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अंतर-आकाश में उड़ान, स्वतंत्रता का दायित्व और शक्तियां प्रभु-मिलन की ओर
से भी देख सकता है, और अंगों से भी सुन सकता है, लेकिन तीव्र वासना करके उस अंग की तरफ उस वासना को प्रवाहित करना पड़ेगा। तब ऐसा हो सकता है। ___ ऋषि कहता है, अंतर-इंद्रियों का निग्रह। बाहर की इंद्रियों का सवाल नहीं है। भीतर की जो वासना की इंद्रिय है, जो अंतर-इंद्रिय है, जो सूक्ष्म इंद्रिय है, उसका निग्रह ही उनका नियम है। वे ऐसा नहीं कि अंधे हो जाते हैं, आंख फोड़ लेते हैं। नहीं, वे देखने की वासना को शून्य कर लेते हैं। आंख फिर भी देखती है, लेकिन अब देखने की कोई वासना पीछे नहीं होती। इसलिए आंख अब वही देखती है, जो देखना जरूरी है; कान वही सुनता है, जो सुनना जरूरी है; हाथ वही छूता है, जो छूना जरूरी है। गैर-जरूरी गिर जाता है। इंद्रियां मात्र दासियां हो जाती हैं।
आज इतना ही। फिर कल हम बात करेंगे।
अब हम रात्रि के प्रयोग के लिए तैयार हो जाएं। दो-तीन बातें खयाल में ले लें।
पांच मिनट तक तो तीव्र श्वास लेनी है, ताकि शक्ति जग जाए। मेरे आसपास वे ही लोग खड़े होंगे, जो तीव्रता से कर सकें। फिर उनके बाद कम तीव्रता वाले लोग। फिर उनके पीछे और कम तीव्रता वाले लोग। लेकिन पीछे जो खड़े होते हैं, पीछे खड़े होने से ही उन्हें नहीं करना है, ऐसा नहीं, उन्हें भी पूरी शक्ति लगानी है।
जैसे ही मैं आपको सूचना दूं, तैयार हो जाएं। आंख की पट्टियां आंख से अलग कर लें, सिर पर बांध लें। आंख खुली चाहिए। मेरी तरफ देखते रहना है। मेरी तरफ देखते रहना है, अपलक, आंख की पलक न झपे। मेरी तरफ देखते रहें, उछलते रहें, कूदते रहें। मेरी तरफ देखते रहें, उछलते रहें, कूदते रहें, हू की आवाज करते रहें, हू की चोट करते रहें।
शुरू करें!
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