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________________ कबीर के कथनानुसार शिकार आदि सभी हिंसा कार्य निषिद्ध और अनुचित हैं। सप्त व्यसनों की सर्व दर्शनकारों ने जो सूचना दी है, उसमें शिकार को भी एक व्यसन माना है यथा“घृतं च नांसं च सुरा च वेश्या पापढिचौर्ये परदारसेवा। एतानि सप्त व्यसनानि लोके घोरातिघोरं नरकं नयन्ति'१ भावार्थ-जूआ, मांसाहार, सुरापान, वेश्यागमन, शिकार, चोरी, और परदारागमन-ये सात व्यसन, मनुष्यों को घोर से भी घोर नरक को प्राप्त कराते हैं । विवेचन-पापधि, मृगया, ये सब शिकार के नाम हैं, नाम से सिद्ध होता है कि जिसमें पाप की ऋद्धि हो वह पापद्धि है और व्यसन शब्द से सिद्ध होता है कि शिकारादि कृत्य महाकष्टमय हैं। इतना दोष होने पर भी, राजा का धर्म शिकार करना जो मानते हैं, उनको किसी अंशम तत्त्वज्ञानी मानना जाते हैं यह भी एक विचित्र लायक बात है । कदाचित् कोई आदमी यह साहस करके कहे कि शिकार करनेवाला शस्त्रविद्या में यदि कुशल होगा तो देशरक्षा इसके द्वारा विशेष होगी, इसलिये ही राजाओं को शिकार में दोष नहीं माना है। इसका उत्तर यह है कि अपने को कुशल बनने के लिये अन्यजीवों के कुशलको हानि पहुँचाना क्या मनुष्यों के लिये उचित है ? कदापि नहीं । प्राचीन पुरुष जो निशानेबाज होते थे, वे क्या जीव मारने से ही होते थे?; नहीं। एक ऊँचे स्थान पर नीबूं या और कोई चीज
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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