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निवेदन |
जगत्पूज्य शास्त्रविशारद - जैनाचार्य श्री विजयधर्मसूरीश्वरजी महाराजने जिस उद्देश्य से यह ग्रन्थ लिखा था, वह उद्देश्य बहुत अंशों में सफल हुआ है । यह कहते हुए हमें हर्ष होता है । और इसका यही प्रमाण है कि- आज तक इस ग्रंथकी कई आवृत्तियांमें हजारों कापियाँ प्रकाशित होने पर भी दिन बदिन इसकी मांग आती ही रही है और इसी हेतु हमें इसका यह संस्करण निकालने की आवश्यक्ता हुई है । साथही साथ हमें यह प्रकट करते हुए अत्यन्त खेद होता है कि- जिस महात्माने इस ग्रन्थके द्वारा हजारों मनुष्योंके जीवन सुधारे, और असंख्य प्राणियोंके प्राण बचाये, वे अब इस संसार में नहीं है । इस ग्रंथके पाठक इसमें दिये हुए ग्रन्थकर्तामहात्माजीके चित्रसे ही दर्शन-लाभ उठावें, और ग्रंथको पढकर दयाज्याति प्रकटावें, यही अभिलाषा है ।
प्रकाशक ।