________________
तो उन पशुओके मांस से उतने मनुष्यों का पेट नहा भरेगा। जैसे मान लिजीय कि एक एकड़ भूमि में सौमन धान पदा हुआ, उसे एक मनुष्य सालभर अपने सारे परिवारवर्गों के साथ खाता है लकिन यदि हम दस पशु पालते हैं और उनके उतनी भूमि निकाल दी है तो देखते हैं कि वे जानवर शीघ्रही उसे खा जाते हैं और उनके मांससे एक आदमी का भी साल भर
तक भोजन निर्वाह होना मुश्किल है । ) जातीय उन्नति-सभी सभ्य जातियों का यह उद्देश्य होना
चाहिये कि हमारी जाती में अधिक परिश्रमी और कार्यक्षम व्यक्ति उत्पन्न हों और उनकी संख्या की उत्तरोत्तर वृद्धि हो यह तभी संमव है जब कि लोग अधिक शाकाहार करें । ऐसा करने से यह होगा कि ज्यों २ निरामिष भोजन करनेवालों की संख्या बढ़ेगी त्यो २ कृषक लोग अधिक पारश्रम करक अन्न उत्पन्न करनकी चेष्टा करेंगे और इस प्रकार स उस जाति या
समाज में अधिक परिश्रमी लोग उत्पन्न होंगे ।। (५) चारित्रिक उन्नति-जिस मनुष्य में साहस, वीरता और निर्भयता
आदि गुण आरम्भ में आ चुके हो उसे उचित है कि ज्यों २ उसका ज्ञान बढ़ता जाय त्यों २ मनुष्यता सीखे आर पीडित जीवोंके साथ सहानुभूति करनेका अभ्यास पैदा करे । अतएव चूकि निरामिष आहार करने से, मांसाहारद्वारा पशुओं पर जो अत्याचार किया जाता है और उन्हें पोड़ा पहुँचायो जाती है वह दूर हो जायगी इसलिये मांसाहारको प्रवृत्तिका अवरोध करनाही सर्वथा उचित है।