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________________ एस धम्मो सनंतनो पहला प्रश्न: यह मोह क्या है? उससे इतना दुख पैदा होता है, फिर भी वह छूटता क्यों नहीं है? मन ष्य शून्य होने की बजाय दुख से भरा होना ज्यादा पसंद करता है। भरा होना ज्यादा पसंद करता है। खाली होने से भयभीत है। चाहे फिर दुख से ही क्यों न भरा हो। सुख न मिले, तो कोई बात नहीं है। दुख ही सही। लेकिन कुछ पकड़ने को चाहिए। कोई सहारा चाहिए। दुख भी न हो, तो तुम शून्य में खोने लगोगे। सुख का किनारा तो दूर मालूम पड़ता है, दुख का किनारा पास। वहीं तुम खड़े हो। जो पास है, उसी को पकड़ लेते हो कि कहीं खो न जाओ। कहीं इस अपार में लीन न हो जाओ! कहते हैं नः डूबते को तिनके का सहारा। दुख तुम्हारा तिनका है। बचाने योग्य कुछ भी नहीं है। दुख ही पा रहे हो। लेकिन कुछ तो पा रहे हो! ना-कुछ से कुछ सदा बेहतर! इसलिए जान-जानकर भी आदमी दुख को पकड़ लेता है। तुम जरा उस दिन की बात सोचो, जब तुम्हारे भीतर कोई दुख न बचे; कोई 299
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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