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________________ निर्वाण उपनिषद कि दूसरे में जो भी भलाई दिखाई पड़े, उसकी चर्चा करने में वे जरूर रस लेते हैं। रस इसलिए लेते हैं कि जिसमें हम रस लें, उसके बढ़ने की संभावना हो जाती है। ____ अगर हम इस बात में रस लें कि दूसरा बेईमान है, तो हमें पता हो या न हो, हम उसकी बेईमानी को बढ़ाने के लिए रास्ता बना रहे हैं। हमारा रस उसके लिए सहारा बनता है। अगर हम एक बेईमान में भी एक गुण खोज लेते हैं और कहते हैं, बेईमान कितना ही हो, लेकिन आदमी बड़ा सरल है या आदमी बड़ा सीधा है; बेईमान कितना ही हो, लेकिन आदमी बड़ा शांत है, तो हम उस आदमी की शांति को बढ़ने के लिए सहारा दे रहे हैं। और अगर शांति बढ़ जाए, तो बेईमानी टिक न सकेगी ज्यादा दिन। अगर सरलता बढ़ जाए, तो आदमी बेईमान कैसे रहेगा? तो हम उसकी बेईमानी मिटाने में भी सहयोगी हो रहे हैं। __हम जिस बात में रस लेते हैं, वह बढ़ती है, क्योंकि रस लेना पानी सींचना है। इसलिए निंदा में संन्यासी को कोई रस नहीं है, तथ्य में जरूर रस है। और जो शुभ है, उसको जरूर वह सींचने की कोशिश करता है। आज इतना ही। शेष कल। अब हम ध्यान में प्रवेश करेंगे। पूरी शक्ति लगानी है। दस मिनट तक श्वास, दस मिनट तक शरीर का नृत्य, दस मिनट तक हुंकार, फिर दस मिनट तक प्रतीक्षा। __दूर-दूर फैल जाएं। यहां सामने मेरे बहुत लोग इकट्ठे हो जाते हैं, तो उनमें आपस में धक्का लगता है और परेशानी होती है। और जिन लोगों को खयाल है कि वे बहुत जोर से नाचेंगे-कूदेंगे, वे जरा बाहर मैदान में आ जाएं। और जिन लोगों को पता है कि वे दौड़ेंगे, वे तो बिलकुल बाहर आ जाएं, क्योंकि दौड़कर वे कई लोगों को बाधा पहुंचाते हैं। अपने पर खयाल कर लें और बाहर आ जाएं। __और बहुत घने कहीं भी खड़े न हों। इतना मैदान है, भर दें! कपड़े जिन्हें भी अलग करने हों, जितने भी अलग करने हों, वे अलग कर दें, कोई चिंता न लें। और बीच में भी खयाल कपड़े गिरा देने का हो, तो तत्काल गिरा दें। गिराते ही ध्यान में गति गहरी हो जाएगी। आंख में पट्टियां बांध लें। आंख में पट्टियां बांध लें, दूर-दूर फैल जाएं। और देखें, दर्शक की तरह कोई बीच मैदान में न हो। किसी को देखना हो दूर पहाड़ी पर बैठ जाए। और जो देखने को बैठे हों, वे कृपा करके जरा भी बातचीत नहीं करेंगे, चुपचाप रहेंगे। बांध लें पट्टियां। दूर-दूर हट जाएं। पूरे ग्राउंड को भर दें। जितना फासला होगा उतना अच्छा, कूदने-नाचने की सुविधा होगी। और कोई टकरा जाए, तो चिंता न लें। आप अपना काम करें, दूसरे को अपना करने दें। शुरू करें! 7 120
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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