार है। अहंकार अपने को फैलता है ममता से। ममता उसकी शक्ति है, उससे अपने को बड़ा करता है। जब कोई कहता है, मेरा बेटा, तो अहंकार की परिधि बड़ी हो गई। बेटे को भी उसने उसी में समा लिया। मेरी जाति, अहंकार की परिधि बहुत बड़ी हो गई। अब पूरी जाति को उसने अपने अहंकार के साथ जोड़ लिया। अब अगर कोई उसकी जाति को गाली देगा, तो यह उसको दी गई गाली है। अगर अब कोई उसकी जाति का झंडा नीचा करेगा, तो यह उसका झंडा नीचा हो गया। मेरा राष्ट्र, और उसको कर लिया भयंकर बड़ा। और जितना बड़ा हो जाए, उतना पहचान में नहीं आता। क्योंकि इतना बड़ा हो जाता है कि हमारी आंखें उसका ओर-छोर नहीं देख पातीं।
अगर में कहें कि मैं बहुत महान व्यक्ति है, तो फौरन दिखाई पड़ जाएगा कि बड़े अहंकारी हैं आप। लेकिन मैं कहता हूं, हिंदू धर्म महान है, तो किसी को पता नहीं चलता कि हम केवल तरकीब कर रहे हैं। • हम यह कह रहे हैं कि हिंदू धर्म महान है, क्योंकि हम हिंदू हैं। इस्लाम महान है, क्योंकि मैं मुसलमान हं। इस्लाम महान है इसीलिए कि मैं मसलमान हैं। अगर मैं न होता, तो महान नहीं हो सकता था। फिर जहां मैं होता, वह महान होता।
मुल्ला नसरुद्दीन एक सभा में गया था। जरा देर से पहुंचा। बड़े आदमी को देर से पहुंचना चाहिए। सिर्फ छोटे आदमी वक्त पर पहुंचते हैं, बहुत छोटे और वक्त के पहले पहुंच जाते हैं। बड़ा आदमी जरा देर करकें पहुंचता है। देर से पहुंचा। लेकिन भर गई थी सभा। और रास्ता नहीं था, अध्यक्ष जम चुके थे। नेता अपना व्याख्यान शुरू कर दिया था। मुल्ला इच्छा से गए थे कि किसी तरह मंच पर तो बैठ ही जाएंगे। लेकिन मंच तक जाने का उपाय नहीं था। तो मुल्ला दरवाजे पर ही बैठ गया, जहां लोगों ने जूते उतारे थे। और उसने वहीं गपशप करनी शुरू कर दी। ___ उसकी बातें तो बड़ी कीमती थीं ही। लोग धीरे-धीरे उसकी तरफ मुड़ गए। सभा का रुख बदल गया। अध्यक्ष चिल्लाया कि नसरुद्दीन, तुम बहुत गड़बड़ कर रहे हो। तुम्हें पता होना चाहिए कि अध्यक्ष का स्थान यहां है! नसरुद्दीन ने कहा, नसरुद्दीन जहां बैठता है, अध्यक्ष का स्थान सदा वहीं होता है, और कोई जगह नहीं होता। अगर न मानो तो सभा से पूछ लो-पीठ किसकी तरफ है, मुंह किसकी तरफ है!
आदमी अपने को जहां बैठा मानता है, वही अध्यक्ष का स्थान है सदा। कोई लोग गलती में हों, वह बात दूसरी है। कहीं भी बैठ जाएं, उससे फर्क नहीं पड़ता। जहां मैं बैठता, वही अध्यक्ष का स्थान है।
हर आदमी इस जगत में पूरे जगत का सेंटर है-हर आदमी। यही तो झगड़ा है, हर आदमी सेंटर है। उसको सेंटर मानकर पूरा जगत परिभ्रमण कर रहा है। चांद-तारे चल रहे हैं, सूरज निकल रहे हैं, परमात्मा सेवा में लगा है, सारा खेल चल रहा है। सेंटर पर आप हैं।
यह अहंकार छोटा होता है, तो दिखाई पड़ जाता है। आपको न भी पड़े, तो आपके पड़ोसी को
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