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________________ निर्वाण उपनिषद उसका आवास है। प्रकाश के लिए सतत उनकी चेष्टा है, नित-नूतन। वे निरंतर-निरंतर, रोज, प्रतिपल प्रकाश के लिए ही आतुर और चेष्टा में रत हैं। यह बड़े मजे की बात कही है ऋषि ने, नित-नूतन। यह थोड़ा कठिन पड़ेगा समझना। क्योंकि हम जो भी करते हैं, उसे हम सदा कल किए हुए से जोड़ लेते हैं, तो वह पुराना हो जाता है। कल भी किया च्यान. आज भी कर रहे हैं ध्यान। तो कल जो ध्यान किया था. वह अतीत की स्मति बन गई। उसी से इसको भी जोड़ लेते हैं। एक मित्र मुझसे पूछने आए थे कि क्या सात दिन यही ध्यान करना है कि कुछ दूसरा भी होगा? अगर अतीत से जोड़ेंगे, तो सब पुराना हो जाता है। अगर अतीत से नहीं जोड़ेंगे और पल-पल जीएंगे, मोमेंट टु मोमेंट, तो सब नया है। कल जो ध्यान किया था, वह आज किया ही कैसे जा सकता है? क्योंकि न आज वह आकाश है, न आज वे किरणें हैं, म आज वह आप हैं, सब तो बदल गया। कल जो किया था, आज उसे करने का उपाय कहां है! सब बदल गया है। इस जगत में पुराने को करने का उपाय कहां है। ___ तो संन्यासी नित-नूतन चेष्टा करता है। उसकी कोई चेष्टा पुरानी नहीं पड़ती। पुरानी पड़ने से ऊब भी पैदा हो जाती है कि इसी-इसी को कब तक करते रहेंगे! वह जानता है कि यहां तो सब प्रवाह है, सब बहा जा रहा है। और जो अप्रवाह है, उसका अभी हमें पता नहीं, उसकी हम खोज कर रहे हैं। संसार तो परिवर्तन है और संसार में जो भी किया जाता है, वह भी परिवर्तनशील है। सब चेष्टाएं परिवर्तित हैं, वही फिर नहीं किया जा सकता। बुद्ध कहते थे-कोई उनसे मिलने आता, नमस्कार करता, जाते वक्त विदा लेता, तो बुद्ध कहते-ध्यान रखना! जिसने नमस्कार किया था, वही विदा नहीं ले रहा है। घंटेभर में नदी का बहुत पानी बह गया। संन्यासी वह है, जो मोमेंट टु मोमेंट, क्षण-क्षण जीता है। एक क्षण काफी है। न पीछे के क्षण से जोड़ता है, न आगे के क्षण से जोड़ता है। तब सब चेष्टा नई है। जब वह सुबह उठकर फिर हाथ • जोड़कर परमात्मा के सामने खड़ा होता है, बिलकुल नया, ताजा, फ्रेश। कुछ पुराना नहीं, कल की धूल है ही नहीं। कल भी हाथ जोड़े थे, इसका खयाल किसको है? इसका हिसाब किसको है? लेकिन हम बड़ा हिसाब रखते हैं। ____ मुल्ला नसरुद्दीन ने किसी मेहमान को निमंत्रण दिया था भोजन के लिए। काफी देर चल चुका था भोजन। मुल्ला नसरुद्दीन फिर भी आग्रह कर रहा था कि एक, एक पूड़ी तो और ले लें। मेहमान ने कहा कि मैं कोई पांच-सात पूड़ी ले चुका, अब बहुत है। मुल्ला ने कहा, पांच-सात नहीं, बाईस हो गई हैं। बट हू इज़ कैलक्युलेटिंग-हिसाब कौन रख रहा है ? हिसाब ही कौन रख रहा है! बाईस हो गई हैं, मजे से खाओ। ___ मगर हिसाब भीतर चलता ही रहता है। तीन दिन हो गए ध्यान करते, अभी कुछ नहीं हुआ। हू इज़ कैलक्युलेटिंग? लेकिन तीन दिन हो गए। कैलक्युलेशन चलता ही रहता है। माइंड इज़ कनिंग एंड कैलक्युलेटिंग। मन चालाक है, बहुत चालाक है। और सब चालाकी कैलक्युलेशन होती है, 7186
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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