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________________ सम्यक त्याग, निर्मल शक्ति और परम अनुशासन मुक्ति में प्रवेश को सिंहासन से नीचे उतारने के लिए है। वह कमजोरों का षड्यंत्र है, कांसपिरेसी आफ वीकलिंग्स। नियम बना लेती है भीड़। शक्तिशाली को नीचे उतार देती है। और शक्तिशाली को भी, अगर तथाकथित शक्तिशाली को, अगर पद पर रहना है, तो उसे भीड़ का अनुगमन करना पड़ता है। इसलिए नेता अनुयायियों के भी अनुयायी होते हैं। दे आलवेज़ फालो देअर फालोअर्स। हमेशा पता रखते हैं कि किस तरफ लोग जा रहे हैं, उसी तरफ चले जाते हैं। मुल्ला नसरुद्दीन एक इलेक्शन में खड़ा हो गया था। किसी टैक्स का मामला भारी था। सारी जनता में एक ही चर्चा थी कि वह टैक्स लगना कि नहीं लगना। और जिस गांव में मुल्ला नसरुद्दीन खड़ा था इलेक्शन के लिए, वह आधा गांव बंटा था टैक्स के पक्ष में और आधा टैक्स के खिलाफ। बोलने खड़ा हुआ। पूरे लोग इकट्ठे थे गांव के। सब बातचीत हो गई। लोगों ने कहा, यह सब तो ठीक है, टैक्स के बाबत क्या खयाल है? लगना चाहिए कि नहीं? मुल्ला दिक्कत में पड़ा। अगर कहे लगना चाहिए, तो आधी बस्ती खिलाफ हो जाती। कहे नहीं लगना चाहिए, तो भी आधी बस्ती खिलाफ हो जाती। किसके साथ हो? जनता ने आवाज दी। मुल्ला ने कहा, आई एम आलवेज़ विद माई फ्रेंड्स एंड यू आल आर माई फ्रेंडस। मैं सदा अपने मित्रों के साथ हं और इस गांव में सभी मेरे मित्र हैं। सभी ने ताली बजाई। क्योंकि सभी अपने मन में समझे कि मुल्ला अपने साथ है। • राजनीतिज्ञ ऐसे ही जवाब देता रहता है। जवाब उसके जवाब से बचने के लिए होते हैं, क्योंकि कोई भी जवाब फंसा सकता है। इसलिए राजनीतिज्ञ के जवाब जवाब नहीं होते। सिर्फ जवाब दिखाई पड़ते हैं। वह प्रश्नों से बचता है, क्योंकि सबका उसे साथ चाहिए। और वह देखता है आप किस तरफ जा रहे हैं, उसी तरफ चलने लगता है। अगर आप दो तरफ जा रहे हों, वह दोनों तरफ चलने लगता है। अगर आप तीन तरफ जा रहे हों, वह तीनों तरफ चलने लगता है। आप उसके देवता हैं। यह जो संसार है, जिसे ऋषि प्रपंच कह रहा है, यह जो फैलाव है, इस फैलाव में जिसे गति करनी है, उसे गति तो बहुत चालाकी, बहुत हिंसा, बहुत बेईमानी, बहुत योजना से करनी पड़ती है। लेकिन इसका जिसे छेदन करना है, इसके पार जिसे जाना है, उसे किसी चालाकी की कोई जरूरत नहीं है। उसे किसी हिंसा की कोई जरूरत नहीं। उसे किसी को धोखा देने की कोई जरूरत नहीं। उसे किसी अनुशासन की कोई जरूरत नहीं। उसका होना पर्याप्त है, बस उसका निर्मल होना पर्याप्त है। उसका शांत और मौन होना पर्याप्त है। फिर वह इस प्रपंच को पार करके परम ब्रह्म की यात्रा पर उसकी चेतना का तीर निकल जाता है। .. जैसे इंद्रिय रूपी पत्रों से ढंका हुआ मंडल होता है, ऐसे ही ढंकने वाले भाव और अभाव के आवरण को भस्म कर डालने के लिए वे आकाश रूप धारण कर लेते हैं। यह आखिरी इस सूत्र का हिस्सा है।। ___ मन ढांके हुए है चेतना को। जैसे कोई झील पत्तों से ढंक गई हो, ऐसा मन ढंका है विचारों से और विपरीत विचारों से-पॉजिटिव-निगेटिव बोथ। भाव और अभाव वाले विचार दोनों ही मन को ढांके हुए हैं। मन का एक हिस्सा कहता है, ईश्वर है; एक हिस्सा कहता है, नहीं है। मन का एक हिस्सा कहता है कि प्रेम करो; दूसरा हिस्सा कहता है, खतरा हो जाएगा; घृणा को कायम रखो, बाकी रखो। मन का एक हिस्सा कहता है, दान दे दो। दूसरा हिस्सा कहता है, दान भला दो, लेकिन जेब काटने का इंतजाम 2357
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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